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जानिए मुलायम ने कैसे तय किया पहलवान से राजनेता बनने तक का सफर…
लखनऊ : पहलवानी से करिअर शुरू करने वाले सैफई के मास्टर मुलायम सिंह यादव ने भारतीय राजनीति का चक्का अपने हिसाब से घुमाया। देश के सबसे ताकतवर प्रदेश यूपी के तीन बार मुखिया बने। बेटे को भी सीएम की कुर्सी पर बैठाया। मुलायम सिंह यादव हिंदुस्तान की राजनीति के ऐसे धुरंधर रहे, जिनके सामने बड़े-बड़े खिलाड़ी चारो खाने चित हो जाते।
गुरु नत्थू सिंह को प्रभावित करने के बाद मुलायम का राजनीतिक करिअर शुरू हुआ। जसवंत नगर विधानसभा सीट से चुनावी अखाड़े में उतरे और जल्द ही सैफई में बच्चों को पढ़ाने वाले एक मास्टर से यूपी की पोलिटिकल रिंग के किंग बन बैठे। राजनीति की नब्ज टटोलने में माहिर मुलायम सिंह यादव को जल्द ही नेता जी की उपाधि मिल गई। मुलायम की गिनती राजनीति के खांटी नेताओं में होती है। अगर ऐसा कहा जाए कि यूपी की राजनीति काफी हद तक मुलायम सिंह यादव के इर्द गिर्द चलती रही तो कोई ताजुब न होगा। आइये जानते हैं मुलायम सिंह यादव के नेताजी बनने की कहानी-
सबसे युवा विधायक बने मुलायम
21 नवंबर 1939 को सैफई में मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ। मुलायम पांच भाई बहन थे। पिता पहलवान बनाने का इरादा रखते थे। लेकिन आगे चलकर वे मास्टर बन गए। एक इंटर कालेज में काफी समय तक उन्होंने बच्चों को पढ़ाया। लेकिन बच्चों को पढ़ाने के लिए मुलायम का जन्म थोड़े ही हुआ था। उन्हें तो देश की राजनीति में राज करना था। इसकी शुरुआत उनके गुरु ने की। नत्थू सिंह ने उनको जसवंत नगर सीट से विधायकी लड़वा दी। 28 साल की उमर में सबसे युवा विधायक बन बैठे मुलायम।
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सरकारें बनाने-बिगाड़ने के माहिर खिलाड़ी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुलायम सिंह को सघर्षशील युग का स्तम्भ ऐसे ही नहीं कहा है। भारत की राजनीति में मुलायम सिंह यादव ने जो जगह बनाई वहां तक पहुंचना आसान नहीं है। चिर विरोधी तक गमगीन हो जाएं तो व्यक्तित्व का अंदाजा लगाना सहज है। वैसे तो मुलायम सिंह यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव सियासी अखाड़े के बड़े खिलाड़ी बन गए। जिन्होंने कई सरकारें बनाईं और बिगाड़ीं।
मुलायम की गिरफ्त से छूटना नामुमकिन
कहा जाता है कि मुलायम की जवानी के दिनों में अगर उनका हाथ प्रतिद्वंदी की कमर तक जा पाया, तो चाहे वो कितना ही मजबूत खिलाड़ी हो, मजाल नहीं कि वो मुलायम की गिरफ़्त से छूट पाए। अखाड़े का यह शौक मुलायम ने राजनीति में भी नहीं छोड़ा। बड़े-बड़ों को अपने चरखा दांव से मुलायम पस्त कर देते। मुलायम सिंह यादव की एक खासियत ये भी रही है कि वो अपने हाथों का इस्तेमाल किए बिना ही किसी पहलवान को चारो खाने चित कर देते थे।
अखाड़े में जब मुलायम की कुश्ती अंतिम चरण में होती थी तो लोग आंखें मूंद लिया करते थे। आंखें तभी खुलती थीं, जब भीड़ से आवाज़ आती थी, हो गया। अध्यापक बनने के बाद मुलायम ने पहलवानी करनी तो छोड़ दी लेकिन अपने गांव सैफई में दंगल हमेशा कराते रहे।
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..जब मुलायम ने रचा इतिहास
मुलायम सिंह की प्रतिभा को सबसे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता नत्थू सिंह ने। जिन्होंने 1967 के चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा सीट का उन्हें टिकट दिलवाया था। उस समय मुलायम सिर्फ़ 28 साल के थे। वे यूपी के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक बने। इसके बाद जब 1977 में प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया। उस समय मुलायम सिर्फ 38 साल के थे।