
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सियासत इन दिनों गरमाई हुई है। सभी राजनैतिक दल जोड़तोड़ की कोशिशों में जुटे हुए हैं। पिछले दो दिनों के घटनाक्रम से भाजपा के हाथपांव फूले हुए हैं।स्वामी प्रसाद मौर्या और दारा सिंह चौहान जैसे कद्दावर मंत्रियों ने बीजेपी को अलविदा कह दिया है। उनका सपा के साथ जाना लगभग तय हो चुका है। अब अखिलेश यादव एक और सियासी तीर चलाने की तैयारी कर रहे हैं, इस बार वो भाजपा के कोर वोट बैंक माने जाने वाले वैश्य और कायस्थ समाज को जोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों का दावा है कि वेस्ट यूपी के कई बड़े नेता कभी भी पाला बदल सकते हैं। सूत्रों की मानें तो बातचीत लगभग फाइनल हो चुकी है। आगामी एक दो दिन वेस्ट यूपी में समाजवादी पार्टी भाजपा को तगड़ा झटका दे सकती है।
राम मंदिर आंदोलन के बाद से बीजेपी के साथ डटे
यूपी में वैश्य और कायस्थ समाज अभी तक कांग्रेस के साथ हुआ करता था लेकिन, राम मंदिर के आंदोलन ने पूरा परिदृश्य बदल दिया है। यह वोटबैंक बीजेपी के साथ मजबूती से डट गया है। इन दोनों वोट बैंक पर दूसरे दलों ने डोरे डालने की कोशिशें तो कीं लेकिन वो कामयाब नहीं हो सके। लेकिन, हाल ही में बीजेपी से भी यह वोट बैंक खिसकता हुआ दिखाई दे रहा है।
संख्या में कम लेकिन प्रभाव ज्यादा
यूपी में वैश्य और कायस्थ मिलाकर करीब छह फीसदी हैं। दोनों की आबादी लगभग बराबर है पूरे सवर्ण समाज की आबादी करीब 20 फीसदी मानी जाती है। इसमें वैश्यों की बात करें तो माना जाता है कि इनकी आबादी करीब 03 फीसदी है। वहीं ब्राह्मण करीब 13 फीसदी, करीब 4 फीसदी क्षत्रिय हैं। वैश्यों के प्रभाव की बात करें तो करीब 115 सीटों पर इनका असर माना जाता है। इसमें से करीब 25 सीटों पर ये निर्णायक होते हैं। कानपुर, लखनऊ, उन्नाव, मेरठ, गोंडा, बहराइच,लखीमपुर, गाजियाबाद, मथुरा, अलीगढ़, झांसी, ललितपुर, आगरा, वाराणसी, गोरखपुर, सीतापुर, नोएडा, मुजफ्फरनगर सीटों पर वैश्य समाज का अच्छा दबदबा है। वहीं करीब 3 फीसदी कायस्थ वोट भी हैं, जो करीब 80 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं।
कम संख्या के बाद भी क्यों है इतनी पूछ
अब सवाल उठता है कि आखिर इन दो समुदायों की आबादी इतनी कम है तो हर दल क्यों इनको अपने पाले में लाने के की कवायद करता रहता है। यह दोनों ही समुदाय आर्थिक और बौद्धिक रूप से काफी समृद्ध माने जाते हैं जो खुद के साथ दूसरे वोट बैंक को भी प्रभावित करते हैं। कोई चुनाव धनबल से लड़ा जाता है। ऐसे में वैश्य समुदाय पर हर दल की नजर होती है। यह चंदा देने से लेकर पार्टी के चुनाव प्रचार तक का खर्च उठाते हैं। इसमे अलावा इनके यहां पर नौकरी करने वालों की भी संख्या काफी ज्यादा होती है। जिन पर उनकी पकड़ बनी रहती है। ऐसे में ये भले 3 फीसदी हों लेकिन अपने साथ 10-15 वोट बैंक को साथ रखने की क्षमता रखते हैं। वहीं कायस्थ समाज बौद्धिक रूप से काफी सक्षम है, जिसके साथ रहने भर से ही एक अलग प्रभाव दिखाई देता है।