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मैरिटल रेप केस : दुष्कर्म, दुष्कर्म है, चाहे इसे करने वाला पुरुष ‘पति’ ही क्यों न हो – कर्नाटक हाईकोर्ट

एक पति द्वारा अपनी पत्नी पर यौन शोषण की तुलना दुष्कर्म से करते हुए, कर्नाटक उच्च न्यायालय (एचसी) ने पत्नी द्वारा कथित दुष्कर्म के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई को रद्द करने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने बुधवार को कहा, “एक आदमी एक आदमी है, एक कृत्य एक कृत्य है, दुष्कर्म एक दुष्कर्म है, चाहे वह पुरुष द्वारा किसी महिला के साथ किया गया हो या एक ‘पति’ द्वारा अपनी पत्नी के साथ।”

 

कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल-न्यायाधीश पीठ, एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दायर एक मामले की सुनवाई कर रही थी, मामले में महिला ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि जब से उसकी शादी हुई है, उसका पति उसके साथ सेक्स स्लेव की तरह से व्यवहार करता है। साथ ही पति पर आरोप है कि उसने अपनी बेटी की मौजूदगी में भी अपनी पत्नी को अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।

 

गौरतलब है कि आईपीसी की धारा 375 में अपवादों का उल्लेख करते हुए कहा गया है, “अगर पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है तो उसके के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं है” न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा, एक पति को उसके कृत्यों के लिए छूट देना समानता के अधिकार को नष्ट करता है, जो संविधान की आत्मा है।अपवाद को गलत बताते हुए अदालत ने आईपीसी की धारा 376 के इस प्रावधान में संशोधन करने की जिम्मेदारी विधायिका पर डाल दी है।

 

बता दें कि न्यायमूर्ति जे.एस. न्यायाधीश ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त वर्मा समिति ने मैरिटल रेप से संबंधित अपवाद को हटाने की सिफारिश की थी। जिसके बाद के संशोधन में सिर्फ आईपीसी की धारा 375 में ‘दुष्कर्म’ शब्द को ‘यौन हमले’ से बदला गया था।

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