
जानिए कैसे एक मोची के बेटे ने खड़ी कर दी 5000 करोड़ की कंपनी
एक अच्छा बिजनेस खड़ा करने के लिए सिर्फ पैसों की ही जरूरत नहीं पड़ती । पैसों के साथ साथ आपको मेहनत और दृढ़ निश्चय करने की भी जरूरत पड़ती है , इस बात का उदाहरण देते हैं मोची “दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड” कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक खड़े । जिन्होंने मेहनत कर आज 5000 करोड़ रुपए का टर्नओवर देने वाली कंपनी खड़ी कर दी ।
अशोक खड़े उन प्रेरक व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने अत्यधिक गरीबी से जीवन को परिवर्तित कर सफलता प्राप्त किया है ।
प्रारंभिक जीवन
अशोक खड़े का जन्म महाराष्ट्र के सांगली में पेड नामक गांव के एक दलित परिवार में हुआ था । उनके पिता जी एक मोची थे जो मुंबई में किसी पेड़ के नीचे बैठ कर लोगों के जूते चप्पल बनाया करते थे । और उनकी मां गांवों दूसरों के खेतों में मजदूरी किया करती थीं । इसका मतलब यह है की वे आर्थिक तौर से मजबूत नहीं थे । मोची अशोक के साथ उनके 5 भाई बहन और थे जिनमे से उनके 2 भाई और 3 बहने थी । उन्हें दिन की एक रोटी के लिए मोची का काम करना पड़ता था और काफी संघर्श करना पड़ता था । कभी कभी तो उन्हें खाली पेट भी सोना पड़ता था ।
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बात तब की है जब अशोक कक्षा 5 में थे , उनकी मां ने उन्हें चक्की से आटा लाने के लिए भेजा था । गांव में उस दिन बहुत बारिश हुई थी और हर जगह कीचड़ इकट्ठा हो गया था जिसमे अशोक का पैर फिसल गया और पूरा आता कीचड़ में ही गिर गया । अशोक वहां से उठ अपने घर आ गए और अपनी मां को यह बात बताई । उनकी मां में जब यह बात जानी तो वह बिलख–बिलख कर रोने लगीं क्योंकि अब उनके पास अपने बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था । फिर उन्होंने गांव के लोगों से भुट्टे मांग कर अपने बच्चों का पेट भरा और खुद भूखी सो गईं । इस घटना के बाद से ही अशोक मोची ने यह तय कर लिया था की उन्हें अपने परिवार की गरीबी को किसी भी कीमत पर मिटानी है ।
1973 में जब अशोक 11 वीं कक्षा में थे तब भी उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी ही थी । 11 वीं की परीक्षा देने के लिए उनके पास पेन में दूसरी रिफिल डालने तक के पैसे नहीं थे तब उनकी मदद उनके एक अध्यापक ने पैसे दे कर की ताकि वह रिफिल डलवा कर परीक्षा दे सकें ।
अशोक को यह बात अच्छे से मालूम थी की अपने परिवार की आर्थिक गरीबी को मिटाने के लिए उनका पढ़ाई करना बहुत जरूरी है । लेकिन आगे पढ़ाई करने के लिए भी उनकी पहली जरूरत पैसा ही थी इसलिए गांव से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई दत्तात्रेय के पास मुंबई चले गए । जहां उनके भाई माझगाव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड में अप्रेंटिस की नौकरी करते थे । भाई की मदद से अशोक ने कॉलेज में दाखिला ले लिया लेकिन एक साल बाद उनके भाई ने कॉलेज की फीस देने से इंकार कर दिया । जिसके बाद उन्होंने कॉलेज छोड़ अपने भाई के साथ माझगाव डॉक में अप्रेंटिस की नौकरी करनी शुरू कर दी । जहां उन्हें प्रतिदिन के 90 रुपए वेतन मिलते थे ।
