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StartUps: पढें स्टार्टअप्स RazorPay के बारे में, जिसने पेमेंट प्रक्रिया को किया आसान
डॉक्यूमेंट्स और तमाम पेपरवर्क को कहा ‘न’
स्टार्टअप्स और लघु उद्योगों के लिए पेमेंट प्रक्रिया को सरल बनाने को लेकर हर्षिल माथुर और शशांक कुमार ने 2014 में रेजरपे की शुरुआत की। दरअसल भारत में ईकॉमर्स बाजार तेजी से बढ़ा है। लेकिन खरीददारी करने के बाद पेमेंट करने में समस्या आती थी।
हर्षिल माथुर और शशांक कुमार ने की शुरुआत
दोनों में किसी का फाइनेंस का बैकग्राउंड न होने के बाद भी हर्षिल माथुर और शशांक कुमार ने इसकी शुरुआत की। दरअसल इनको एहसास हुआ कि मौजूदा ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम लंबे और थकाऊ हैं। जिसके बाद इस जोड़ी ने पेमेंट गेटवे बनाने का फैसला किया। दरअसल पहले स्टार्टअप और व्यापारियों के लिए 15 मिनट में पेमेंट गेटवे इंटीग्रेशन प्रोवाइड कराने के लिए सिस्टम को कागजी कार्रवाई की बहुत आवश्यकता थीय़ और इंटीग्रेशन करने के लिए करीब एक महीने का समय लग जाता था। लेकिन तेजी से आगे बढ़ रहे रेजरपे के पास ग्राहकों को पेमेंट करने का एक व्यापक स्पेक्ट्रम है। जो कि, 350,000 से ज्यादा व्यापारियों को अपनी सर्विस देता है। जिसमें OYO, Zomato, और Swiggy जैसे स्टार्टअप यूनिकॉर्न और एयरटेल जैसे बड़े उद्यम और राज्य की संचालित IRCTC भी शामिल हैं।
5 बिलियन डॉलर का होता है लेनदेन
हर साल इस पेमेंट गेटवे से 5 बिलियन डॉलर का लेनदेन होता है। मौजूदा समय में रोजाना 5000 से ज्यादा बिजनेस इसका प्रयोग करते हैं। बाजार में इसकी हिस्सेदारी की बात करें, तो इस कंपनी के पास वर्तमान में भारतीय पेमेंट डोमेन के 12 प्रतिशत से ज्यादा का अपनी कमांड रखती है। हालांकि अपने नए अवतार में रेजरपे कई बदलावों और चुनौतियों से गुजरा है। हर्षिल ने बताया कि, जरूरत को समझने के लिए उन्होंने कुछ पेमेंट गेटवे कंपनियों से संपर्क किया। जहां उन्हें पिछले ऑपरेशनल रिकॉर्ड, हमारे ऑफिसेस की उपस्थिति, सिक्योरिटी डिपोजिट और हाई सेट-अप फीस के लिए कहा गया। भारत में अधिकांश पेमेंट गेटवे ने अपने ऑनलाइन रिव्यू में इसी तरह के बुरे अनुभवों के बारे में बताया है। इस सभी को ध्यान में रखते हुए रेजरपे के आइडिया को हमने पेश किया।”
डॉक्यूमेंट्स और तमाम पेपरवर्क को कहा ‘न’
“आमतौर पर, पेमेंट इंटीग्रेशन के लिए कई पेज के डॉक्यूमेंट्स और तमाम पेपरवर्क की आवश्यकता होती है। हमने इसे सिंपल रखा। इसने हमारा काम आसान कर दिया। हमारे इंटीग्रेशन में आधा घंटा लगता है। “हर्षिल ने बताया कि, डिजिटल पेमेंट गेटवे का आइडिया आने के बाद वे करीब 80 बैंकरों के पास गए। लेकिन सभी ने इंकार कर दिया। आखिरकार उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिला जो उनकी मदद के लिए तैयार हुआ। दरअसल दोनों ने पहले तीन से 4 महीने अपने प्रोडक्ट को कंपनी को बेचने के लिए मोटरसाइकिल से जयपुर के चक्कर भी लगाने पड़े थे।