कड़ाके की ठंड के बाद अब भीषण गर्मी के लिए रहिए तैयार
कड़ाके की ठंड के बाद अब भीषण गर्मी के लिए तैयार हो जाइए। विशेषकों का कहना है कि इस बार जैसी ठंड पड़ी वैसी ही गर्मी पड़ने के आसार भी हैं। गर्मी फरवरी के अंत में ही दस्तक दे सकती है। मार्च और अप्रैल पिछले बरसों की तुलना में अधिक गर्म रहेंगे।
आईआईटी खड़गपुर ने लंबे अध्ययन के बाद सचेत किया कि भारतीय गांवों की अपेक्षा शहरों में ज्यादा गर्मी बढ़ रही है। देश के गांवों के मुकाबले शहर ज्यादा गर्म हो रहे हैं। इस समस्या को वैज्ञानिकों की भाषा में अर्बन हीट आइलैंड कहा जाता है। यह खुलासा आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने 16 साल तक देश के 44 शहरों में रिसर्च के बाद किया है। आईआईटी के मुताबिक ये गर्मी भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकती है। हालांकि पुणे, कोलकाता, गुवाहाटी जैसे शहरों में हरियाली के कारण गर्मी कुछ हद तक काबू में है।
जानिए क्या है वजह
शहरों में बढ़ती गर्मी की वजह है यहां इस्तेमाल की जाने वाली भवन सामग्री। ये सूर्य से ऊर्जा को सोखती है जिससे गर्मी बढ़ रही है। डामर, स्टील, ईंट जैसे पदार्थ गहरे काले, भूरे रंग के होते हैं जो प्रकाश ऊर्जा की तरंगों को जल्दी अवशोषित करते हैं। फिर इसे ऊर्जा में बदल देते हैं। इसलिए ये चीजें गर्म हो जाती हैं। दूसरी ओर पेड़ों की बेतहाशा कटाई और लगातार बन रहीं पक्की सड़कें भी तापमान को बढ़ाने में भूमिका अदा कर रही हैं।
मौसम के बदलाव पर नासा भी कर रहा है काम
नासा के वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। वे इस प्रयास में लगे हैं कि किस तरह से समूची धरती को ठंडा रखा जा सकता है। नासा की सैटेलाइट, लैंडसेट तमाम क्रियाओं पर गहरी नजर रख रही है ताकि हर परिवर्तन को रिकॉर्ड किया जा सके। सतह का तापमान और पौधों की वृद्धि पर भी नजर रखी जा रही है। वैज्ञानिक इन्हीं आधारों पर लगातार हो रहे परिवर्तनों का विश्लेषण कर रहे हैं।
नासा विशेषज्ञों की सलाह है कि आने वाले समय में निर्माण और विकास कार्य मौजूदा हालात को देखकर ही किए जाएं। डामर की सड़कों, पार्किंग एरिया और छतों को अगर रिफलेक्टिव ग्रे कोटिंग से कवर कर दिया जाए तो बदलाव नजर आएंगे। ऐसा करने पर शहरी तापमान को कम किया जा सकता है खासतौर पर गर्मी के मौसम में।
मौसम विज्ञान क्या कहता है
भारतीय मौसम विज्ञान केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 1901 के बाद साल 2018 और फिर साल 2019 में सबसे ज्यादा गर्मी पड़ी थी। ये देश का सातवां सबसे गर्म साल था। दिल्ली में पिछले साल 46.2 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। इसके अलावा दक्षिणी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़ और सौराष्ट्र में भी जबरदस्त गर्मी दर्ज हुई। पूरे उत्तर भारत में जबरदस्त गर्मी पड़ी और कई शहरों में तो इसने पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
भारत के 15 सबसे गर्म शहर
जलवायु वेबसाइट एल डोराडो के कुछ समय पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक, मध्य भारत के कुछ शहरों को दुनिया के 15 सबसे गर्म शहरों में शामिल किया गया। इनमें राजस्थान के चुरू और श्रीगंगानगर का नाम प्रमुख है, जहां तापमान 48.9 और 48.6 डिग्री सेल्सियस रहता है। 2019 में चुरू में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस को छू गया था।
2020 में ओडिशा होगा देश का सबसे गर्म इलाका
मौसम विज्ञानियों की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में ओडिशा के बहुत ज्यादा गर्म होने की आशंका है। गर्मियों में यहां तापमान 2019 की तुलना में 1-2 डिग्री ज्यादा बढ़ने की आशंका है। इस साल मार्च के आखिरी सप्ताह से यहां गर्मी अपना असर दिखाना शुरू कर देगी और जून तक भीषण गर्मी पड़ सकती है। ओडिशा के अधिकतर इलाकों में 45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान दर्ज किया गया है। वैश्विक तापमान में इस साल 1.1 डिग्री सेल्सियस का इजाफा होगा।
बढती आबादी भी बढा रही है गर्मी
बढ़ती जनसंख्या भी भारतीय शहरों में प्रचंड गर्मी का कारण है। विशेषज्ञ कहते हैं कि तापमान को देखने से पहले हमें हवा की दिशा को भी देखना चाहिए। इससे पता चलता है कि कहां ज्यादा गर्मी है। मान लीजिए, अगर हवा तेलंगाना की तरफ से आ रही है तो साफ है कि तेलंगाना का तापमान ज्यादा होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि नदी या समुद्र के तटीय इलाकों के बीच कई शहर बस गए हैं, लंबी-लंबी इमारतें बन गई हैं। इसके चलते हवा की दिशा ही बदल गई है। पहले नदी या समुद्री हवाएं बिना रोक-टोक के बहतीथीं।
विशेषज्ञ बोले, अब सावधान होने का वक्त
विशेषज्ञों ने भी जलवायु परिवर्तन को लेकर चेतावनी दी है। एक वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक बेंगलुरू में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के जलवायु विज्ञानी एन.एच रवींद्रनाथ ने कहा कि आने वाले समय में इसके परिणाम खतरनाक होंगे। 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग का स्तर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। जलवायु परिवर्तन से कई समस्याएं पैदा होंगी। कभी भी और कहीं भी गर्म हवाओं का चलना और तापमान बढ़ना, अनियमित बरसात, सूखा, बाढ़ जैसे हालातों का हमें सामना करना होगा। मौसम में असंतुलन बढ़ेगा जिससे कई गंभीर मुश्किलें पैदा होंगी।
नासा के एक्सपर्ट ने भी चेताया
नासा के वरिष्ठ जलवायु विशेषज्ञ व शोधकर्ता जेम्स हैन्सेन भी गंभीर हालात की तरफ इशारा कर चुके हैं। उन्होंने वैश्विक स्तर पर ‘अर्बन हीट आईलैंड’ और ग्लोबल वार्मिंग पर चिंता जाहिर करते हुए लोगों को चेताया है। उनका कहना है कि अगर कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन यूं ही बढ़ता रहा तो ये मानव जीवन के अंत का संकेत है। जेम्स नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडी के प्रमुख और पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1980 में ही ग्लोबल वार्मिंग का अलार्म बजाया था। तब से 30 साल बीत चुके हैं और ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ती ही जा रही है और मौसम में अचानक परिवर्तन अक्सर ही नजर आने लगा है।