
कौन हैं वो भारत की 5 महिला पहलवान, जिन्होंने देश को दिलाया वर्ल्ड मैडल
कहते हैं यदि इरादे मजबूत हो, हौसले बुलंद हो और खुद पर विश्वास हो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको आपका लक्ष्य प्राप्त करने से रोक नहीं सकती। कुछ ऐसा ही कर दिखाया भारत की इन पांच महिला रेसलर ने। पांचो पहलवान के लिए कुश्ती का सफर मुश्किलों से भरा था लेकिन अपनी लगन और मेहनत के बल पर इन महिला रेसलर ने देश को वर्ल्ड लेवल पर पहचान दिलाई।
आइए आपको मिलाते है भारत की इन 5 महिला पहलवानों से जिन्होंने देश के लिया जीता वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैडल
विनेश फोगाट (2019)
विनेश के कुश्ती करियर की शुरुआत साल 2009 से हुई। इसी साल इंदौर के अर्जुन अवॉर्डी कृपाशंकर बिश्नोई के देखरेख में ट्रेनिंग ले कर उन्होंने अपना पहला मैडल सब जूनियर एशियाई चैंपियनशिप में जीता जो पुणे इंडिया में हुई थी। साल 2013 में विनेश ने दिल्ली में आयोजित हुए दिल्ली एशियन गेम्स में 51 किग्रा कैटेगरी में कांस्य पदक जीता इसी साल उन्होंने जोहानसबर्ग में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी रजक पदक जीता। इसके बाद विनेश ने यह सिलसिला कभी रुकने नहीं दिया।
2014 में ग्लास्गो में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में 48 किलोग्राम भार वर्ग में सोना अपने नाम किया तो 2014 में इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता। 2015 में दोहा में एशियन कुश्ती में रजत और 2016 में बैंकॉक में 53 किलोग्राम में कांस्य पदक जीता। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विनेश ने अब तक करीब 40 से भी ज्यादा पदकों को अपने नाम कर लिया है। लेकिन उनका सबसे बड़ा मैडल आया साल 2019 में जब विनेश ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रोंज मैडल जीत कर देश को ओलंपिक कोटा दिलाया। वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैडल जीतने वाली विनेश पांचवी महिला पहलवान है। विनेश फोगाट ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार से बहुत ज्यादा ही प्रभावित हैं। इसके अलावा वह अपनी बहनों को भी अपना आदर्श मानती हैं। विनेश का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितने भी पहलवान पहुंचे हैं, वह सुशील कुमार के कारन ही पहुंच पाए हैं। क्योंकि हर किसी ने उन्हें अपना आदर्श माना है।
“मैंने 2009 में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता और एक पहलवान के रूप में इस अद्भुत यात्रा की शुरुआत की। 11 साल हो चुके है , और अभी भी इस सवारी का आनंद ले रही हूँ। इस टैली में कई और पदक जोड़ने के लिए उत्साहित हूँ। प्यार, हँसी, दर्द, निराशा और आशा के इन सभी वर्षों के लिए बहुत आभारी हूँ ” विनेश ने कहा।
पूजा ढांडा (2018)
पूजा ढांडा ने अपने करियर की शुरुआत जूडो खिलाड़ी के रूप में की थी। जूडो, युवा पूजा ढांडा के लिए पहला प्यार था। वह जूडो खिलाड़ी के रूप में बहुत सफल भी रही और देश के लिए तीन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में मैडल भी जीते । हालांकि अपनी प्रशंसा के बावजूद, ढांडा ने पूर्व भारतीय पहलवान और कोच कृपा शंकर बिश्नोई के साथ बातचीत के बाद जूडो से आगे बढ़ने का फैसला किया। उन्होंने ने इस नए खेल में अपना हाथ आज़माया और खुद को कुश्ती की विभिन्न तकनीकों का जल्द से जल्द पता लगा लिया। जल्द ही पूजा एहसास हुआ कि वह खेल में अपने लिए करियर बना सकती है।
ढांडा ने 2009 में कुश्ती में कदम रखा, और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 2010 में सिंगापुर में आयोजित यूथ ओलंपिक में भाग लिया और 60 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग में रजत पदक जीता। उन्होंने 2013 में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की।
