स्वच्छ भारत अभियान
Swachh Bharat Abhiyan : अपने घर को स्वच्छ हर कोई अच्छे से रखता है और इसी तरह अपने देश को स्वच्छ रखना हर किसी का परम कर्तव्य है। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी यही एक सपना था। वह चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें।आखिर स्वच्छता या स्वच्छ रहना मनुष्य की सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है। ऐसा इसलिए क्योंकि स्वच्छ रहने से न केवल बीमारियां दूर रहतीं हैं बल्कि मन भी प्रसन्न रहता है ।
आज हम आपको इसी से संबंधित एक अभियान के बारे में बताने जा रहे हैं जोकि महात्मा गांधी के बरसो पुराने सपने को साकार करने में अग्रसर है। यह अभियान है “स्वच्छ भारत अभियान”। इस अभियान को माननीय प्रधानमंत्री जी ने शुरू किया था।
क्या है स्वच्छ भारत अभियान?
स्वच्छ भारत अभियान (Swachh Bharat Abhiyan) स्वच्छता को बढ़ावा देने और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शुरू किया गया था। भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुवात की थी।यह अभियान वैसे तो आधिकारिक रूप से 1999 से शुरू हुआ था लेकिन पहले इसका नाम ग्रामीण स्वच्छता अभियान था। इसके बाद 1अप्रैल 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस योजना में बदलाव किए और बाद में इस योजना का नाम निर्मल भारत अभियान रख दिया।इसके बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की सरकार में इसका पुनर्गठन हुआ और इसका नाम पूर्ण स्वच्छता अभियान कर दिया था। इस अभियान को फिर स्वच्छ भारत अभियान के रूप में 24 सितंबर 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिल गई। स्वच्छ भारत अभियान का उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया था। इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की 145 वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर 2014 को किया गया था।
क्या थी अभियान की आवश्यकता?
महात्मा गाँधी जी ने एक स्वच्छ और निर्मल भारत बनाने का सपना देखा था। गाँधी जी ने ये भी कहा था कि स्वच्छता स्वतंत्रता से भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि स्वच्छता ही स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन ला सकती है और उसका एक महत्वपूर्ण और अनिवार्य भाग है। दुख की बात तो यह है कि भारत की आजादी के कई साल बाद भी देश इन लक्ष्यों से काफी पीछे है।
अब भी सभी लोगों के घरों में शौचालय नहीं है।देश में लोगों का खुले में शौच करना एक बड़ी बुरी आदत है जोकि अब बड़ी समस्या भी हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो भारत में 72 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण लोग शौच के लिए खुले में जाया करते हैं। वह झाड़ियों के पीछे, खेतों में या सड़क के किनारे जाते हैं वो भी निसंकोच। खुले में शौच करने से कई समस्याएं उत्पन्न होती है। यह संक्रमण का जन्मदाता होता है। बच्चों की असमय मौत, बीमारियों का फैलना,यहां तक की युवतियों का बलात्कार। भारत की 1.2 बिलियन लोगों की आबादी में से 55 प्रतिशत के पास शौचालय नहीं था। यह समस्या वाकई बहुत गंभीर थी।
*क्या है अभियान का उद्देश्य?”
इस अभियान का प्रथम मुख्य उद्देश्य देश को साफ करना और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना है।इसके बाद लोगों को खुले में शौच करने से रोकने के लिए 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय, 2.6 लाख सार्वजानिक शौचालय की सुविधा प्रदान करना है। पर्यटन स्थलों, बाजारों, बस स्टेशन, रेलवे स्टेशनों जैसे प्रमुख स्थानों पर भी सार्वजानिक शौचालय का निर्माण इसके उद्देश्यों में से एक है। इसमें करीबन 1 लाख 34 हज़ार करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना थी।
कितना हुआ काम?
