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World Cancer Day: कैंसर को इन्‍होंने हराया, आप भी हरा सकते हैं

World Cancer Day: कुछ शब्द ऐसे हैं जिनको सुनकर डर लगता है। एक्सीडेंट और कैंसर ऐसे ही शब्द हैं। डर वाजिब है लेकिन इनसे ज्यादा डरने की जरूरत नहीं। कैंसर से तो बिल्कुल भी नहीं। समय पर उपचार से इसका सौ फीसद निदान संभव है। आज के दौर में डाक्टर यह करके दिखा रहे हैं। बरेली के एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज समेत देश के तमाम अस्‍पतालों में कैंसर का सफल इलाज हो रहा है।
cancer day SRMS
एसआरएमएस इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज की ओर से विश्व कैंसर दिवस कैंसर को हराने वाले योद्धाओं का सम्मान किया गया। इसमें शामिल होने के लिए आसपास के जिलों के भी कैंसर योद्धा परिवार के साथ पहुंचे। सभी ने खुद की कहानी बता कर कैंसर पीड़ितों को जीतने का हौसला दिया और भरोसा दिलाया कि लाइलाज समझी जाने वाली इस बीमारी से पाजिटिव सोच और समुचित इलाज के साथ आसानी से निपटा जा सकता है। कार्यक्रम में सभी का स्वागत डाक्टर अरविंद कुमार किया।

डा.पियूष अग्रवाल ने कैंसर के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कैंसर किसी भी परिवार के लिए डेथ प्वाइंट है। फिल्मों में भी किसी पात्र को मारना होता है तो निर्देशक उसे कैंसर पीड़ित दिखा देता है। बात चाहें फिल्म आनंद की हो। जहां पात्र आनंद को लिंफोसरकोमा इन इंटेस्टाइन से पीड़ित दिखाया गया चाहें माइ नेम इज खान में शाहरुख खान की। ये फिल्में समाज में कैंसर की विभीषिका को बढ़ा कर दिखाती हैं। जबकि असल तस्वीर ऐसी नहीं हैं। कैंसर पीड़ित व्यक्ति भी इसे हरा कर अपनी बाकी जिंदगी खुशहाली से व्यतीत करते हैं।

हां, शुरूआती चरण में ही इसको पहचानना जरूरी है। इसके लिए तीन बाते सबसे जरूरी हैं। पहला विशेषज्ञ डाक्टर द्वारा इलाज, दूसरा पौष्टिक आहार और तीसरा पाजिटिव सोच आवश्यक है। तीनों होने पर कैंसर पीड़ित को आसानी से बचाया जा सकता है। हम एसआरएमएस द्वारा लंदन और न्यूयार्क में दिया जाने वाला इलाज भोजीपुरा में ही दे रहे हैं। समारोह में कैंसर विजेताओं को एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देवमूर्ति और ट्रस्ट के डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन आदित्य मूर्ति ने सम्मानित किया। कैंसर विजेताओं को परिवार के पांच सदस्यों के सहित एसआरएमएस में इलाज के लिए कार्ड दिया गया।
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इलाज के अभाव में किसी की नहीं होगी मौतः देवमूर्ति
एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देवमूर्ति ने कैंसर या किसी भी बीमारी पर इलाज के अभाव में किसी की भी मौत न होने देने का विश्वास दिलाया। उन्होंने कहा कि मेरे पिता जी (स्वर्गीय राममूर्ति) को अंतिम दिनों में दिल का दौरा पड़ा था। मंत्री और सांसद रहने के बाद भी उन्हें बरेली में समुचित इलाज नहीं मिल पाया। यहां ठीक से इलाज संभव ही नहीं था। स्वास्थ्य सुविधा कहने भर को थीं। दिल का दौरा पड़ने पर दस हजार का एक इंजेक्शन दिया जाता था। वह भी सभी को मिलता नहीं था। दिल्ली और लखनऊ न पहुंच पाने वाले अनगिनत लोग बरेली में ही दम तोड़ देते थे। यह हाल देख कर हमने इलाज के अभाव में किसी की भी मौत न होने देने का संकल्प लिया। 2005 में इसी संकल्प के साथ एसआरएमएस मेडिकल कालेज शुरू हुआ। यहां हम सभी को सस्ता और दुनिया का बेहतरीन इलाज उपलब्ध करा रहे हैं।

नुक्कड़ नाटक के जरिये कैंसर से जागरूक
कार्यक्रम में एसआरएमएस इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज के रेजीडेंट डाक्टरों द्वारा नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। इसमें पात्र गीता के जरिए ब्रेस्ट कैंसर और इसके इलाज में बाबाओं का चक्कर लगाने और फिर समुचित इलाज से बीमारी का सौ फीसद सही इलाज होने की जानकारी सभी को दी गई। नाटक में डाक्टरों ने संदेश दिया कि अगर कोई भी बीमारी या शरीर में कोई भी गांठ एक माह से ज्यादा है तो वह कैंसर हो सकता है। विशेषज्ञ चिकित्सक से इसकी शीघ्र जांच करनी जरूरी है। कैंसर के उपचार में बरती जाने वाली कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से घबराने की किसी को भी जरूरत नहीं। इसका कोई भी दुष्परिणाम शरीर पर नहीं पड़ता।

परिवार के साथ यह कैंसर विजेता रहे मौजूद
मिथिलेश सक्सेना,  आभा सिंह, बीना अग्रवाल, अरशद सईद, कुमुद सक्सेना, राजेश कुमार, रानी, श्याम बिहारी, अनोज मिश्रा, कमल अरोरा, खुशनुमा, झल्लू राम, मुरलीधर, अशोक कुमार, अर्चना सक्सेना, सुरेश चंद्र गुप्ता और भगवान देवी।

