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युवराज सिंह ऐसे बने एक सफल क्रिकेटर, जानें उनके संघर्ष की कहानी 

भारतीय टीम के पूर्व ऑलराउंडर युवराज सिंह (Yuvraj Singh) ने को क्रिकेट की दुनिया का सिक्सर किंग कहा जाता है. उन्होंने क्रिकेट में कई बड़े रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं. 2011 वर्ल्डकप में युवराज मैन ऑफ द सीरीज रहे थे. हालांकि युवराज सिंह (Yuvraj Singh) बचपन में क्रिकेटर नहीं बनना चाहते थे बल्कि उनका पसंदीदा खेल कुछ और था. उन्होंने बताया कि बचपन में वह स्केटिंग और टेनिस को बहुत पसंद किया करते थे.  

पूर्व भारतीय ऑल राउंडर युवराज सिंह के क्रिकेटर बनने के लिए रोलर स्केट्स छोड़ने की कहानी से हर कोई वाकिफ है, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि अपने शुरुआती दौर में वह बाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे। युवराज सिंह ने खुद इस बात का खुलासा किया है कि 11 साल की उम्र तक कैसे वह तेज गेंदबाज थे। वह तेज गेंदबाजी को आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन वाकये ने उसका मन बदल दिया और वह बल्लेबाजी की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करने लगे। 

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युवराज सिंह ने स्पोर्ट्सकीड़ा को दिए इंटरव्यू में बताया, ”मैं पालम में बिशन सिंह बेदी के कैंप में था। मैं 11-12 साल का रहा होंगा। मैं एक सीमर था, एक तेज गेंदबाज था। मैं उस वक्त बल्लेबाज नहीं था। मुझे याद है कि उस मैच में मैं बल्लेबाजी के लिए गया और छक्का जड़ा। इसके बाद मैंने शतक जड़ा। मैं 90 पर बल्लेबाजी कर रहा था, तब तक मैंने एक भी छक्का नहीं मारा था। तब एक लेफ्ट आर्म स्पिनर आया। मुझे लगता है वह अंगद बेदी था। मैंने उसे दो छक्के जड़े और गेंद बाउंड्री लाइन के पार पहुंची। 11-12 साल की उम्र में आपके अंदर उतनी ताकत नहीं होती है।”

टेनिस के कारण शुरू किया क्रिकेट खेलना

युवराज सिंह (Yuvraj Singh) ने स्‍पोर्ट्सकीड़ा को दिए इंटरव्यू में बताया, ‘मुझे स्केटिंग और टेनिस बहुत पसंद था. मैं टेनिस में करियर बनाना चाबता था. मैंने अपनी मां को बताया था कि मुझे रैकट चाहिए था और उन्होंने पिता को बताया. पापा थोड़ा गुस्सा हुए क्योंकि उस समय एक रैकेट 2500 रुपए का आता था. उन्होंने मुझे दिलाया लेकिन वह टूर्नामेंट के दौरान टूट गया. ‘ इसके बाद युवराज के अंदर हिम्मत नहीं थी कि वह दोबारा पिता से रैकेट मांगे. युवराज ने कहा, ‘रैकेट तोड़ने के बाद मैं पापा से दोबारा नहीं मांग सकता था. इसलिए मैंने सोचा कि कुछ दिन क्रिकेट खेलता हूं फिर उनसे रैकेट के मां लूंगा लेकिन मुझे क्रिकेट इतना पसंद आया कि मैंने टेनिस खेलना ही छोड़ दिया.’

टेनिस की ओर लौटे युवराज सिंह
रिटायरमेंट के बाद युवराज एक बार फिर टेनिस की ओर मुड़ गए हैं. वह रिटायरमेंट के बाद फिटनेस के लिए टेनिस खेलते हैं. उन्होंने बताया, ‘अब मैं हर समय टेनिस खेलता हूं. और सच कहूं तो क्रिकेट को बिलकुल मिस नहीं करता .मैं लगभग हर दूसरे दिन टेनिस खेलता हूं.

युवराज सिंह ने बताया कि उन्हें सचिन तेंदुलकर ने उन्हें सलाह दी थी कि रिटायरमेंट के बाद भी खेल से जुड़े रहना चाहिए. युवराज ने कहा, ‘पाजी ने मुझसे कहा कि चाहे गोल्फ हो या टेनिस कुछ न कुछ खेलते रहना चाहिए. मुझे टेबल टेनिस, बिलियर्ड्स औऱ स्नूकर पसंद है और मैं हर रोज कुछ न कुछ खेलता हूं.

भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह ने अपनी किताब ‘द टेस्ट ऑफ माइ लाइफ’ में कैंसर से अपने संघर्ष की दास्तान को पेश किया है.

इस किताब में उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैंसर के कारण उनकी जिंदगी में क्या-क्या बदलाव हुए. ये किताब मंगलवार को रिलीज़ हो रही है.

भारत को 2011 में क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताने में अहम भूमिका अदा करने वाले युवराज सिंह को 2012 के शुरुआत में कैंसर होने की बात सामने आई.

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अमरीका के बोस्टन शहर में दो महीनों से भी ज्यादा समय तक उनका इलाज चला. ये उनका जज्बा ही था कि भारत वापसी के चंद महीनों बाद युवराज की क्रिकेट टीम में वापसी हुई और उन्होंने श्रीलंका में टी20 वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया.

संघर्ष की कहानी

कैंसर से सफलतापूर्वक जूझने वाले युवराज सिंह लिखते हैं, “जब आप बीमार होते हैं, जब आप पूरी तरह निराश होने लगते हैं, तो कुछ सवाल एक भयावह सपने की तरह बार बार आपको सता सकते हैं. लेकिन आपको सीना ठोंक कर खड़ा होना चाहिए और इन मुश्किल सवालों का सामना करना चाहिए.”

अमरीका से इलाज कराने के बाद भारत लौटने के अनुभवों को उन्होंने विस्तार से अपनी किताब में लिखा है.

वो लिखते हैं, “मेरी मुलाकात दिल्ली में इंडियन कैंसर सोसाइटी की मानद सचिव से हुई. उन्होंने कहा, ‘युवी, जिस तरह आपने खुल कर अपनी लड़ाई लड़ी है, आप जाने अंजाने कैंसर से बचने वाले लोगों के लिए एम्बेसडर बन गए हैं. इस देश में जहां कैंसर के पचास लाख मरीज हैं, वहां ये मानना मुश्किल लगता है कि किसी सिलेब्रिटी को कभी ये बीमारी नहीं हुई. इससे पहले कैंसर से पीड़ित कोई जानी मानी हस्ती मेरे दिमाग आती है तो वो हैं नरगिस दत्त.’”

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