
कोरोना काल में युवाओं के भविष्य पर कितना जोर दिया जा रहा है ?
भारत में जब से कोरोना वायरस संक्रमण ने आक्रमण किया है तब से भारत में भारी तबाही मची हुई है आपको बता दें कि कोरोना वायरस संक्रमण ने भारत के अंदर कई तरीके की जरूरी सेवाओं को रोक दिया है। वही कुछ चीजों का तरीका कोरोना वायरस के कारण बदलना पड़ गया है फिर चाहे वह कोरोना वायरस की पहली लहर हो या फिर दूसरी लहर दोनों ने ही भारत की शिक्षा पर गहरा असर डाला है जिससे इस बात को समझने में बिल्कुल भी कटना ही नहीं होगी कि आखिर ऐसे वक्त में भारत का युवा क्या अपने भविष्य को उज्ज्वल बना पाएगा ?

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भारत में पहले से ही शिक्षा की व्यवस्थाएं बेहतर नहीं है जितनी विदेशों में है और कोरोना वायरस संक्रमण के फैलने से शक्ल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के पूर्वानुमान नकारात्मक वृद्धि दर की और चले गए हैं तात्पर्य कोरोना काल में भारत की जीडीपी पर बड़ा असर पड़ा है कई महीनों तक चले लॉकडाउन के कारण भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है उसके बाद संक्रमण की दूसरी लहर का भारत की व्यवस्थाओं पर ज्यादा असर न पड़े इसके लिए सरकार लॉक डाउन करने की इच्छा में नहीं है।
ऐसे में यह दौर भारत के युवाओं के लिए चुनौतियों से भरा हुआ है इस महामारी के बुरे प्रभाव सबसे अधिक युवाओं को जिनकी उम्र 15 से 19 वर्ष है उन पर पड़ा है वह एक साथ तीसरी चुनौती का सामना कर रहे हैं भयंकर बेरोजगारी और शिक्षा में खलल के साथ-साथ उन्हें असफल होती शिक्षा व्यवस्था की मार भी झेलनी पड़ रही है।
महामारी का जितना असर भारत पर हो रहा है उससे कई ज्यादा असर भारत के युवाओं की शिक्षा पर हो रहा है ऐसे में इस वक्त सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि युवाओं को राहत देने के लिए खासकर उनके लिए प्रयास करें सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि वह युवाओं को ना केवल मौजूदा आर्थिक संकट से निजात पाने में मदद करें बल्कि यह प्रयास भी करें कि इस समय भारत देश आबादी के संकट से दो-चार इससे बचा भी जा सके.
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भारत का युवा पहले से ही बेरोजगारी की चपेट में है और महामारी के समय बहुत लोगों की नौकरियां चली गई है हम उनकी बात कर रहे हैं जिनकी शिक्षा अभी खत्म भी नहीं हुई है लेकिन लेबर कोर्ट पिटिशन रेट लगातार तेजी से घट रहा है वर्ष 2005 में जहां यह 56% था तो 18 उन्नीस में यह रेट 38% ही रह गया है इससे भी चिंताजनक बात यह है कि NLET के हैं.
क्या है NLET ?
NLET का अर्थ होता है नॉट इन लेबर फोर्स एजुकेशन एंड ट्रेनिंग, इसके तहत उन लोगों की संख्या का आंकलन किया जाता है जो ना तो कोई काम कर रहे हैं ना ही काम की तलाश में है और ना ही वह किसी तरह की शिक्षा का ज्ञान ले रहे हैं. इन आंकड़ों से इस बात का बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आर्थिक रूप से भारत का युवा कितना कमजोर है और तमाम आर्थिक चुनौतियों के साथ भारत का युवा संघर्ष कर रहा है.
आश्चर्यचकित होने की बात यह है कि ऐसे युवाओं की संख्या भारत के अंदर 10 करोड से भी ज्यादा है और यह आंकड़े तब है जब सरकार ने देश में बैठकर युवाओं को नए हुनर सिखाने और उनके बीच आत्मनिर्भरता कपाट खोला है पूर्व के वृत्त और आर्थिक संकटों ने हालत और खराब कर दिए हैं इसका नतीजा यह हुआ है कि देश के युवा आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है और तमाम आर्थिक चुनौतियों के दौरान युवाओं के बीच ही बेरोजगारी की दर सबसे अधिक होती जा रही है हमारी भी इसका अपवाद नहीं है.
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महामारी के काल में आर्थिक संकट के दौरान युवाओं की अक्सर नौकरी से निकाले जाने की आशंका बनी रहती है इसी वजह से उनके अंदर हुनर और अनुभव की कमी होती है भारत में ठेके पर काम करने की संस्कृति का गोश्त भी युवाओं पर ही अधिक पड़ा है उनके मुकाबले अधिक उम्र के कामगारों को भी अभी नौकरी मिलने की संभावना नहीं होती है.
महामारी ने तोड़ी शिक्षा की कमर
पूरी दुनिया में महामारी के कारण करीब 73 प्रतिशत युवाओं की पढ़ाई में विघ्न पैदा हुआ है भारत में शिक्षा की उपलब्धि के मामले में अलग-अलग समुदायों के बीच भयंकर असमंजस बना हुआ रहता है तो यहां पर युवाओं की शिक्षा में सबसे अधिक खलल पड़ा है महामारी के चलते पढ़ाई में बाधा पड़ने का सबसे बुरा प्रभाव भारत की युवा महिलाओं पर पड़ा है.
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लेकिन आज फिर ऐसा क्यों? क्योंकि उन्हें घर में अधिक काम करना पड़ रहा है और इसके बदले में उन्हें पैसे भी नहीं मिलते बोला संकट में मिले सबूत हमें बताते हैं कि महामारी के कारण लड़कियों और युवतियों पर पढ़ाई छोड़ने का दबाव ज्यादा होता है लड़कों की तुलना से अधिक पड़ता है महामारी के संकट में घरों की आमदनी घट जाती है और आर्थिक चुनौतियां बढ़ जाती है ऐसे में युवाओं खासकर लड़कियों पर पढ़ाई छोड़ने का दबाव बनने लगता है.