
ब्लैक फंगस: दवाओं के संकट से रिकवरी धीमी, मरीज को उबरने में 15 से 30 दिन का लग रहा वक्त
कोरोना के बाद राजधानी में अब ब्लैक फंगस घातक होता जा रहा है। 12 दिन में इसके 240 मरीज मिल चुके हैं, जिनमें से 21 दम तोड़ चुके हैं। वहीं, 70 से ज्यादा ऑपरेशन और डॉक्टरों की मशक्कत के बावजूद सिर्फ 10 मरीज ही अब तक ठीक हो सके हैं। इसका बड़ा कारण दवाओं के संकट के साथ बीमारी का लंबा इलाज होना भी है। डॉक्टरों के अनुसार ब्लैक फंगस के मरीज को उबरने में औसतन 15 से 30 दिन का समय लग जाता है।
लखनऊ में जितनी तेजी से ब्लैक फंगस के मरीज बढ़ रहे हैं, उसके अनुपात में दवाओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे मरीजों की रिकवरी दर काफी कम है। अभी तक सभी अस्पतालों में मिलाकर 10 मरीज ही डिस्चार्ज हो पाए हैं। केजीएमयू, लोहिया और पीजीआई से तीन-तीन और एक मरीज निजी अस्पताल से घर लौटा है।

सर्जरी के बाद लंबा चलता है इलाज
केजीएमयू के डॉ. वीरेंद्र आतम के अनुसार जिन मरीजों में ब्लैक फंगस शुरुआती चरण में होता है, वे जल्दी रिकवरी हो जाते हैं। अभी तक जो मरीज ठीक हुए हैं, वे शुरुआती चरण के ही थे। फंगस ज्यादा फैलने पर सर्जरी ही उपाय है। इसके माध्यम से संक्रमित हिस्से को शरीर से निकाला जाता है। सर्जरी वाले मरीजों का लंबे समय तक इलाज चलता है। ऐसे में इनकी रिकवरी काफी देर से होती है।
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दवाओं की कमी भी बनी है परेशानी
राजधानी के अस्पतालों में रोजाना ब्लैक फंगस के 15 से 20 मरीज भर्ती हो रहे हैं। इसके इलाज में सबसे अहम लाइपोसोमल एंफोटेरेसिन-बी इंजेक्शन है। मरीजों की संख्या के लिहाज से शहर में औसतन 700 इंजेक्शन की जरूरत पड़ रही है। हालांकि, इतने इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। इसे लेकर रेडक्रॉस सोसायटी के चेयरमैन ने मंडलायुक्त को पत्र भी लिखा है। हालांकि, अभी तक हालात में कोई सुधार देखने को नहीं मिला है। बाजार से एंटी फंगस दवाएं भी गायब हैं।
डायबिटीज, कम इम्यूनिटी वालों में ज्यादा खतरा
डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. विक्रम सिंह के अनुसार ब्लैक फंगस के मामलों की बड़ी वजह स्टेरॉयड का दुरुपयोग है। डायबिटीज पीड़ित कोविड पॉजिटिव और स्टेरॉयड लेने वालों में इसका खतरा बढ़ जाता है। कोरोना के साथ या इसके बाद में चेहरे पर विशेषकर आंख के नीचे और नाक के बगल में दर्द के साथ सूजन होने पर सावधान होने की जरूरत है। ब्लैक फंगस चेहरे, नाक, आंख या मस्तिष्क को प्रभावित करने के साथ फेफड़ों में भी फैल सकता है। ऐसे में लक्षण आते ही इसके इलाज पर ध्यान देना चाहिए।
हमारे आसपास होता है फंगस
केजीएमयू के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. डी हिमांशु ने बताया कि यह फंगस हमारे आसपास ही होते हैं। सांस के साथ हम इसे अंदर लेते हैं, लेकिन प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने से यह बाहर निकल जाता है। कमजोर इम्यूनिटी पर ये फंगस शरीर में रुक जाते हैं। इसके बाद चेहरे और जबड़े की हड्डियों के सहारे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। संक्रमण ज्यादा फैलने पर समय रहते इन्हें काटकर अलग नहीं किया गया तो व्यक्ति की जान बचानी मुश्किल हो जाती है। केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के डॉ. वीरेंद्र आतम ने कहा कि ब्लैक फंगस का इलाज लंबा चलता है।
इस समय बाजार में दवाओं की कुछ कमी है, पर मरीजों के अनुपात में रोजाना दवाएं मिल रही हैं। सर्जरी के अलावा मरीजों में शुगर नियंत्रित करने के साथ कई चीजें होती हैं, जिन पर बराबर ध्यान दिया जा रहा है। जल्द हालात सामान्य होने की उम्मीद है। वहीं, सिविल अस्पताल के डा.ॅ पंकज ने बताया कि ब्लैक फंगस से रिकवरी में मरीज को औसतन 15 से 30 दिन लग जाते हैं। वहीं, फंगस वाला हिस्सा डेड हो जाता है। फंगस ज्यादा फैल जाए तो सर्जरी करके इसे निकाला जाता है। शुरुआती स्टेज होने के बावजूद मरीज को रिकवर होने में 15 से 30 दिन तक समय लग जाता है।