India Rise Special

Jammu-Kashmir: परिसीमन से बढ़ेगी जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग (Jammu and Kashmir Delimitation Commission) का दौरा तय होने के साथ ही प्रदेश में सियासत गरमा गई है। सभी राजनीतिक दल परिसीमन में अपने राजनीतिक आधार और वोट बैंक को बचाए रखने की कवायद में जुट गए हैं.

इस प्रक्रिया में सिर्फ विधानसभा सीटों की संख्या ही नहीं बढ़ेगी, बल्कि जम्मू कश्मीर (Jammu-Kashmir ) की सियासी तस्वीर भी बदल जाएगी। विधानसभा में जम्मू संभाग का प्रतिनिधित्व भी बढ़ेगा।

इस बीच, परिसीमन आयोग प्रदेश के 6 जुलाई से चार दिवसीय दौरे के दौरान दक्षिण कश्मीर, मध्य कश्मीर, किश्तवाड़ और जम्मू क्षेत्र में प्रदेश के सभी 20 जिला उपायुक्तों से मुलाकात करेगा। इसके अलावा सभी राजनीतिक, सामाजिक और अन्य संगठनों से भी मुलाकात कर उनकी राय ली जाएगी। गत वर्ष फरवरी में गठित इस आयोग का जम्मू कश्मीर में यह पहला दौरा है।

जम्मू कश्मीर में परिसीमन में अपने सियासी किलों के टूटने या छिन जाने के डर से स्थानीय राजनीतिक दल और उनके नेता भी सक्रिय हो गए हैं। परिसीमन का विरोध करने वाले भी अपने हितों की रक्षा के लिए इस प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस ने पहले परिसीमन आयोग किसी बैठक में हिस्सा नहीं लिया था, अब वह बैठक की राह देख रही है। सज्जाद गनी लोन और अपनी पार्टी के चेयरमैन सैयद अल्ताफ बुखारी अपना प्रतिनिधिमंडल तय कर रहे हैं।

प्रदेश कांग्रेस की शनिवार को इसी मुद्दे पर बैठक होने जा रही है जबकि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने वीरवार को महबूबा मुफ्ती की अगुआई में परिसीमन को लेकर अपना एजेंडा भी तय किया है। प्रदेश भाजपा प्रमुख रविंद रैना ने कहा कि इस बार जम्मू के साथ राजनीतिक पक्षपात का अंत कराने के लिए हम पूरी तरह तैयार हैं।

जम्मू -कश्मीर में अंतिम बार परिसीमन 1995 में हुआ था। पांच अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पारित होने के बाद जम्मू कश्मीर राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर व लद्दाख में पुनर्गठित हुआ है।

लद्दाख के अलग होने के बाद जम्मू कश्मीर में 107 विधानसभा सीटें रह गई हैं। इनमें 24 गुलाम कश्मीर के लिए आरक्षित हैं। 46 कश्मीर व 37 सीटें जम्मू संभाग में हैं। इन सीटों में सिर्फ सात सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं और यह सिर्फ जम्मू संभाग के हिंदू बाहुल्य इलाकों में ही हैं। कश्मीर में एक भी सीट आरक्षित नहीं रही है।

इसके अलावा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए भी कभी कोई सीट आरक्षित नहीं रही है। अनुसूचित जनजाति वर्ग जम्मू कश्मीर में कश्मीरी व डोगरा समुदाय के बाद तीसरा बड़ा समुदाय है। इसमें अगर गद्दी वर्ग को भी छोड़ दिया जाए तो सिप्पी, गुज्जर, बक्करवाल जनजातियां पूरी तरह से इस्लाम को मानने वाली हैं।

गुज्जर-बक्करवाल समुदाय (Gujjar-Bakkarwal community) के नाम पर बीते 73 साल से कुछ परिवार ही प्रदेश में सियासी ठेकेदारी कर रहे हैं, जो नेकां, पीडीपी और कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं। परिसीमन की प्रक्रिया में सात सीटों को बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है और यह सीटें संभवत: जम्मू संभाग में ही बढ़ेंगी। इस प्रक्रिया के दौरान कश्मीर में सीटों की संख्या भी घट सकती है।

Follow Us
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
%d bloggers like this: