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मैरी कॉम कैसे बनी भारत की चैंपियन बॉक्सर

मैरी कॉम ने आज न सिर्फ खुद की प्रतिभा और हुनर के दम पर कई मैडल जीते हैं एवं कई रिकॉर्ड बनाकर इतिहास रचा हैं, बल्कि उन्होंने भारत को दुनिया के सामने गौरान्वित किया है। आइए जानते हैं मणिपुर में जन्मीं एवं कई बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप का खिताब जीत चुकी महान मुक्केबाज मैरी कॉम के बारे में-

एक महिला खिलाड़ी जिन्होंने अपनी महान उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित किया है, ऐसी महान महिला का नाम है मेरी कोम, जो एक अकेली भारतीय महिला बॉक्सर है।मेरी ने 2012 में हुए ओलंपिक में क्वालीफाई किया था, और ब्रोंज मैडल हासिल किया था। पहली बार कोई भारतीय बॉक्सर महिला यहाँ तक पहुंची थी। इसके अलावा वे 5 बार वर्ल्ड बॉक्सर चैम्पियनशीप जीत चुकी है।मेरी ने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुवात 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। मेरी कोम समस्त भारत के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, इनका जीवन कई उतार चढ़ाव से भरा हुआ रहा। बॉक्सिंग में करियर बनाने के लिए इन्होने बहुत मेहनत की और अपने परिवार तक से लड़ बैठी थी। 

वर्ल्ड बॉक्सर चैम्पियन मैरी कॉम 1 मार्च, 1983 को भारत के मणिपुर के कन्गथेई में एक आर्थिक रुप से कमजोर और बेहद गरीब परिवार में जन्मी थीं। वे मांगते चुंगनेजंग मैरी कॉम के रुप में पैदा हुईं थीं।

उनके पिता एक गरीब कृषक थे, जो किसी तरह से अपने परिवार का गुजर-बसर करते थे। मैरी कॉम अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान के रुप में जन्मी थी। इनके 4 अन्य भाई-बहन थे। अपने परिवार का पालन-पोषण करने में वे अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करवाती थीं, और भाई-बहनों का खूब ख्याल रखती थी।

वहीं मैरी कॉम ने घर की मालीय हालत खराब होने का प्रभाव अपनी शिक्षा पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा लोकटक क्रिस्चयन मॉडल हाई स्कूल से की।

इसके बाद उन्होंने 8वीं तक की पढ़ाई मोइरंग के सैंट जेवियर कैथोलिक स्कूल से की फिर उन्होंने इम्फाल के एनआईओएस (NIOS) से अपनी स्कूल शिक्षा पूरी की, इसके बाद उन्होंने राजधानी इम्फाल के चुराचांदपुर कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

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मैरी कॉम का निजी जीवन एवं शादी

साल 2001 में मैरी कॉम जब पंजाब में नेशनल गेम्स खेलने के लिए जा रही थी, तभी उनकी मुलाकात ओन्लर से हुई थी। उस समय ओन्लर दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई कर रहे थे। पहले दोनों बहुत अच्छे दोस्त बने फिर करीब 4 सालों बाद उनकी दोस्ती का रिश्ता प्यार में बदल गया और फिर साल 2005 में दोनों ने एक-दूसरे से शादी कर ली।

शादी के बाद दोनों को तीन बच्चे पैदा हुए। साल 2007 में मैरी कॉम ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। इसके बाद साल 2013 में फिर से उन्हें एक और बेटा पैदा हुआ।

बॉक्सिंग रिंग में मैरी कॉम का शानदार करियर –

मैरीकॉम की बचपन से ही खेल-कूद में काफी रुचि थी। वह शुरु से ही एथलीट बनना चाहती थी। वे अपने स्कूल के समय से ही फुटबॉल जैसे गेम्स में हिस्सा लेती रही हैं। वहीं मैरीकॉम के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कभी बॉक्सिंग प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था।

साल 1998 में जब मणिपुर के बॉक्सर डिंग्को सिंह ने जब एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता, तब वे उनसे काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने बॉक्सिंग में अपने करियर बनाने की ठान ली।

लेकिन एक महिला होने के नाते उनके लिए इसमें करियर बनाना इतना आसान नहीं था, लेकिन मैरी कॉम के शुरु से ही अपने इरादे में दृढ़ रहने और ईमानदारी से लक्ष्य तक पहुंचने की चाह ने आज उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों की सूची में शामिल कर दिया है।

दरअसल, मैरी कॉम के पिता और उनके घर वाले उनके बॉक्सिंग के करियर बनाने के बिल्कुल खिलाफ थे। गौरतलब है कि, पहले लोग बॉक्सिंग के खेल को पुरुषों का खेल समझते थे। ऐसे में इस फील्ड में करियर बनाना मैरी कॉम के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था।

