चुनाव से पहले अंदरूनी कलह बनी कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब, अब केरल में भी फूटा विद्रोह
कांग्रेस के शीर्ष संगठन को लेकर कलह हुई तेज। इस सियासी कसरत के बीच कांग्रेस को भारी अंदरूनी घमासान की सिरदर्दी से रुबरू होना पड़ रहा है।
नई दिल्ली : आगामी चुनाव से पहले कांग्रेस के भीतर चल रही कलह शांत होने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में बात चाहे राजस्थान की करें या फिर उसके जैसे पंजाब, छत्तीसगढ़ या केरल जैसे प्रदेशों की हर जगह कांग्रेस को अंदरूनी घमासान की सिरदर्दी से रुबरू होना पड़ रहा है।
केरल में में भी फूटा विद्रोह
केरल कांग्रेस का दूसरा सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। यहाँ भी पार्टी नेतृत्व ने बड़ी तेजी से तीन महीने पहले के सुधाकरण को प्रदेश अध्यक्ष तो वीडी सतीशन को विपक्ष का नया नेता नियुक्त कर ओमेन चांडी और रमेश चेन्निथला जैसे दिग्गज नेताओं को झटका दिया है।
प्रदेश नेतृत्व के लिए हाईकमान की पसंद के इस बदलाव की आंच अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि पिछले हफ्ते हुए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में भी यही फार्मूला अपनाया गया। जिसके बाद हाई कमान के इस फैसले को लेकर केरल कांग्रेस से कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है तो बचे हुए कुछ पार्टी छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं।
बघेल और सिंहदेव के बीच फंसा छत्तीसगढ़ का नेतृत्व
छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की नियुक्ति पहले हो गई थी और इसलिए संगठन के ढांचे में हाईकमान के लिए कोई सिरदर्दी भले नहीं है लेकिन सूबे की सत्ता में अस्थिरता की हलचल जरूर शुरू हो गई है। ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के वादे को लेकर पार्टी नेतृत्व राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को पहले अहमियत दी और फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मजबूत राजनीतिक पेशबंदी और पकड़ को देखते हुए कदम खींच लिए।
पंजाब में नहीं ख़त्म हो रहा आपसी मनमुटाव
पंजाब में अभी हाल ही में बने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच आपसी मनमुटाव थमने की जगह और बढ़ता जा रहा है। सिद्धू की गतिविधियों ने पार्टी के हाई कमान के लिए भी ख़ासा मुसीबत कड़ी कर दी है। दरअसल सिद्धू के रुख ने पंजाब में संगठन पर पकड़ बनाने की नेतृत्व की कसरत को डांवाडोल कर दिया है क्योंकि वे तो हाईकमान के अंकुश को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहे।
राजस्थान में गहलोत और सचिन का नहीं थम रहा मसला
पिछले एक साल से भी अधिक समय से राजस्थान में कांग्रेस पार्टी सरकार और संगठन के बीच समन्वय तैयार करने की कोशिशों में जुटा हुआ है मगर पार्टी द्वारा इतनी मस्सकत के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट और उनके समर्थकों को सत्ता-संगठन में मौका देने को राजी नहीं हैं। ऐसे में पार्टी के लिए मुख्यमंत्री गहलोत और सचिन दोनों ही महत्वपूर्ण किरदार हैं और यहां किसी एक के पक्ष में निर्णय लेना उसके लिए चुनौती है।
महाराष्ट्र और उत्तराखंड में भी कुछ यही है हाल
महाराष्ट्र में कांग्रेस हाईकमान ने छह महीने पूर्व नाना पटोले को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी मगर सूबे के कई बड़े नेता या तो नाराज चल रहे या फिर उनसे तालमेल नहीं बिठा पा रहे। उत्तराखंड में चुनाव को देखते हुए गणेश गोंदियाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। गोंदियाल प्रदेश कांग्रेस के चुनावी चेहरा हरीश रावत के निकट माने जाते हैं और तभी पार्टी का एक वर्तेग इस पर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुका है।
फिलहाल झारखंड और तेलंगाना में शांति
झारखंड में भी शीर्ष नेतृत्व ने पिछले हफ्ते नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति की थी और हाईकमान के लिए राहत की बात यह है कि अभी तक इसको लेकर कोई मुखर असंतोष के सुर सामने नहीं आए हैं। तेलंगाना में भी रेवंत रेडडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में नेतृत्व को मशक्कत करनी पड़ी है लेकिन उनकी नियुक्ति के बाद असंतोष फिलहाल शांत हो गया है।
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