2015 में खेल के दौरान पूजा चोटिल हो गए जिसके कारण डॉक्टर ने पूजा को दो वर्ष तक खेलों से दूर रहने की सलाह दी । इसके बाद ऑपरेशन के लिए बोला गया है ।पूजा को हर वक्त मन में मलाल रहता था कि प्रतिभा होने के बाद भी मैं खेल नहीं पा रही हूं। यह बात खलती थी और आत्मविश्वास भी कम हो गया था। लेकिन पूजा ने जनवरी 2017 में शानदार वापसी की। पूजा ने वर्ष 2018 में भी कॉमनवेल्थ गेम्स व सीनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में देश का नाम रोशन किया। एक महिला पहलवान के रूप में सफलता हासिल करना कुश्ती के प्रति भारत में लोकप्रियता को बढ़ाता है ।

पूजा 6 साल बाद फ्रीस्टाइल में मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान हैं जबकि विश्व चैंपियनशिप में मैडल जीतने वाली चौथी महिला पहलवान। इससे पहले साल 2006 में अल्का तोमर, 2012 में गीता और बबीता पोघाट ने देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता था। पूजा भारतीय कुश्ती के लिए बड़ी उम्मीद है जो देश को ओलंपिक में पदक दिला सकती है।
बबीता फोगाट (2012)
बबीता फोगाट किसी भी मायने में अपनी बहन गीता फोगाट से कम नहीं हैं। दोनों बहनो ने साथ में अपने पिता से पहलवानी के गुर सीखें और देश को कई मैडल दिलाएं। स्काटलैंड के ग्लास्गो में आयोजित कामनवेल्थ गेम्स 2014 में बबीता ने 55 किलोग्राम भार वर्ग में फ्रीस्टाइल कुश्ती में कनाडा की महिला पहलवान ब्रितानी लाबेरदूरे पहलवान को हराकर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीताकर देश को कहने पर मजबूर कर दिया कि ईश्वर सभी को बबीता जैसी बेटी जरुर दे। इसके अलावा बबीता के नाम 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल, 2012 वर्ल्ड रैसलिंग चैंपियनशिप और 2013 एशियन रैसलिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज है। वर्ल्ड चैंपियनशिप का ब्रोंज मैडल दोनों बहनो ने साथ में जीता था। बबिता फोगाट, गीता फोगाट की बहन हैं, जिनके ऊपर मशहूर मूवी ‘दंगल‘ बन चुकी है.
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गीता फोगाट (2012)
कुश्ती के क्षेत्र में गीता फोगाट एक ऐसा नाम है जिसे हर कोई जानता है। गीता फोगाट का जन्म 15 दिसम्बर 1988 को भारत के हरियाणा के छोटे से गावं बलाली के भिवानी जिला में हुआ था। गीता के पिता महावीर सिंह फोगाट ही उनके कुश्ती के कोच थे व खुद भी एक पहलवान थे। 2010 में दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में फ्री स्टाइल महिला कुश्ती के 55 Kg कैटेगरी में गीता फोगाट ने गोल्ड मेडल अपने नाम करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। गीता फोगाट एक उदाहरण व प्रेरणास्त्रोत हैं सभी युवा लड़कियों के लिए कि आप अगर ठान लो तो जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते है।
2009 के राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में 55 किलो ग्राम भार के पहलवानी में गीता ने स्वर्ण पदक जीता। 2011 में लंदन में हुई राष्ट्रमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में गीता ने 56 किलो ग्राम वर्ग की प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता।
2012 में गीता ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के 55 किलो ग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीता था। और ऐसे करने वाली वो दूसरी महिला पहलवान बनी। और इसी साल गीता ने FILA (फिला एशियन ओलम्पिक क्वालिफिकेसन टूर्नामेंट) में 55 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता. 2012 में ही गुमी में एशियन चैंपियनशिप प्रतियोगिता जोकि 55 किलो ग्राम के भार वर्ग की थी में कांस्य पदक जीता था.
