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60 से 70mm के टिड्डों ने कर दिया करोड़ों का नुकसान जानें कहां- कहां की फसलें हुईं हैं खराब.

भारत को देखते हुए एक कहावत याद आ रही है , की एक परेशानी से निकल नहीं पा रहे हैं,  कि दूसरी परेशानी सामने आ जा रही है. एक तरफ लॉकडाउन ने रीढ़ की हड्डी तोड़ दी है, दूसरी तरफ इन टिड्डों ने आक्रमण कर दिया है.

जी हां, ये छोटे से दिखने वाले टिड्डे पाकिस्तान के रास्ते से होते हुए राजस्थान और मध्यप्रदेश आ पहुंचे हैं. पंहुचे ही नहीं हैं,  बल्कि पूरी फसल को भी तहस नहस कर दिया है.

इन आक्रमक टिड्डों का दल दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है
राजस्थान, हरियाणा, यूपी, पंजाब, मध्यप्रदेश में इन टिड्डों ने अपना खूब आतंक मचाया है.
विशेषज्ञों का मानना है, कि इन टिड्डों के हमले से करोड़ों रुपयों का नुकसान हो गया है. इस विषम स्थिति में जहां देश की आर्थिक स्थिति डूब रही है  इससे उभरने का एक मात्र सहारा खेती था लेकिन समय खेल भी कितना अजीब है, एक तरह लॉकडाउन के कारण कारोबार भी बंद है, दूसरी तरह फसल से भी हांथ धोना पड़ रहा है.
बता दें कि ऐसा पहली बात नहीं हो रहा 1993 में भी टिड्डों के समूह ने कुछ ऐसी ही स्थिति कर दी थी.
अब टिड्डों की इतनी बात चल रही है, दिखने में तो छोटे से होते है, लेकिन करोड़ों का नुकसान कैसे ? यही सवाल मन में आ रहा होगा न

बताते हैं कि ये इतने खतरनाक क्यों हैं

अगर दुनियाभर नें देखा जाए तो टिड्डों की दस हजार से ज्यादा तरह की प्रजाति होती हैं लेकिन भारत में अभी चार प्रकार की प्रजाति को पाया गया है.
1-  रेगिस्तानी
2- प्रवाजक
3- बंबई
4- पेड़ वाला
रेगिस्तानी और पेड़ वाले टिड्डों को ज्यादा खतरनाक माना गया है, क्योंकि ये घास में मिल जाते हैं और इन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है.

टिड्डे की संख्या इतनी कैसे बढ जाती है

वैश्विक ताप में बढ़ोतरी और मौसम में बदलाव के कारण टिड्डे बढ़ते हैं. बता दें, कि एक मादा टिड्डा तीन बार बच्चे जन  सकती है और एक बार में एक टिड्डा 95 से 158 अंडे दे सकती है. टिड्डों का जीवनकाल तीन से पांच माह का होता है.

अचानक से आक्रमण कैसे
बता दें कि टिड्डे रेत में जन्म लेने के बाद नमी और भोजन की तलाश भागते हैं. और जहां इन्हें नमी मिलती है इनका पूरा दल वहीं चला जाता है.

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