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Holi Special: देवभूमि उत्तराखंड की होली के बारे में यह बातें नहीं जानते होंगे आप

पहाड़ पर बरसों से चीर बांधने के बाद शुरू होती है होली, खड़ी, बैठी और महिलाओं की होली की है परंपरा

होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। समस्त भारत में अलग -अलग राज्यों के लोग होली अलग अलग तरीके से मनाते हैं। देश में कुछ राज्यों में या क्षेत्रों में विशिष्ट होली मनाई जाती है ,उनमे एक है कुमाउनी होली। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष होली मनाई जाती है। यह होली लगभग दो माह चलती है। बसंत पंचमी से रंग एकादशी तक बैठक होली होती है। और फाल्गुन रंग एकादशी से रंगभरी खड़ी होली शुरू हो जाती है।खड़ी होली की शुरुवात एकादशी के दिन चीर बंधन से होती है।

जानिए चीर बंधन के बारे में

आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि फाल्गुन रंग एकदशी के दिन कुमाऊं में होली की शुरुवात चीर बंधन से होती है। चीर बंधन में एक लकड़ी पर अलग अलग रंग की करतन बांध कर उसे एक ध्वजा का रूप देते हैं। उसके बाद विधि विधान से उसकी पूजा करके उसे एक नवयुवक की जिम्मेदारी पर सौप दिया जाता है। इसी के साथ रंगवाली खड़ी होलियों का शुभारम्भ हो जाता है। चीर को होलिका के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।

यह मान्यता है चीर बंधन के पीछे

आचार्य राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि कुमाऊं में चीर को होलिका का प्रतीक माना जाता है। रंग एकादशी के दिन इसमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। कई क्षेत्रों में निशाण बंधन किया जाता है। राजाओं के प्रतीक लाल ध्वज को चीर का प्रतीक मन जाता है। कुमाऊं मंडल में चीर के लिए अलग अलग मान्यताएं है। कहीं इसे होलिका मान कर पूरी होली में घुमाया जाता है। और होलिका दहन के दिन होलिका के रूप में इसका दहन किया जाता है।

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इसके दहन के दौरान पूरी कुमाउनी अंतिम संस्कार की विधि विधानों का पालन किया जाता है। कई जगह होलिका दहन के दिन इसके करतनो को प्रसाद के रूप में ग्राम वासियों को दे दिया जाता है। मान्यता है कि चीर के कपड़े को घर में रखने से बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। कही सार्वजानिक स्थान पर बाँधी जाती है और कही मंदिर में चीर बाँधी जाती है।

चीरहरण की परंपरा भी है उत्तराखंड में

कुमाउनी होली में चीर हरण की परम्परा भी होती है। एक गांव के लोग अगर दूसरे गावं की चीर में से कपडे का टुकड़ा चुराकर सफलता पूर्वक अपने गांव चला जाता है तो , जिस गावं की चीर चोरी हुई उसकी होली अगले साल से बंद हो जाती है। गावं में चीर को दूसरे गावं के लोगों की पहुंच से बचाने के लिए दिन – पहरा दिया जाता है।

चतुर्दशी के दिन शिव मंदिर में क्षेत्र की सभी होलियों का मिलन होता है , इसलिए वहां चीर को बलिष्ठ युवक को सौपा जाता है। पहले कभी कभी चीर हरण के दौरान खून खराबा भी हो जाता था।  हालाँकि अब सब समझदार है। हसी ख़ुशी सौहार्द से होली का निर्वहन करते हैं। इसलिए अब होलियों में चीरहरण की परंपरा नहीं होती होती या नाममात्र की रह गई है।

उत्तराखंड की खड़ी होली

कुमाऊं की खड़ी होली का अपना ही रंग है. सरोवर नगरी नैनीताल में मां नंदा देवी के मंदिर में होला-होली गायन किया गया. होली के गीतों के गाते होल्यारों की ये तस्वीर आपको ये बताने के लिए काफी है, कि पहाड़ में किस तरह से होली खेली जाती है. अगले कुछ दिन पहाड़ में अलग-अलग जगह से होली के ऐसे ही रंग देखने को मिलेंगे.

150 साल से ज्यादा पुरानी है अल्मोड़ा की बैठकी होली

अल्मोड़ा की बैठकी होली को 150 साल से भी अधिक पुराना बताया जाता है. यह होली पौष महीने के पहले रविवार से शुरू होती है. देर रात तक अल्मोड़ा में रंगकर्मी, कलाकार, होली गायक एवं स्थानीय लोग बैठकी होली के रंग में रंगे रहते हैं. महफिलों में बैठकी होली की गूंज रहती है. वैसे भी  कुमाऊं की बैठकी होली का अपना ही एक रंग है,

अल्मोड़ा की बैठकी होली सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. यहीं से बैठकी होली की परंपरा शुरू हुई थी.  इस बैठकी होली की खासियत है कि यह शास्त्रीय रागों पर गायी जाती है और इसमें जमने वाली महफिल देखने लायक होती है. देर रात तक हुलियार बैठकी होली का रंग जमाये रखते हैं.

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महिलाओं की होली में बिखरते हैं रंग

कुमाऊं में खासकर तीन तरीके से होली का जश्न मनाया जाता है जिसे होली की विधाएं कहते हैं. यहां बैठकी होली, खड़ी होली और महिलाओं की होली काफी प्रसिद्ध है. सबसे पहले बैठकी होली होती है और उसके बाद खड़ी होली. महिलाओं की होली का अपना ही आकर्षण है जिसमें स्वांग भी शामिल है.

बैठकी होली में जहां शास्त्रीय राग में होली के गीत सुनने को मिलते हैं, वहीं खड़ी होली में ढोल और मंजीरे के साथ गोल घेरे में अलग अंदाज में खड़ी होली गायी जाती है.  खड़ी होली को बैठकर भी गा सकते हैं. लेकिन इसका आकर्षण खड़े होकर बीच में ढोल और मंजीरे के साथ एक गोल घेरे में गाते हुए है. अगर आपको उत्तराखंड की होली देखनी है तो इस बार आप अल्मोड़ा की सैर कर सकते हैं और यहां की बैठकी, खड़ी और महिलाओं की होली को देख सकते हैं.

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