वैवाहिक दुष्कर्म मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय सख्त , सुनवाई दौरान केस को लेकर कहीं ये बात
वैवाहिक दुष्कर्म को मामलों को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि, दोषी को प्रथम दृष्टया दंड मिलना चाहिए। दरअसल अदालत ने भारत में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाने की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा था। हाईकोर्ट का कहना है कि, महिलाओं की यौन स्वायत्तता, शारीरिक अखंडता ना कहने के अधिकार से कोई समझौता नहीं हो सकता।
व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी ठहराना है बड़ा सवाल
सुनवाई के दौरान पीठ ने याची के एक तर्क पर असहमति भी जताई। याची के मुताबिक, यूके, यूएस, नेपाल इत्यादि न्यायालयों ने ऐसे प्रावधान को रद्द कर दिया है। पीठ ने इसपर टिप्पणी करते हुए कहा कि, हम किसी प्रावधान को सिर्फ इसलिए रद्द नहीं कर सकते क्योंकि उसे किसी अन्य देशों और अधिकार क्षेत्र में वहां के न्यायालय ने रद्द किया है। पीठ ने कहा कि, सवाल ये नहीं है कि क्या वैवाहिक दुष्कर्म के मामलों में आरोपी को सजा मिलनी चाहिए। बल्कि सवाल ये है कि, क्या ऐसी स्थिति में व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी ठहराया जाना चाहिए।
भारत में वैवाहिक दुष्कर्म की नहीं है अवधारणा
न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि, वर्तमान में मुद्दा यह है कि क्या धारा 375 के तहत अपवाद खत्म कर दिया जाना चाहिए। दरअसल भारत में वैवाहिक दुष्कर्म की कोई अवधारणा नहीं है। विधायिका ने धारा 375 को छोड़कर ऐसी स्थिति बनाई है। जहां शादी होती है। हमें यह देखना होगा कि, इस अपवाद को खत्म करने के लिए कोई मामला बनता है या नहीं। इसके अलावा यह सवाल कि क्या प्रावधान को असंवैधानिक माना जाना चाहिए या नहीं।