
जब पहली बार 1983 में भारत बना था वर्ल्ड चैम्पियन
1983 विश्व कप का आयोजन एक बार फिर इंग्लैंड में हुआ. इसी विश्व कप में पहली बार 30 यार्ड सर्किल का प्रयोग किया गया. जिसके तहत इस घेरे के अंदर हर समय कम से कम चार क्षेत्ररक्षक खिलाड़ी होने चाहिए. यह विश्व कप भारत के लिए एक यादगार लम्हा लेकर आया जब उसने पहली बार विश्व कप जीता. 1983 विश्व कप में आठ टीमों ने हिस्सा लिया. चार-चार के दो ग्रुपों में टीमों को बांटा गया. इस बार अंतर सिर्फ ये हुआ कि अब ग्रुप की टीमों को आपस में एक-एक नहीं दो-दो मैच खेलने थे. वाइड और बाउंसर गेंदों के लिए भी नियम कड़े किए गए थे. ग्रुप ए में इंग्लैंड, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड और श्रीलंका की टीमें थी, तो ग्रुप बी में वेस्टइंडीज, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जिम्बाब्वे की टीमें.
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ग्रुप ए में इंग्लैंड की टीम ने अपना दम दिखाया. उसने पाकिस्तान और श्रीलंका की टीमों को दो-दो बार हराया. हालांकि पाकिस्तान और न्यूजीलैंड की टीमों ने तीन-तीन मैच जीते लेकिन रन गति के आधार पर सेमीफाइनल में जगह मिली पाकिस्तान को. ग्रुप बी में भारत ने इस विश्व कप की शानदार शुरुआत की. उसने अपने पहले ही मैच में विश्व चैम्पियन वेस्टइंडीज की टीम को 34 रनों से हराया. भारत ने ऑस्ट्रेलिया और जिम्बाब्वे को भी मात दी. भारत ने छह में से चार मैच जीते और वेस्टइंडीज के साथ सेमीफाइनल में पहुंचने का गौरव हासिल किया. पहले सेमीफाइनल में मेजबान इंग्लैंड का मुक़ाबला भारत से हुआ. कपिल देव, रोजर बिन्नी और मोहिंदर अमरनाथ की शानदार गेंदबाज़ी के कारण भारत ने इंग्लैंड को 213 रनों पर ही समेट दिया. जब बल्लेबाज़ी की बारी आई, तो अमरनाथ, यशपाल शर्मा और संदीप पाटिल ने शानदार बल्लेबाज़ी कर भारत को 55वें ओवर में ही चार विकेट के नुक़सान पर जीत दिला दी. दूसरे सेमीफाइनल में पाकिस्तान को वेस्टइंडीज ने बुरी तरह हराया. पहले बल्लेबाज़ी करते हुए पाकिस्तान की टीम ने 60 ओवर में आठ विकेट पर 184 रन बनाए. जवाब में वेस्टइंडीज ने दो विकेट पर ही लक्ष्य हासिल कर लिया. रिचर्ड्स 80 और गोम्स 50 रन पर नाबाद रहे.

फाइनल में वेस्टइंडीज का मुकाबला था भारत से. एक ओर थी दो बार ख़िताब जीतने वाली वेस्टइंडीज की टीम तो दूसरी ओर थी पहले के विश्व कप मैचों में खराब प्रदर्शन करने वाली भारतीय टीम. वेस्टइंडीज ने भारत को सिर्फ़ 183 रनों पर समेट कर शानदार शुरुआत की और जवाब में एक विकेट पर 50 रन भी बना लिए. वेस्टइंडीज समर्थक जीत का जश्न मनाने की तैयारी करने लगे. लेकिन मोहिंदर अरमनाथ और मदन लाल ने शानदार गेंदबाज़ी की और मैच का पासा ही पलट दिया. वेस्टइंडीज की पूरी टीम 140 रन बनाकर आउट हो गई और भारत पहली बार विश्व कप का विजेता बना.
