
गंदा मास्क पहनने से ब्लैक फंगस का खतरा, शोध में हुआ साबित
शोध के मुताबिक, ब्लैक फंगस से पीड़ित मिले सिर्फ 18 फीसदी मरीजों ने ही एन 95 मास्क का इस्तेमाल किया था।
कोरोना की पहली लहर में मास्क और कोरोना गाइडलाइन की वजह से कई लोगों की जान बच गई। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को कोरोना के साथ ब्लैक फंगस की बीमारी ने भी लोगों पर तगड़ा वार किया। ब्लैक फंगस की होने की वजह गंदा मास्क पहनना भी हो सकता है। इसके बचाव के लिए साफ और अच्छे मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। कोरोना के साथ ये ब्लैक फंगस (म्यूकोरमाइकोसिस) से बचाने में मददगार साबित हो सकता है।
गंदा मास्क बना मुसीबत
एम्स मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और सहलेखक डॉक्टर नीरज निश्चल ने कहा कि कपड़े वाले गंदे मास्क का कई बार और देर तक इस्तेमाल करने से म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा अधिक हो सकता है। कपड़े के मास्क के नीचे सर्जिकल मास्क पहनें और 6 घंटे के अंदर सर्जिकल मास्क को भी बदल दें या कपड़े के मास्क को साफ कर पहनें।
एम्स के डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस पर एक शोध किया है। एम्स के डॉक्टरों ने 352 मरीजों पर शोध किया है। इस शोध के अनुसार, लंबे समय तक कपड़े का मास्क पहनने से गंदगी की वजह से ब्लैक फंगस होने की आशंका अधिक हो जाती है। इसे अधिक समय तक पहनने से बचना चाहिए। खासकर ऐसे मरीज जिनकी प्रतिरोध क्षमता कम है। 152 मरीज कोरोना के साथ ब्लैक फंगस से पीड़ित थे, जबकि 200 मरीज ऐसे थे, जो सिर्फ कोरोना से संक्रमित थे।
शोध के मुताबिक, ब्लैक फंगस से पीड़ित मिले सिर्फ 18 फीसदी मरीजों ने ही एन 95 मास्क का इस्तेमाल किया था। वहीं करीब 43 फीसदी ऐसे मरीजों ने एन 95 मास्क का इस्तेमाल किया था, जिन्हें ब्लैक फंगस का संक्रमण नहीं था। ब्लैक फंगस से पीड़ित 71.2 फीसदी मरीजों ने या तो सर्जिकल या कपड़े के मास्क का इस्तेमाल किया था। इनमें भी 52 फीसदी मरीज कपड़े वाले मास्क का इस्तेमाल कर रहे थे। 10.7 फीसदी मरीजों ने किसी भी मास्क का इस्तेमाल नहीं किया था।
जिन कोरोना मरीजों को ब्लैक फंगस नहीं हुआ था उनमें से 42.5 फीसदी मरीजों ने एन 95 और 14.5 फीसदी ने सर्जिकल मास्क का प्रयोग किया था। इस शोध के अनुसार, गैर ब्लैक फंगस श्रेणी में 36 फीसदी ने कपड़े के मास्क और 7 फीसदी ने किसी मास्क का इस्तेमाल नहीं किया था।