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उत्तराखंड: जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो हरिद्वार के अस्पतालों में हो सकता है ऑक्सीजन का संकट

हरिद्वार जिला प्रशासन ने जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो अस्पतालों में ऑक्सीजन का संकट पैदा हो सकता है। ऐसा नहीं है कि जिले के गैस प्लांटों में ऑक्सीजन की कमी है, लेकिन बढ़ती मांग के सापेक्ष अस्पतालों के पास ऑक्सीजन सिलिंडर ही नहीं है। ऐसे में फैक्टरियों में प्रयोग होने वाले ऑक्सीजन सिलिंडरों के अधिग्रहण से संकट दूर किया जा सकता है।

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हरिद्वार के निजी अस्पतालों में रोजाना 500 से अधिक डी टाइप (46.7 लीटर) और बी टाइप (10 लीटर) ऑक्सीजन गैस सिलिंडर की खपत हो रही है। जबकि कोविड की दूसरी लहर से पहले ऑक्सीजन सिलिंडरों की दैनिक खपत केवल 250 ही थी। हरिद्वार में रोजाना 600 से एक हजार तक कोविड संक्रमित मिल रहे हैं। काफी संख्या में संक्रमित अस्पताल में भी भर्ती हो रहे हैं।

नतीजतन अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त संख्या में सिलिंडर नहीं है। सिलिंडरों की कमी के चलते अस्पतालों में मरीजों की जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। इमलीकेड़ा स्थित मां गंग गैसेस के प्लांट संचालक मयंक चोपड़ा ने बताया कि निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग चार गुना तक बढ़ गई है। 500 से अधिक सिलिंडर दैनिक रिफिल किए जा रहे हैं, लेकिन बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अस्पतालों के पास पर्याप्त संख्या में ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं हैं।

गौरतलब है कि देहरादून में ऑक्सीजन सिलिंडर्स की कमी को पूरा करने के लिए प्रशासन फैक्टरियों से व्यवसायिक प्रयोग वाले सिलिंडर के बारे में अस्पतालों को उपलब्ध करवा रहा है। जल्द ही हरिद्वार में भी ऐसे कदम नहीं उठाए गए तो सिलिंडर्स की कमी के कारण ऑक्सीजन संकट की स्थिति बन सकती है।

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हरिद्वार के निजी अस्पतालों में रोजाना 500 से अधिक डी टाइप (46.7 लीटर) और बी टाइप (10 लीटर) ऑक्सीजन गैस सिलिंडर की खपत हो रही है। जबकि कोविड की दूसरी लहर से पहले ऑक्सीजन सिलिंडरों की दैनिक खपत केवल 250 ही थी। हरिद्वार में रोजाना 600 से एक हजार तक कोविड संक्रमित मिल रहे हैं। काफी संख्या में संक्रमित अस्पताल में भी भर्ती हो रहे हैं।

नतीजतन अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन अस्पतालों में ऑक्सीजन की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त संख्या में सिलिंडर नहीं है। सिलिंडरों की कमी के चलते अस्पतालों में मरीजों की जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है।

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