विजेता-01
भोजीपुरा निवासी रामभरोसे लाल की पत्नी भगवान देवी (61) को आठ वर्ष पहले पेट में दर्द की शिकायत थी  और बच्चेदानी से गंदा पानी और खून लगातार आता था। खाना भी हजम नहीं होता था और थोड़ा सा चलने में थक जाती थीं। निजी अस्पताल में जांच कराई। वहां इन्हें बच्चेदानी के कैंसर की जानकारी मिली। ज्यादा खर्च होने के चलते रामभरोसे ने पत्नी को एसआरएमएस में भर्ती कराया। यहां रेडियोथेरेपी और कीमो किया गया। आज भगवान देवी पूरी तरह स्वस्थ हैं।

भर्ती – सात मई 2012
इलाज पूर्ण- आठ जुलाई 12

रामभरोसे की जुबानी उनकी कहानी-
कैंसर का नाम सुन कर हम लोग डर गए थे। लाइलाज बीमारी और इलाज महंगा होने की बात सुनते थे। लेकिन एसआरएमएस के डाक्टरों ने सही जानकारी दी। भरोसा दिया कि कैंसर लाइलाज नहीं। सही समय पर इलाज से इसका खात्मा संभव है। डाक्टरों और स्टाफ ने हिम्मत बंधाई। आज पत्नी पूरी तरह स्वस्थ है। एसआरएमएस के डाक्टरों ने भगवान बन कर भगवानदेवी की जान बचाई है। इसके लिए सभी का दिल से धन्यवाद।
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विजेता-2
माडल टाउन (बरेली) निवासी व्यवसायी कमल अरोरा (52) को लगातार सिरदर्द की समस्या थी। चक्कर आता था और यह गिर पड़ते थे। नर्सिंग होम में दिखाया। जांच में ब्रेन ट्यूमर का पता चला। सर गंगाराम में इलाज शुरू हुआ। दुर्लभ ब्रेन कैंसर (एनाप्लास्टिक एस्ट्रोसिटोमा) की जानकारी मिली। वहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया। इस पर एसआरएमएस लाया गया। अब कमल पूरी तरह स्वस्थ हैं।

भर्ती – 11 अगस्त 2014
इलाज पूर्ण- 20 अगस्त 2016

कमल की जुबानी, उनकी कहानी
इलाज के दौरान दुर्लभ बीमारी की जानकारी मिलने पर मैं पूरी तरह टूट गया था। परिवार का भी यही हाल था। फिर भी परिवार ने हौसला रखा और मुझे भी हिम्मत बंधाई। एसआरएमएस ने भी उम्मीद बधाई। यहां के डाक्टरों ने भरोसा दिलाया कि मैं स्वस्थ हो जाऊंगा। आखिरकार डाक्टरों की बात और परिवार की उम्मीद सच हुई। एसआरएमएस की वजह से आज मैं स्वस्थ जीवन जी रहा हूं।
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विजेता-03
प्राइवेट जाब करने वाले आलमगिरीगंज निवासी राजेश कुमार (52) के गले में गांठ थी। खाने-पीने में परेशानी होने पर ये एसआरएमएस (25 अगस्त 13) पहुंचे। जांच में गले का कैंसर पता चला। इस घरवालों के साथ राजेश भी डर गए। लेकिन डा.पियूष अग्रवाल ने हिम्मत बंधाई। पूरी तरह इलाज से बीमारी ठीक होने का भरोसा दिलाया। रेडियोथेरेपी और कीमो शुरू हुआ। करीब दो महीने इलाज चला। आज राजेश पूरी तरह स्वस्थ हैं।

भर्ती – 25 अगस्त 2013
इलाज पूर्ण- 25 अक्टूबर 13

राजेश की जुबानी, उनकी कहानी
कैंसर की जानकारी पर मैं और परिवार पूरी तरह टूट गए थे। लोगों ने इलाज के लिए एसआरएमएस जाने की सलाह दी। वहां जाकर हिम्मत बंधी। डाक्टरों ने भी हौसला दिया। विश्वास हुआ कि कैंसर का भी इलाज संभव है। भगवान के आशीर्वाद और डा.पियूष की मेहनत से एक साल से कम समय में मैं पूरी तरह ठीक हो गया। भरोसा हो गया है कि कैंसर लाइलाज नहीं। अब मैं सभी को इलाज के लिए एसआरएमएस जाने की सलाह देता हूं।
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विजेता-04
बहेड़ी के रिछा कस्बा निवासी खुशनुमा (39) को सात साल पहले ब्रेस्ट कैंसर की जानकारी हुई। सभी लोग खौफजदा हो गए। लोगों के कहने पर खुशनुमा को एसआरएमएस लाया गया। जहां डाक्टरों ने कैंसर का पहला चरण बताया और परेशान न होने की सलाह दी। आपरेशन हुआ। रेडियोथेरेपी और कीमों हुई और आठ महीने में खुशनुमा को एसआरएमएस से डिस्चार्ज कर दिया गया। आज वह परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही हैं।

भर्ती – 27 फरवरी 2013
इलाज पूर्ण- पांच नवंबर 13

खुशनुमा की कहानी, उनकी जुबानी
ब्रेस्ट कैंसर की जानकारी हमारे लिए सदमे से कम नहीं थी। लेकिन राममूर्ति मेडिकल कालेज के डाक्टरों ने हौसला बढ़ाया। कहा कि इस बीमारी का इलाज संभव है। इलाज शुरू हुआ। सर्जरी हुई। रेडियोथेरेपी और कीमो भी किया गया। इलाज में ज्यादा खर्च भी नहीं आया। एसआरएमएस के डाक्टर पियूष अग्रवाल की नेकदिली की बदौलत ही आज मैं पूरी तरह स्‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍वस्‍थ हूूं।

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