1983 वर्ल्ड कप जीतने के बारे में सोचा तक नहीं!
नई पीढ़ी को शायद कभी ये अंदाज़ा भी नहीं हो सकता है कि 1983 (1983 World Cup Win) से पहले भारतीय क्रिकेट के हालात क्या थे. 25 जून को वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ फाइनल में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले कृष्णामाचारी श्रीकांत ने मुझे बताया कि उस टूर्नामेंट में तो वो फैन-ब्वॉय की तरह खेलने गए थे. श्रीकांत ने बताया कि कैसे वो विवियन रिचर्ड्स के सामने खुद का परिचय करके हाथ मिलाने गये जैसे कोई फैन करता हो. आखिर, ऐसा हो भी क्यों ना? उस मैच से पहले वेस्टइंडीज़ को हराने के बारें में कोई सोच ही नहीं सकता था. वर्ल्ड कप में तो कम से कम नहीं. सिर्फ एक शख्स को छोड़कर. वो शख़्स थे कप्तान कपिल देव. वर्ल्ड कप से ठीक पहले कपिल देव की टीम ने कैरेबियाई टीम को बर्बिस में उनके घरेलू मैदान पर टीम इंडिया ने हराया था. ये वन-डे क्रिकेट में अपने घर पर वेस्टइंडीज़ की सिर्फ दूसरी हार थी.
सिर्फ कपिल को था जीत का भरोसा
बस, यही वो जीत थी जिसने 1983 वर्ल्ड कप का बीज बोया. उसके बाद टूर्नामेंट के पहले मैच में भी भारत ने जब वेस्ट-इंडीज़ को मात दी तो आलोचकों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया. आखिर, लगातार 2 वर्ल्ड कप जीतकर आने वाले कैरेबियाई टीम की ये सिर्फ पहली हार थी जबकि इस टूर्नामेंट से पहले भारतीय टीम ने 40 मैचों में से 28 मैच गंवाये थे और वर्ल्ड कप में इकलौती जीत सिर्फ एसोसिएट मुल्क ईस्ट अफ्रीका के ख़िलाफ़ ही रही थी. लेकिन, कपिल देव को इन आंकड़ों और उदासीन इतिहास से कोई फर्क नहीं पड़ता था. आखिर, वो भारत के पहले ऐसे गेंदबाज़ थे जिन्होंने तेज़ गेंदबाज़ी के मोर्चे पर खुद को वर्ल्ड-क्लास साबित किया था. वहीं अब वो अपनी टीम के साथ पूरी दुनिया को साबित करने का सपना देख रहे थे.
मदन लाल की वो गेंद जिसने भारत की जीत तय की!
मदन लाल तो मानो विव रिचर्ड्स (Viv Richards) को आउट करके भारतीय क्रिकेट में हमेशा के लिए अमर हो गये. खुद, मदनलाल ने मुझे एक बार कहा था कि जितनी गेंदें मैंनेअपने करियर में फेंकी(लगभग 10 हज़ार) नहीं है उससे ज़्यादा लेख तो अकेले सिर्फ रिचर्ड्स को आउट करने वाली गेंद पर लिखी जा चुकी है. मदन लाल बेहद ईमानदार और बेबाक बोलतें हैं. आज भी उनका कहना है कि लोग अक्सर ये दलील देतें है कि जब तक आप सपने देखोगे नहीं आप उसे पूरा नहीं कर सकते लेकिन हकीकत तो यही है कि उन्होंने कभी भी वर्ल्ड कप जीतने का सपना भी नहीं देखा था! और कमोबेश ऐसी ही कहानी उस टीम के लगभग हर सदस्य की है और इसलिए हैरानी नहीं होती है कि जब 1983 की जीत पर एक फिल्म बन चुकी है क्योंकि वाकई में वो हकीकत या सपना नहीं बल्कि एक पूरी फिल्मी कहानी ही है.