
क्या कांग्रेस अपने इस मुश्किल के दौर पर नहीं दे पा रही है पार्टी कार्यकर्ताओं पर ध्यान ?
कांग्रेस इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है। इस समय पार्टी करीब हर राज्य में एक राजनीतिक विरोध का शिकार हो रही है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रदेश में मन मुताबिक पद न मिलना और विरोधाभास की वजह से सिंधिया भाजपा में चले गए। पिछले छह महीने में राजस्थान में दो बार सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ विरोध जता चुके हैं। क्या कांग्रेस के पास अब अपने नए और पुराने नेताओं में तालमेल स्थापित करने वाली कला खत्म हो गई है?
पंजाब में तीखी हो रही है तकरार
पंजाब प्रदेश कांग्रेस के नवनिर्मित अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर में आपसी विवाद शांत नहीं हो रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से सिद्धू शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। दूसरी तरफ कैप्टन को अपने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में देखना नहीं चाहते। कांग्रेस अपने नेताओं को मनाने के लिए पंजाब में चार कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाने पड़े हैं शायद कांग्रेस इसे एक प्रयोग तौर पर कर ही है।
डॉ. अरुण धवन और डॉ. सविता धवन लुधियाना में कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता हैं। डा. धवन दंपति का कहना हैं कि किसान आंदोलन के बाद कांग्रेस ने पूरे पंजाब में काफी मजबूत राजनीतिक पकड़ बना ली थी, लेकिन हमारे दो दिग्गज नेताओं की लड़ाई में सब कुछ बिगड़ने खतरा पैदा हो गया है।
कैप्टन के खेमे के नेता ने कहा है कि इस सब की जिम्मेदार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। उन्हें समझना चाहिए की कैप्टन अमरिंदर सिंह और ननजोत सिंह सिद्धू में बहुत बड़ा फर्क है। और कांग्रेस अध्यक्ष सिद्धू को सिर पर बिठाना चाह रही हैं। सिद्धू से बड़े और पुराने कांग्रेसी नेता पार्टी में हैं। फिर उन्हें वो वैल्यू क्यों नहीं दी गई? कैप्टन के खेमे से लोग यही कह रहे हैं कि पंजाब में कांग्रेस के भविष्य के अंधकार की तरफ बढ़ने का संकेत साफ दिख रहे है।
क्या कांग्रेस अध्यक्ष पद का रुतबा अब घटने लगा है?
कांग्रेस अध्यक्ष पद के रुतबे के घटने के सवाल पर एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री कहते हैं कि इसका जवाब देना थोड़ा मुश्किल है। इसके लिए बस इतना समझिए कि जब भी आप सत्ता में होते हैं तो सत्ता की अपनी एक हनक होती है। सब आपके पक्ष में होते है आपकी सुनते हैं। पर जब आप सत्ता से बाहर होते हैं तो उसके लिए स्थितियां कुछ बदल जाती हैं।
वहीं एक राज्यसभा सांसद का कहना है कि के रुतबे के सवाल पर कांग्रेस का कोई नेता हां में कैसे जवाब देगा? कांग्रेस अध्यक्ष के निर्णय लेने, संदेश भिजवाने और बात करने के बाद भी अगर पार्टी का कोई नेता पार्टी में अपनी चलाना चाहता है तो इसका मतलब आप खुद ही लगा सकते हैं।
वह अपनी बात में एक बात और जोड़ते हैं। कहते हैं कि राजनीति में लोग अपने लिए ज्यादा जीने लगे हैं। जिसके लिए वह ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद का उदाहरण देते हैं। राज्यसभा सदस्य आगे कहते है कि ये दोनों युवा नेता कांग्रेस अध्यक्ष के परिवार के सदस्य की तरह ही थे फिर भी पार्टी छोड़कर चले गए।
मोदी विरोध करने के साथ-साथ पार्टी पर ध्यान देना होगा
पूर्व केन्द्रीय मंत्री पार्टी के बारे में पूछने पर कहते हैं कि मेरे विचार से कांग्रेस पार्टी में एक बड़ी गलती हो रही है। कांग्रेस पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को घेरने के साथ-साथ के संगठन और जमीनी स्तर पर बदलाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस पार्टी ऐसा नहीं कर पा रही है। वह सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करके भाजपा से राजनीतिक मुकाबला करना चाहती है।