![Villages of Uttarakhand, Holi of villages of Uttarakhand, Holi is not celebrated in these villages of Uttarakhand, Holi of mountains, Traditions of Uttarakhand](/wp-content/uploads/2023/03/maxresdefault.jpg)
Holi 2023 : उत्तराखंड के इन गांवों में 374 वर्षों से नहीं खेली जाती होली, वजह जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान
गांव वालों का मानना है कि होली मनाने पर देवी मां हो जाती हैं नाराज, गांव पर आ जाती है मुसीबत
अबीर-गुलाल के रंगीन त्यौहार होली (Holi) की देश-दुनिया में खूब धूम मची हुई है। उत्तराखंड के कुमाउं और गढ़वाल में भी जमकर होली खेली गई। वहीं इन दोनों मंडलों के कुछ गांवों में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। होली के दिन भी इन गांवों के लोगों की दिनचर्या सामान्य ही रहती है। रुद्रप्रयाग के तीन गांवों में तो पिछले 374 वर्षों से देवी के कोप के डर से अबीर गुलाल नहीं उड़ाया जाता है।
रुद्रप्रयाग के गांवों में देवी के कोप का डर
रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है। तीन सदी पहले जब ये गांव यहां बसे थे, तब से आज तक यहां के लोग होली नहीं खेलते। गांव वालों की मान्यता है कि मां त्रिपुरा सुंदरी के श्राप की वजह से ग्रामीण होली नहीं मनाते हैं।
15 पीढ़ियों से कायम है परंपरा
गांव वाले मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन बताते हैं। ग्रामीणों के अनुसार 374 सालों से यह परंपरा चली आ रही है क्योंकि देवी को रंग पसंद नहीं। बताया जाता है कि कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार क्वीली, कुरझण और जौंदला गांवों में आकर बसे गये थे। 15 पीढ़ियों से यहां के लोगों ने अपनी परंपरा को कायम रखा हुआ है।
लोगों के अनुसार डेढ़ सौ वर्ष पहले कुछ लोगों ने होली खेली थी तो गांव में हैजा फैल गया था और कई लोगों की जान चली गयी थी। उसके बाद से दोबारा इन गांवों में होली का त्योहार नहीं मनाया गया। इसे लोग देवी का कोप मानते हैं।
कुमाऊं के कई गांवों में नहीं खेली जाती है होली
कुमाऊं में होली का अलग ही रंग जमता है। कुमाऊं में होली का त्योहार बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। यहां बैठकी होली, खड़ी होली और महिला होली देश-दुनिया में जानी जाती हैं। घर-घर में बैठकी होली का रंग जमता है लेकिन सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के कई गांवों में होली मनाना अपशकुन माना जाता है।
सीमांत पिथौरागढ़ जिले की तीन तहसीलों धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट के करीब सौ गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। यहां के लोग अनहोनी की आशंका में होली खेलने और मनाने से परहेज करते हैं। पिथौरागढ़ जिले में चीन और नेपाल सीमा से लगी तीन तहसीलों में होली का उल्लास गायब रहता है। पूर्वजों के समय से चला आ रहा यह मिथक आज भी नहीं टूटा है।
इन तहसीलों में होली न मनाने के कारण भी अलग-अलग हैं। मुनस्यारी में होली नहीं मनाने का कारण इस दिन किसी अनहोनी की आशंका रहती है। डीडीहाट के दूनाकोट क्षेत्र में अपशकुन तो धारचूला के गांवों में छिपलाकेदार की पूजा करने वाले होली नहीं मनाते हैं।
धारचूला के रांथी गांव के बुजुर्गों के अनुसार रांथी, जुम्मा, खेला, खेत, स्यांकुरी, गर्गुवा, जम्कू, गलाती सहित अन्य गांव शिव के पावन स्थल छिपलाकेदार में स्थित हैं। पूर्वजों के अनुसार शिव की भूमि पर रंगों का प्रचलन नहीं होता है। यह सब पूर्वजों ने ही हमें बताया था और हम अपने बच्चों को बताते आए हैं।
मुनस्यारी में होली गाने पर होती थी अनहोनी
मुनस्यारी के चौना, पापड़ी, मालूपाती, हरकोट, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला घोरपट्टा, माणीटुंडी, पैकुटी, फाफा, वादनी सहित कई गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। चौना के बुजुर्ग बाला सिंह चिराल बताते हैं कि होल्यार देवी के प्रसिद्ध भराड़ी मंदिर में होली खेलने जा रहे थे। तब सांपों ने उनका रास्ता रोक दिया। इसके बाद जो भी होली का महंत बनता था या फिर होली गाता था तो उसके परिवार में कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती थी।
डीडीहाट में होली मनाने पर हुए अपशकुन
डीडीहाट के दूनकोट क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि अतीत में गांवों में होली मनाने पर कई प्रकार के अपशकुन हुए। पूर्वजों ने उन अपशकुनों को होली से जोड़कर देखा। तब से होली न मनाना परंपरा की तरह हो गया। यहां के ग्रामीण आसपास के गांवों में भी होली के त्योहार में शामिल तक नहीं होते हैं।