उदयपुर : राजस्थान के जिला प्रतापगढ़ एक बहुत ही अनोखा मंदिर है, जहाँ पर आने वाले श्रद्धालु सुहाग के सामान और भोग के साथ – साथ बेडियां और हथकड़ी का चढाव भी चढावा भी चढाते है। इसके साथ ही अब बड़ा सवाल यह उठाता है की ऐसी मान्याता है क्यों ? तो आइए जानते है क्या है इसके पीछे की वजह…
हम बात कर रहे है अरावली पर्वतमाला और घने जंगल के बीच 500 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बने दीवाक माता मंदिर की, जहाँ पर माता को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग जतन करते हैं। वही इस मन्दिर में यहां प्रसाद के साथ सुहाग के सामान ही नहीं, बल्कि देवी मां को हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाई जाती हैं। मंदिर के प्रांगण में गड़े त्रिशूल में कई हथकड़ियां चढ़ी हैं, जो सालों पुरानी हैं।
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जानिए क्या है मान्यता
इस चढ़ावे की पीछे बेहद रोचक कथा बताई जाती है, कहा जाता है की, प्राचीन काल में मालवा – मेवाड़ में डाकुओं का राज चला करता था। ऐसे में जब डाकुओं अपने मिशन पर निकलते थे तो उस समय पर पुलिस के चंगुल से बच गए तो वे यहां हथकड़ी और बेड़ियां चढ़ाते थे। इतना ही नहीं एक एक जनश्रुति यह भी है कि, रियासतकाल में डाकू पृथ्वीराणा ने जेल में दिवाक माता की मन्नत ली थी कि अगर वह जेल तोड़कर बाहर आया तो सीधे यहां दर्शन करने के लिए आएगा। बाद में वह जेल से भागकर सीधा इस मंदिर में अपनी मन्नत पूरी करने पहुंचा। कई भक्त जो किसी ना किसी आरोपों में कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं, वह यहां आकर माता से मन्नत मांगते हैं और उनके पूरी होने पर बेडियां और हथकड़ी चढ़ाते हैं।
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200 साल पुराने त्रिशूल पर चढ़ता है चढावा
वहीं कई लोग अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए भी इसी तरह बेडियां और हथकड़ी चढ़ाने लगे और यह परम्परा बन गई। इस मंदिर के आंगन में 200 साल पुराना एक त्रिशुल गढ़ा हुआ है। इसी त्रिशुल पर ही लोग मन्नत मांगते हुए हथकड़ियां चढ़ाते हैं।