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कारगिल दिवस : युद्ध में उत्तराखंड के 75 वीरों ने किया था सर्वस्व न्योछावर

देश पर कुर्बान होने वाले सैनिकों में उत्तराखंड के योद्धाओं का कोई सानी नहीं हैं। जब-जब भारत की आन-बान पर कोई भी संकट आया है, तो उत्तराखंड के वीरों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी है। यही वजह है कि जब भी देश में सैनिकों की शहादत को याद किया जाता है तो उत्तराखंड के वीरों के साहस के किस्से हर किसी के जुबां पर होते हैं।

बात करें वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध की तो यहां भी उत्तराखंड के जाबांज सैनिक सबसे आगे खड़े मिले। कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 सैनिकों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। इनमें 37 जवान ऐसे थे, जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के लिए देश की सरकार ने पुरस्कार भी दिया था।

देश की आजादी से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध। भारत के लिए शहादत देना उत्तराखंड के वीरों की परंपरा रही है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक वीरों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है।

कारगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के सैनिकों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। कारगिल युद्ध में भी सैनिकों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे।

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रक्षा मामलों के विशेषज्ञ बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और रणभूमि में जीत तय करने में भी इनका अहम योगदान रहा है। आजादी के बाद से अब तक उत्तराखंड के डेढ़ हजार से अधिक जाबांजों ने देश रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए हैं।

किसी मां ने अपना बेटा खोया तो किसी पत्नी ने अपना पति और कई घर उजड़ गये। फिर भी ना ही देशभक्ति का जज्बा कम हुआ और ना ही दुश्मन को उखाड़ फेंकने का दम। इस समय में भी राज्य के हजारों लाल सरहद की निगहबानी के लिए मुस्तैद हैं और देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दे रहे हैं।

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