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बाबा रामदेव के बयान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को लिखा गया पत्र

योग गुरु बाबा रामदेव ने हाल ही में एलोपैथिक दवाइयों को लेकर एक टिप्पणी की थी जिसके चलते बाबा रामदेव को अपना बयान वापस लेना पड़ा क्योंकि उनके खिलाफ बड़ी कार्यवाही होती दिख रही थी बाबा रामदेव के पास बयान वापस लेने के अलावा कोई भी विकल्प नहीं बचा था जिस चिकित्सा पद्धति के सहारे सारा संसार को रोना जैसी महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए कोशिशों में जुटा हुआ था उसी ऐसे कमजोर वक्त में बेवजह की निंदा करने का कोई अहम कारण समझ में नहीं आ रहा था हालांकि बाबा रामदेव के बयान से राजनीति चरम सीमा पर देखने को मिली। जानकारी की मानेगी बाबा रामदेव के बयान को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा गया।

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Letter written to Prime Minister

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दरअसल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखते हुए कहा कि पतंजलि के मालिक और योग गुरु बाबा रामदेव की तरफ से वैक्सीनेशन के खिलाफ प्रचार पर रोक लगाया जाना चाहिए , इतना ही नहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा कहां गया की वीडियो में यह दावा किया गया है कि 1000000 डॉक्टर और लाखों लोगों की कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज मौत हो चुकी है इनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।

बाबा रामदेव ने लिया बयान वापस

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बाबा रामदेव ने एलोपैथिक दवाइयों को लेकर एक विवादित बयान दिया था जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ और लोगों द्वारा बाबा रामदेव की काफी निंदा भी की गई इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इस बयान को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए रामदेव को पत्र लिखा था और इस बयान को वापस लेने के लिए कहा था बाबा रामदेव ने बयान वापस लेते हुए केंद्र स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को भी एक पत्र लिखा है।

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बाबा रामदेव के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर इन दोनों चिकित्सा प्रणाली पर भरोसा रखने वाले लोगों का मतभेद देखने को मिला जो बिल्कुल स्वभाविक था लेकिन इस वजह कोई एक प्रणाली बेकार नहीं ठहराया जा सकती है दोनों ही अपने गुणों में अव्वल हैं यह भी स्वीकार करना होगा कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के सख्त रवैया और केंद्र मंत्री की चिट्ठी से अचानक बाबा का हृदय परिवर्तन नहीं हो गया है ।

उनके बयान के बाद हिंदुस्तान का समूह चिकित्सा तंत्र बाबा के खिलाफ खड़ा हो रहा था ऐसे में दुनिया भर में भारत का उपहास होता कोरोना से दिन-रात लड़ रहे भारतीय डॉक्टर और उनके सहयोगी यदि बयान के विरोध में सड़कों पर उतर आते तो सरकार की कितनी फजीता हो जाते।

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संसद हर साल एलोपैथी चिकित्सा प्रार्थी से डॉक्टर तैयार करने के लिए अरबों रुपए खर्च करती है हमें इस बात से यह याद रखना चाहिए कि देश एक सिद्धांत वादी प्रधानमंत्री प्रतिदिन स्वमूत्र पान करते थे और उन्हें लंबी उम्र पाई।

मगर उन्होंने अपनी आस्था का न तो कभी ढिंढोरा पीटा और न अपनी थैरेपी के कारण अन्य चिकिसा प्रणालियों को खारिज़ किया।उनके कार्यकाल में भी एलोपैथिक इलाज चलता रहा।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वयं प्राकृतिक और देसी इलाज में भरोसा करते थे,पर उन्होंने एलोपैथी को कभी नहीं दुत्कारा ।प्रश्न मीडिया पर भी है कि वह ऐसे फिज़ूल के बयानों को स्थान क्यों देता है ?

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