
Start UP : जानें प्लास्टिक से कपडा बनाने की तकनीक….
7 साल की उम्र में एक कपड़ा बनाने की फैक्ट्री डाली
भारत में कुछ वर्षों पूर्व कचरे में प्लास्टिक की मात्रा अधिक जमा हो गई थी जिसके चलते पर्यावरण पर इसका ज्यादा नुकसान होने लगा था। लोगों में कई प्रकार के रोगों की दिक्कतें आने लगी थी। इसी के चलते हैं राजस्थान के भीलवाड़ा में रहने वाली ने एक नया तरीका सोचा। उन्होंने सोचा कि कुछ नया किया जाए जिससे आमदनी का जरिया बड़ा हो जाए दूसरों की नौकरी करने से अच्छा अपना छोटा सा व्यवसाय डाला जाए। इसी क्रम में आदित्य ने मात्र 17 साल की उम्र में एक कपड़ा बनाने की फैक्ट्री डाली। आदित्य ने कपड़ा बनाने के लिए प्लास्टिक की बोतलों रायपुर और कमरों को रिसाइकल करना शुरू किया यह आपको सोचने में अजीब लगता होगा कि प्लास्टिक से कपड़ा कैसे बनाया जा सकता है प्लास्टिक से कपड़ा कैसे बन सकता है यह भी एक सवाल है लेकिन राजस्थान के भीलवाड़ा के आदित्य ने प्लास्टिक से कपड़ा बनाने की तरकीब बनाई और उसने करके सच साबित किया।
द बेटर इंडिया रिपोर्ट के अनुसार आदित्य राजस्थान के मायो कॉलेज के कक्षा 12 के छात्र हैं आदित्य ने बताया कि प्लास्टिक से कपड़ा बनाने के चलते इसमें 48 घंटे का समय लगता है लेकिन प्लास्टिक से तैयार हुए कपड़े की मजबूती काटन से कई गुना अधिक मजबूत होती है। और जो इसकी टिकाऊ समय सीमा है वह काटन की अपेक्षा अधिक है। आदित्य ने बताया कि उनकी कंपनी ट्रेस टूटेगा जनवरी 2021 में लांच किया था और हर दिन में कपड़ा बनाने के लिए 10 टन प्लास्टिक को रिसाइकल करते हैं।
गौरतलब है कि आदित्य मैन्युफैक्चरिंग परिवार से ताल्लुक रखते हैं और वह 2019 में चीन की बिजनेस ट्रिप पर गए थे वह कंचन इंडिया लिमिटेड के मालिक और अपने चाचा के साथ कपड़े बनाने की नई मैन्युफैक्चरिंग तकनीकों को देखते हुए यात्रा पर गए थे तभी उन्हें चीन में कैसे यूनिट देखने को मिली जो बड़ी मात्रा में प्लास्टिक कचरे को कपड़े में बदल रही थी। इससे ना केवल पर्यावरण को प्रदूषित कर रही प्लास्टिक कम हुई बल्कि लैंडफिल में जाने वाले कचरे में कमी भी आती है और अच्छी क्वालिटी वाले प्रोडक्ट का उत्पादन भी करती हैं साथी साथ कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न करती है।
चीन से लौटने के बाद आदित्य ने परिवार को यह बिजनेस बताया उस समय वह कक्षा 10 में पढ़ते थे उस समय उनके माता पिता और चाचा उसके विचार से सहमत हो गए और कारोबार में उसकी मदद की घर की स्थिति मजबूत ना होने के कारण उसने एक विदेश की कंपनी के साथ मिलकर भीलवाड़ा में एक यूनिट लगाई और इस प्रोजेक्ट को कंचन इंडिया लिमिटेड फाइनेंशियल ने सपोर्ट किया जिसके लिए कपड़ा बनाया जाता है।
आदित्य ने बताया कि वह पूरे देश से प्लास्टिक मंगा रहे हैं सरकार की तरफ से लाख डाउन में ढील दी गई और उन्होंने पूरे देश से प्लास्टिक कचरा मंगाना शुरू किया स्थानी कचरा संग्रह केंद्रों से करके वह प्लास्टिक को ₹40 प्रति किलो रेट पर खींचने लगे उन्होंने बताया कि प्लास्टिक सबसे पहले मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में जाता है इसको अच्छे से साफ सफाई करके इसके लेवल को हटा दिया जाता है फिर से सुखाया जाता है इसके बाद उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया जाता है उसको लेबल हटाकर सूखने दिया जाता है इतना ही नहीं उसे पकड़ने के लिए जहरीले रसायन हटाते हैं। पिघला हुआ प्लास्टिक फाइबर बन जाता है और ठंडा होने पर फिलामेंट तैयार हो जाता है।
आदित्य ने बताया कि अब उनके सामने यह एक बड़ी चुनौती है क्योंकि उन्हें प्रतिदिन 10 टन प्लास्टिक को रीसायकल करते हैं और उसे अब खरीदना यह महंगा पड़ रहा है अब उन लोगों से सीधे प्लास्टिक कचरा देने को कह रहे हैं जो इसे रीसाइक्लिंग के लिए खट्टा कर रहे हैं।