अशोक की लेख अच्छी थी जिसके कारण उन्हें शिप डिजाइनिंग और पेंटिंग की ट्रेनिंग मिलने लगी और चार साल ट्रेनिंग लेने के बाद उन्हें स्थाई रूप से ड्राफ्ट्समैन बना दिया गया जिससे उनके प्रतिदिन के वेतन में भी बढ़ोतरी हुई और अब वह 300 रुपए प्रतिदिन पाने लगे थे ।
लेकिन उनके अंदर से पढ़ाई पूरी करने का जुनून नहीं गया । जब उन्हें नौकरी से पैसे मिलने लगे तब उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग से डिप्लोमा करने का फैसला लिया । करीब चार साल बाद जब उन्हें डिप्लोमा की डिग्री मिली तब उन्होंने उसी कंपनी में क्वालिटी कंट्रोल डिपार्टमैन में स्थानांतरण ले लिया ।
“दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड” की शुरुआत
काम के सिलसले में एक बार उन्हें कम्पनी ने जर्मनी भेजा । जर्मनी की एडवांस टेक्नोलॉजी के बारे में तो सभी को मालूम है । और उन्हे वहां जर्मन टेक्नोलॉजी को अच्छे से जानने का मौका मिला । इसे जानने के बाद उन्हें एहसास हुआ की वह जो काम करते है उसमे बहुत मुनाफा मिलता है । भारत वापस लौटने के बाद उन्होंने अपने इस विचार को अपने भाइयों के साथ बांटा और तीनों ने इसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बिजनेस की शुरुआत करने का फैसला किया ।
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इन तीनों भाइयों ने अपनी कंपनी का नाम दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड रखने का फैसला किया । क्योंकि दास नाम में उन तीनो भाइयों के नाम का पहला अक्षर आता है । 1992 ने इसकी स्थापना हुई जिसका मुख्यालय सी. बी. डी. बेलापुर , नवी मुंबई में है । बिजनेस की शुरआत हुई लेकिन इसके लिए भी पैसे काम पड़ रहे थे । इसलिए तीनो भाई बिजनेस के साथ साथ छोटी मोटी नौकरी भी करते थे ताकि कुछ पैसे आ सकें ।
कुछ ही दिनो में उन्हें उनका सबसे पहला बड़ा काम एक तेल के कुएं के पास प्लेटफॉर्म बनाने का मिला । जिसके बाद उन्हें लगातार एक के बाद एक बड़ी कम्पनियों से काम मिलने लगे और वे तरक्की की ओर बढ़ने लगे ।

आज उनके ग्राहकों की सूची में एक से बढ़ के एक बड़ी कंपनियां शामिल हो चुकी हैं जिसमे ओ. एन. जी. सी. , हुंडई , ई. एस. एस. ए. आर. ऑयल एंड गैस , ब्रिटिश गैस , लार्सन एंड टूब्रो और बी. एच. ई. एल. भी जैसी कंपनियां हैं । और अभी तक दास ऑफशोर ने समुंद्र में 100 से भी ज्यादा प्रोजेक्ट को पूरा कर दिया है । मेसला , रायगढ़ में रोहिणी फैब्रिकेशन यार्ड का निर्माण भी दास ऑफशोर द्वारा किया गया है , जो एशिया की दूसरी सबसे बड़ी फैब्रिक सुविधा उपलब्ध कराती है । उनकी कंपनी ने बांद्रा और एन. टी. पी. सी. , सोलहपुर के आवासीय परिसर में स्काईवॉक भी बनवाया है । दास ऑफशोर का दुबई , यू. ए. ई. में एक कार्यालय भी है और उन्होंने मैजेटिक जनरल ट्रेडिंग कंपनी के साठबेक जे. वी. का भी गठन किया । यह एक दलित द्वारा शुरू की गई पहली ऐसी कंपनी है जिसमे 4,500 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं ।
अशोक खड़े जो पहले मोची के नाम से जाने जाते थे और उनके भाइयों के लिए यह बहुत भी गर्व की बात थी जब उन्हें पता चला की न्यू यॉर्क टाइम्स ने उनके इस संघर्ष भरी कहानी को पहले पन्ने पर छापा था और स्वीडन में यही कहानी इकोनॉमिक्स के छात्रों को सुनाई जाती है ।