
हँसता तो रोज हूं,मगर खुश हुए जमाना हो गया, जानते हैं जादुई शब्दों को लिखने वाले गुलजार साहब के बारे में
हवा के सींग न पकड़ों खदेड़ देती है, ज़मीं से पेड़ों के टांके उधेड़ देती है। कल्पना की ऐसी विचित्रता और शब्दों की ऐसी जादूगरी तो सिर्फ एक ही शख्सियत ही कर सकती हैं। दिल को छू जाने वाले सदाबहार गीतकार का आज जन्मदिन है। हम बात कर रहे हैं गुलजार साहब की। उनके साथ एक नहीं बल्कि कई पहचान जैसे गीतकार, निर्देशक, प्रोड्यूसर, गजलकार, लेखक जुड़ी हैं। चेहरे पर हल्की से मुस्कान, सफेद पजामा कुर्ता पहनने वाले गुलजार साहब का जन्म 18 अगस्त 1934 को पंजाब के झेलम जिले में हुआ था। वैसे तो गुलजार साहब देश-दुनिया में इसी नाम से जानें जाते हैं, लेकिन बता दें कि उनका असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है।
गुलजार साहब बहुत कम उम्र में लिखने लगे थे। ये बात उनके पिता को पंसद नहीं थी,लेकिन फिर भी उन्होंने लिखना बंद नहीं किया। वे मेहनत के दम पर एक बड़ा नाम बनकर सामने आए। वे 20 बार फिल्मफेयर और 5 बात राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं। 2010 में उन्हें स्लमडॉग मिलेनियर के गाने ‘जय हो’ के लिए ग्रैमी अवॉर्ड से नवाजा गया था। उन्हें 2013 में दादा साहेब फालके सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
● गुलजार साहब की कुछ खास बातें –
■ गुलजार साहब शुरुआती जीवन से ही सफेद कपड़े पहनते थे।
■ उनका पहला गाना ‘मोरा गोरा अंग’ था।
■ गुलजार साहब को उर्दू में लिखना ज्यादा पसंद था।
■ 1973 की ‘कोशिश’ फिल्म के लिए उन्होंने साइन लैंग्वेज सीखी थी।
■ 1971 में लिखा गाना ‘हमको मन की शक्ति देना’ आज लगभग हर स्कूल में गया जाता है।
■ गुलजार साहब को टेनिस खेलने के बेहद पंसद था।
■ मशहूर गीतकार डायरेक्टर और प्रोड्यूसर गुलजार कब शायर बने यह भी जानना जरूरी है। दरअसल फिल्म ‘हू तू तू’ फ्लॉप हो गई इस बात का असर गुलजार साहब पर पड़ा था। उन्होंने इस फिल्म के बाद कोई और फिल्म नहीं की। इस झटके से उभारने के लिए उन्होंने शायरी लिखना शुरू किया था।
■ डायरेक्टर के तौर पर उनकी पहली फिल्म ‘मेरे अपने’ (1971) थी। यह बंगाली फिल्म अपनाजन की रीमेक थी।
■ गुलजार जी का कहना था कि जब तक अतीत दिखाया नहीं जाता तब तक फिल्म अधूरी रहती है। इसकी झलक किताब, आंधी और इजाजत जैसी फिल्मों में देखने को मिलती है।