वहीं दूसरी तरफ परिवार की आर्थित हालत सही नहीं होने की वजह से मैरिकॉम के लिए बॉक्सिंग के क्षेत्र में प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेना भी काफी मुश्किल था, लेकिन फौलादी इरादों वाली मैरी कॉम ने आसानी से इन सभी मुसीबतों का सामना कर लिया और विश्व की महान मुक्केबाज के रुप में उभर कर सामने आईं।

बॉक्सिंग के क्षेत्र में अपने करियर बनाने का मन में ठान बैठी मैरीकॉम ने अपने घर वालों को बिना बताए ही ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया था।

वहीं साल 1999 में एक बार मैरीकॉम ने ”खुमान लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स” लड़कियों को लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते हुए देखा, जिसे देख कर वे काफी प्रेरित हुई और उन्होंने अपने लक्ष्य को किसी भी हाल में पाने का निश्चय किया।

इसके बाद मैरी कॉम ने अपने सपने को सच करने के लिए मणिपुर राज्य के इम्फाल में बॉक्सिंग कोच एम नरजीत सिंह से ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया।

साल 2000 में बॉक्सिंग में मैरीकॉम की करियर की शुरुआत हुई उन्होंने मणिपुर में ”वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप” और पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय चैम्पियनशिप में जीत हासिल की। इस दौरान उन्होंने बॉक्सर का पुरुस्कार भी मिला एवं उनके परिवार को उनके मुक्केबाज होने का पता चला।

मैरीकॉम ने 18 साल की उम्र में साल 2001 में इंटरनेशनल लेवल पर अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने अमेरिका में आयोजित हुई AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियन शिप में 48 किलो भार वर्ग में सिल्वर मैडल जीतकर देश का मान बढ़ाया।

साल 2002 में मैरी कॉम ने तुर्की में द्धितीय AIBA महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में 45 किलो भार वर्ग में गोल्ड मैडल जीता। इसी साल मैरी कॉम हंगरी में आयोजित ”विच कप” में सफलता हासिल की, मैरी ने 45 किलो भार वर्ग में गोल्ड मैडल अपने नाम कर भारत का गौरव बढ़ाया।

साल 2003 में भारत में आयोजित ”एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप” 46 किलो भार वर्ग में मैरी कॉम ने गोल्ड मैडल हासिल कर बॉक्सिंग में भारत का दबदबा पूरी दुनिया में कायम किया।

साल 2004 में नॉर्वे में आयोजित महिला मुक्केबाजी के विश्वकप में मैरी कॉम ने गोल्ड मैडल अपने नाम किया।

साल 2005 में भी मैरी कॉम का शानदार प्रदर्शन जारी रहा। उन्होंने ताइवान में आयोजित ”एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में” में 46 किलो वेट केटेगरी में गोल्ड मैडल जीतकर एक बार फिर भारत को पूरे विश्व के सामने गौरान्वित किया।

इसके साथ ही मैरीकॉम ने साल 2005 में ही रसिया में AIBA महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में गोल्ड मैडल जीतकर महिलाओं का हौसला बढ़ाया।

साल 2006 में मैरी कॉम ने भारत में आयोजित AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप और डेनमार्क में हुई ”वीनस वीमेन बॉक्स कप” में स्वर्ण पदक जीतकर फिर से अपनी बॉक्सिंग प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया।

साल 2007 में मैरी कॉम प्रेंग्नेंसी की वजह से बॉक्सिंग से एक साल तक दूर रहीं, लेकिन फिर साल 2008 में उन्होंने शानदार वापसी करते हुए भारत में आयोजित ”एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप” में सिल्वर मैडल अपने नाम किया।

कभी नहीं हारने वाली मैरी कॉम ने साल 2009 में भी बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए वियतनाम में आयोजित ”एशियन इंडोर गेम्स” में स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

साल 2010 में भी मैरी कॉम ने मुक्केबाजी में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए कजाखस्तान में आयोजित ”एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप” में विजयी रहीं और गोल्ड मैडल जीता।

इसके अलावा साल 2010 में ही मैरी कॉम ने राजधानी दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स के उद्घाटन समारोह में विजेन्द्र सिंह के साथ स्टेडियम में क्वींस बैटन पकड़ने का गौरव हासिल हुआ। हालांकि इस दौरान वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर सकीं, क्योंकि इन गेम्स में महिलाओं की मुक्केबाजी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं किया गया।

वर्ल्ड चैम्पियनशिप जीत चुकी मैरीकॉम ने साल 2012 में मोंगोलिया में हुई ”एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप” में 51 किलो भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता।

साल 2014 में भी महान मुक्केबाज मैरीकॉम के जीत का जलवा बरकरार रहा। उन्होंने साउथ कोरिया में आयोजित एशियन गेम्स में वीमेन फ्लाईवेट(48-52 किलोग्राम)वर्ग में गोल्ड मैडल जीतकर इतिहास रच दिया।

साल 2018 में मैरीकॉम ने नई दिल्ली में आयोजित 10वीं AIBA महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और 6वीं बार वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम कर इतिहास रचा।

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