यह जागरूकता अभियान देश के हर नागरिक तक पहुँचाना आसान काम नही है।आंकड़ों के अनुसार स्वच्छता अभियान के तहत अभी तक सरकार दस करोड़ टॉयलेट बनवा चुकी है। यह काम काफी सराहनीय है।पेट्रोल पंपों के पास भी शौचालय के निर्माण का प्रावधान हो चुका है और देश के 700 से ज्यादा जिलो में इस अभियान के क्रियान्वन भी हो चुका है।इस काम के लिए वर्ष 2014 -15 में 159.6 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वहीं 2015-16 में 253.24 करोड़ रुपए , 2016-17 में 245.04 करोड़ रुपए और वर्ष 2017-18 में 3.78 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
कंपटीशन ने कैसे बढ़ाई जिम्मेदारी?
भारत सरकार ने इसके लिए जागरूकता फैलाने के लिए कई प्रयास किए थे। इसी में से एक था रैंकिंग कर कंपटीशन पैदा करना।भारत सरकार ने 15 फरवरी 2016 को सिटीज़ के लिए सफाई रैंकिंग जारी की। इसमें साफ़ शहरों से लेकर गंदे शहरो तक सिलेक्शन किया गया । पहली रैंकिंग में सर्वाधिक स्वच्छ १० नगर इंदौर ,भोपाल,चंडीगढ़,नई दिल्ली,विशाखापत्तनम ,सूरत ,राजकोट ,गंगटोक, पिंपरी और चिंचवड को स्थान मिला था।इसी में इंदौर शहर को लगातार तीन बार पहला स्थान प्राप्त हुआ।
योजना में आईं समस्याएं
जिस योजना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ही सड़को पर उतर कर झाड़ू लगाया था वह योजना कई जगहों पर असफल भी रही।एक सर्वे में यह पाया गया कि स्वच्छ भारत अभियान को लेकर जिम्मेदारी निभाने में नगरीय निकाय नाकाम हो गए हैं। आम लोगों में सिविक सेंस की कमी और अमर करने पर जोर ना देना स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में सबसे बड़े रोड़ों में से एक हैं।41 प्रतिशत लोग मानते हैं कि नगरीय निकाय अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह फेल हुए हैं और लापरवाही भी बरती गई है।इस अभियान को लागू करने की प्रक्रिया भी काफी कमजोर रही है। हालांकि 61% लोगों के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान की वजह से उन्हें देश और शहरों में साफ-सफाई के मामले में सुधार नजर आता है।
सभी सरकारी आंकड़ों में ज़ोर बस इस पर गया है कि कितने शौचालय बनाए गए और बने हुए शौचालयों की संख्या क्या रही। गौर किया जाए तो इस बात पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो की आखिर कितने लोग उन बने हुए शौचालयों का उपयोग करते हैं। यानी की कितने लोगों को शौचालय फायदा पहुंचा रहा है।एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि इस अभियान के तहत छत्तीसगढ़ में बनाए गए टॉयलेट में से क़रीब 60 फ़ीसदी बेकार पड़े हुए हैं। कई जगहों पर पानी की उपलब्धता न होने की वजह से वो बेकार हैं।
स्वच्छ भारत अभियान अब दूसरे चरण में
19 फरवरी, 2020 को स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण को 2024-25 तक के लिए मंजूरी दी।यह फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने लिया था। इस चरण में 1,40,881 करोड़ रुपये के कुल मिलाकर लगाए जाएंगे।दूसरे चरण की बात करे तो इसमें खुले में शौच से मुक्ति के बाद सार्वजनिक शौचालयों में बेहतर सुविधाओं का इंतजाम किया जाएगा।
अभियान से सीख
अपने घर की तरह देश को भी स्वच्छ रखना सभी का फर्ज़ है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के स्वच्छ भारत के सपने को पूरा करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान ( Swacch Bharat Abhiyan) की शुरुवात की गई है। भारत की 1.2 बिलियन लोगों की आबादी में से 55 प्रतिशत के पास शौचालय नहीं होने की गंभीर समस्या थी जिसकी वजह से यह अभियान शुरू हुआ।अभी तक सरकार दस करोड़ टॉयलेट बनवा चुकी है जो की बहुत ही सराहनीय काम है पर इस बात को भी ध्यान में रखना होगा की जनता उन शौचालयों का उपयोग भी करें। आखिर तभी स्वच्छता का यह अभियान अपने चरम पर पहुंच कर गांधी जी के सपने को पूरा करने में सक्षम होगा।