अलका तोमर (2006)
मेरठ के सिसौली गांव में जन्मी रेसलर अलका तोमर ने उस समय रेसलिंग शुरू की थी, जब यूपी में लोग महिला कुश्ती का विरोध करते थे। 1998 में जब अलका ने अपने गांव सिसौली से निकलकर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुश्ती कोच जबर सिंह सोम से कुश्ती की बारीकियां सीखनी शुरू की थी तो गांव में काफी लोग अलका तोमर का विरोध करते थे, लेकिन अलका ने अपना फोकस रेसलिंग पर रखा और सभी बातें अनसुनी कर दी। ओलंपिक को छोड़ दिया जाए तो अलका तोमर ने हर बड़ी रेसलिंग चैंपियनशिप में मेडल जीते और इसके लिए उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया । देश के लिए कई मैडल जीते जिसमे वर्ल्ड चैंपियनशिप का ब्रोंज मैडल भी शामिल है इस मैडल को जीतने के बाद वो देश की पहली महिला बानी जिसने वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैडल जीता।
पिता को कुश्ती का काफी शौक था। उन्होंने बेटे में ही कुश्ती में मेडल लाने का सपना देखा था। अलका के भाई ने कुश्ती भी की लेकिन जहां तक पहुँचना चाहिए था वहां तक नहीं पहुंच सका। लेकिन अलका के पिता ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अलका को कुश्ती में डाला। जब अलका दस साल की थी तभी से पिता नैन सिंह तोमर ने रेसलिंग के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अलका को भी उसी माहौल में पाला जिस माहौल उनके दोनों भाई थे। उन्होंने अलका और दोनों भाइयों में कोई फर्क नहीं रखा। कुश्ती के लिए उन्होंने अलका के बाल ब्वॉयकट करा दिए थे। उसके बाद रेसलिंग की जर्नी शुरू हुई।
2006 में चीन में वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में अलका ने वह कर दिखाया, जिसे कोई सोच भी नहीं सकता था। विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के इतिहास में भारत की ओर से 1961 में उदय चंद और 1967 में विशंभर सिंह ने मेडल जीता था। इनके बाद अलका ने 2006 में मेडल जीता और पहली महिला पहलवान बनी। अलका ने अपने प्रदर्शन से महिला कुश्ती को लेकर हर मिथक को तोड़ा था। नेशनल चैंपियनशिप, नेशनल गेम्स, एशियन गेम्स, काॅमनवेल्थ गेम्स, विश्व कुश्ती चैंपियनशिप समेत तमाम कुश्ती प्रतियोगिताओं में अलका ने भरपूर मेडल जीते और इनके बूते ही उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया।
कुश्ती का इतिहास
कुस्ती हमारे बाबा पर बाबा के जमाने से खेला जाने वाला खेल है जिसे आज भी लोग उतनी ही लगन से खेलते और देखते हैं जैसे पहले के जमाने में देखा जाता था. बहुत से बड़े बड़े दिग्गज जिन्होंने कुस्ती के बल पे हमारे देश का नाम भी रौशन किया है. जैसे की: दारा सिंह, सुल्तान, गुलाम मोहम्मद , उदय चन्द, सुशिल कुमार सोलंकी, साक्षी मालिक, गीता फोगट आदि. इन सभी के अपने कुछ नियम व कानून थे जिसके दम पे उन्होंने अपने नाम झंडा पुरे विश्व पे फैराया। क्या आप भी चाहते हैं उनके जैसा बनना यदि हाँ तो आपको कुछ कुस्ती के नियम और कानून को ध्यान में रखते हुए कुस्ती सीखनी व खेलनी पड़ेगी. वैसे तो हम बहुत बड़े ज्ञानी नहीं है लेकिन हमारी पूरी कोशिस रहेगी की आपको कुछ सीखा सकें और आप खुद को कुस्ती में निपुण कर पाए।
कुश्ती की अवधि Wrestling Period
समय के अनुसार कई बार कुश्ती खेलने की अवधि में बदलाव किये जा चुके हैं पहले कुस्ती की अबधि १५ मिनट थी. उसके बाद उसे बदल के ९ मिनट कर दी गयी कुछ समय बाद उसमे फिर से बदलाव लेट हुए इसकी अवधि ६ मिनट की गयी. आज के समय में १६ वर्ष की आयु से ज्याद के लोगों की कुस्ती की अवधि ५ मिनट व उससे काम वालों के लिए ४ मिनट कर दी गयी है.
यदि इस अवधि में अगर कोई भी प्रतियोगी विजयी घोषित नहीं हो पता तो इन्हे ३ मिनट का समय और दिया जाता है जिसे सडेन डैथ कहा जाता है.
अखाड़े का आकर: 9 x 9 मीटर
अखाड़े का बार्डर: 1.50 x 1.80 मीटर
निष्क्रियता क्षेत्र: 1 मीटर
प्लेटफॉम गद्दे की ऊंचाई: 1.10 मीटर
दंगल के कोने पर चिह्न: लाल या नीला