पहाड़ की हवा के साथ-साथ अब वर्षा जल भी प्रदूषित हो रहा है। बारिश के पानी में शामिल हानिकारक तत्व नदी-नालों में मिल रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वर्षा जल में कैल्शियम, सल्फेट और नाइट्रेट जैसे रासायनिक तत्वों की अधिकता चिंता का विषय है। इन तत्वों से हिमालयी क्षेत्रों का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र हवा, पानी और मिट्टी प्रभावित होंगे।
एचएनबी गढ़वाल (केंद्रीय) विश्वविद्यालय श्रीनगर और भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान दिल्ली (आईआईटीएम) के प्रारंभिक शोध के नतीजों में अलकनंदा घाटी में वर्षा के पानी में हानिकारक रसायनिक तत्वों की पुष्टि हुई है।
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शोधकर्ता गढ़वाल विवि के भौतिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. आलोक सागर गौतम शोध छात्र संजीव कुमार व अजय कुमार और आईआईटीएम के डा. सुरेश तिवारी व डा. दीवान बिष्ट ने पिछले साल जुलाई-सितंबर माह में वर्षा जल के 27 नमूने लिए। इन नमूनों का प्रयोगशाला में आयन क्रोमैटोग्राफी (वर्ण लेखन) के माध्यम से आयनों (प्राकृतिक गैस के करण) का अध्ययन किया गया।
बारिश के पानी में पीएच की मात्रा 5.1 से 6.2 मिली। जो बताता हैकि बारिश का पानी अम्लीय हो रहा है। डा. गौतम बताते हैं कि पानी की रासायनिक संधि का अध्ययन करते हुए देखा गया कि केटाइंस (धनात्मक विद्युत चार्ज वाले आयन) में कैल्शियम और एनाइन (ऋणात्मक आयन) में क्लोरीन सबसे अधिक मिला। जबकि अम्लीय प्रवृत्ति के सल्फेट और नाइटे्रट का सांद्रण 40 से 40 प्रतिशत मिला है। जिससे सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रिक एसिड बन रहे हैं।
वहीं उत्तराखंड में 13 को जून मानसून पहुंच चुका है। इस साल मानसून ने एक हफ्ते पहले ही राज्य में दस्तक दी है। वहीं राज्य में सोमवार को सुबह से ही चटख धूप खिली हुई, जिससे लोगों को मानसून का आगाज होने का अहसास नहीं हो पा रहा है। कल यानी रविवार को जब मानसून ने उत्तराखंड में दस्तक दी तो राजधानी देहरादून में कई इलाकों में झमाझम बारिश हुई और कई इलाकों में बदरा बरसे ही नहीं। आमतौर पर उत्तराखंड में 21 जून को मानसून पहुंचता है।