India Rise Special

उत्तराखंड : जानें चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के कुछ खास किस्से

चिपको आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद् पदमविभूषण और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा तेज दिमाग के धनी थे। उनके निधन से राज्य में शोक व्याप्त है। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें…

बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी 1927 को टिहरी जिले में भागीरथी नदी किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ था। उनके पिता अंबादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे।

13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया। तेज दिमाग के धनी सुंदरलाल की शिक्षा-दीक्षा राजकीय प्रताप इंटर कालेज टिहरी से लेकर लाहौर तक हुई।

1947 में लाहौर से बीए ऑनर्स की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर टिहरी लौटने पर वह टिहरी रियासत के खिलाफ बने प्रजा मंडल में सक्रिय हो गए। 14 जनवरी 1948 को राजशाही का तख्ता पलट होने के बाद वह प्रजामंडल की सरकार में प्रचार मंत्री बने।

जन संघर्षों के हितैशी बहुगुणा ने 1981 में पेड़ों के कटान पर रोक लगाने की मांग को लेकर पदमश्री लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने शराब बंदी, पर्यावरण संरक्षण और टिहरी बांध के विरोध में 1986 में आंदोलन शुरू कर 74 दिन तक भूख हड़ताल की। मंदिर में हरिजनों का प्रवेश से लेकर बालिकाओं को शिक्षा दिलाने में उनका अहम योगदान रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलने का मौका मिला
पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलन चलाने पर बहुगुणा को संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलने का मौका मिला। जीवन भर समाज हित के लिए लड़ने वाले सुंदरलाल बहुगुणा को कई पुरस्कारों से नजावा गया। हालांकि 1981 में जंगलों के कटान पर रोक लगाने की मांग को लेकर उन्होंने पदमश्री पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था।

यह भी पढ़ें : उत्तराखंड : पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का कोरोना से निधन, एम्स ऋषिकेश में थे भर्ती

उसके बाद केंद्र सरकार समुद्रतल से 1000 मीटर से ऊंचाई वाले इलाकों में वृक्ष कटान पर पूरी तरह से रोक लगा दी। जिससे उत्तराखंड के पर्यावरण को लाभ मिला। बहुगुगणा ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जनमानस को जागरुक करने के लिए उत्तराखंड को पैदल नापकर कश्मीर से कोहिमा तक और गंगा संरक्षण के लिए गोमुख से गंगा सागर तक साइकिल यात्रा भी निकाली।

बहुगुणा के समाज हित और पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाए गए आंदोलन से प्रेरित होकर बीबीसी ने उन पर ‘एक्सिंग द हिमालय’ फिल्म भी बनाई। जीवन में समाज और पर्यावरण हित के लिए संघर्ष करने वाले बहुगुणा को कई पुरस्कार से नवाजा गया।


सुंदर लाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार और सम्मान

  • वर्ष 1981 पद्मश्री ( इसे बहुगुणा ने नहीं लिया)
  • वर्ष 1986 जमनालाल बजाज पुरस्कार
  • वर्ष 1987 राइट लाइवलीहुड अवार्ड
  • वर्ष 1989 आईआईटी रुड़की द्वारा डीएससी की मानद उपाधि
  • वर्ष 2009 पद्मविभूषण, इसके अलावा राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, शेरे कश्मीर अवार्ड समेत दर्जनों अन्य छोटे बड़े पुरस्कार भी इन्हें दिए गए। विश्वभारती विवि शांतिनिकेतन ने भी इन्हें डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की।

Follow Us
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
%d bloggers like this: