
महाराष्ट्र में चल रहे सियासी भूचाल के भी इस समय शिवसेना बड़े संकट से जूझ रही है। सियासी संकट के बीच एक तरफ एकनाथ शिंदे की अगुवाई मैं शिवसेना के बागी विधायकों ने उदय ठाकरे के नेतृत्व वाली कांग्रेस एनसीपी गठबंधन सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो वहीं दूसरी तरफ इस बात को लेकर दो गुटों में जंग छिड़ी हुई है कि असली शिवसेना कौन है। महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच आग चुनाव आयोग की अहम भूमिका होगी। बता दें कि चुनाव आयोग के मुताबिक आवंटित चयन आयोग करता है लेकिन शिवसेना पर हक जमाने और चुनाव चिन्ह तीर कमान को पाने की उनकी तथाकथित को गिरा आसान नहीं रहने वाली है।
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चुनाव आयोग किसी भी पार्टी को मान्यता देने चुनाव चिन्ह आवंटित करने का काम 1968 के चुनाव के आरक्षण और आवंटन आदेश के तहत करता है। बता दें कि जब कोई भी राजनीतिक दल में विधायिका के बाहर विभाजन का मुद्दा उठता है तो 1968 के सिंबल आर्डर का पेरा 15 लागू होता है जिसने या लिखा हुआ है कि जब आयोग संतुष्ट हो जाएगी किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल में विरोधी गुड़िया समूह है जिनमें से हर एक दावा कर रहा हो कि वही पार्टी है जब चुनाव मामले में सभी उपलब्ध तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुनवाई करेगा।
चुनाव आयोग का यह नियम मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय क्षेत्रीय दलों के विवादों पर लागू होता है ।