लॉकडाउन में बढ़ी महिलाओं के साथ हिंसा: ब्रेकथ्रू ने 9 राज्यों में किया ऑनलाइन रैपिड सर्वे
महिलाओं पर बढ़ा काम का बोझ और लड़कियों की पढ़ाई पर भी पड़ा असर
लॉकडाउन के दौरान पुरूष के बीमार होने पर महिलाओं ने उठाई खरेलू खर्चे की भी जिम्मेदारी
रैपिड सर्व में सबसे ज्यादा 42.5 फीसदी लोग उत्तर प्रदेश से
लखनऊ, 16 जुलाई 2021, कोविड और लॉकडाउन का असर जहां लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा है वहीं इसनें महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर कई अन्य तरह से भी प्रभाव डाला है।
इसकी वजह से महिलाओं पर हिंसा में बढ़ोत्तरी देखी गई है वहीं उन पर काम का बोझ भी बढ़ गया है। लड़कियों की पढ़ाई भी छूटी है जिससे उन पर कम उम्र में शादी का दवाब भी बढ़ गया है।
हाल ही में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली स्वंयसेवी संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा कराए गए सर्वे के आँकड़े इस ओर साफ इशारा करते हैं।
रैपिड सर्वे में शामिल हुए 9 राज्यों के लोग
यह सर्वे में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, दिल्ली, असम ,राजस्थान, केरला महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ किया गया।
जिसमें किशोर-किशोरियों, युवाओं, कम्युनिटी डेवलपर, शिक्षकों, फ्रंटलाइन वर्कर (आशा-आंगनबाड़ी आदि) और पंचायत के सदस्य शामिल रहे।
रैपिड सर्वे में कुल 318 लोग शामिल हुए जिसमें 70 फीसदी औरतें और 30 फीसदी पुरूष शामिल थे।
रैपिड सर्व में 42.5 फीसदी उत्तर प्रदेश, बिहार से 19.5 फीसदी, हरियाणा से 19.2 फीसदी,दिल्ली से 11 फीसदी, असम से 1.9
फीसदी,राजस्थान से 0.6 फीसदी, केरला,महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से 0.3 फीसदी लोगों ने हिस्सा लिया।
इसमें से ग्रामीण इलाकों से 72 फीसदी और 28 फीसदी शहरी इलाकों से थे।
इस रैपिड सर्वे के परिणाम पर ब्रेकथ्रू की राज्य प्रमुख ( उत्तर प्रदेश) कृति प्रकाश कहती है कि कोविड और लॉकडाउन ने महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव और हिंसा और अधिक बढ़ा दिया है।
उनके साथ जहां हिंसा बढ़ी है वहीं घर के काम के बढ़ते बोझ के साथ ही घरेलू खर्चों को उठाने की जिन्मेदारी भी उन पर आ गई है।
लड़कियों की पढ़ाई छूटी है तो कम उम्र में उन पर शादी का दबाव भी बढ़ा है।
वो आगे कहती है कि समानता वाला समाज बनाने के लिए अब महिलाओँ और लड़कियों के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है।
लॉकडाउन में पुरूषों का छूटा रोजगार तो महिलाओं पर बढ़ी हिंसा
सर्वे में 70 फीसदी पुरूषों और 72 महिलाओं ने स्वीकार किया कि कोविड की वजह से हुए लॉकडाउन ने रोजगार पर बुरा असर डाला है।
रोजगार छिनने की वजह से पुरूष जहां आक्रमक हो गए वहीं उन्होंने जरा-जरा सी बात पर महिलाओं के साथ हिंसा शुरू कर दी है।
वहीं दोनों में से कुल 42 फीसदी ने कहा कि उन्होंने अपने आस-पास देखा है और खुद अनुभव किया है कि कोविड/लॉकडाउन की वजह से हिंसा बढ़ी है।
78.1 फीसदी शहर के व 82.2 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र के उत्तरदाताओं ने माना कि लड़कियों और महिलाओं के साथ दोनों के साथ हिंसा हुई है।
शहरी क्षेत्रों के 78.5 फीसदी ने कहा कि हिंसा करने वाला पुरूष और लड़के थे।
वहीं 15.6 फीसदी ने माना कि हिंसा लड़कों और पुरूषों दोनों के साथ भी हुई है।
41 फीसदी पुरूष और 49 फीसदी महिलाओं ने माना कि लॉकडाउन और बेरोजगारी की वजह से पुरूषों के पास पहले से अधिक खाली समय है जिसकी वजह से वह पीने और स्मोंकिग करने लगे हैं।
इस दौरान घरेलू हिंसा में भी इजाफा देखने को मिला।
घरलू हिंसा के कारणों में 44 फीसदी घरेलू काम न करना, 31 फीसदी शराब पीने, 25 फीसदी दूसरों को गाली देने, 18 फीसदी पढ़ाई न करना, 6 फीसदी आर्थिक, 3 फीसदी तनाव,परिवार का दवाब,रोजगार न होना और 1 फीसदी कहने के बाद तुरंत पुरुष द्वारा बताए गए काम को न करना रहा।
महिलाओं का भी काम छूटा
74 फीसदी पुरूषों ने और 66 फीसदी महिलाओं ने माना कि लॉकडाउन की वजह से
महिलाओं की नौकरी पर
भी असर पड़ा है और उनको नौकरी से हाथ धोना पड़ा है।
48 फीसदी लोगो ने बोला कि उनकी नौकरी चली गई है और यदि नौकरी बची भी है तो
उनको सैलरी नहीं मिल रही है।
लॉकडाउन ने लड़को की अपेक्षा लड़कियों की पढ़ाई ज्यादा बुरा असर
68 फीसदी पुरूष और 57 फीसदी महिलाओं ने माना कि लॉकडाउन की वजह से लड़कों के
अपेक्षा लड़कियों की पढ़ाई ज्यादा प्रभावित हुई है।
ऑनलाइन क्लासेज से नहीं हो पा रही पढ़ाई
10 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वह ऑनलाइन क्लासेज के लिए बच्चों के पास जरूरी जानकारी नहीं
वहीं कई के पास मोबाइल, इंटरनेट आदि की सुविधा न होने की वजह से इसे एस्सेज नहीं कर पाते।
वहीं 10 फीसदी ने कहा कि ऑनलाइन क्लासेज उतनी प्रभावी नहीं है जितना क्लासरूम में होती है।
ऑनलाइन क्लासेज में उनको जानकारी शेयर तो कर दी जाती है
लेकिन उनको टीचर से उतना गाइडेंस नहीं मिल पाता जितना स्कूल/कॉलेज में मिलता है।
कोविड ने ब़ढ़ाया बाल विवाह का खतरा
सर्वे में 10 फीसदी ने कहा कि इस महामारी की वजह से उनके आस-पास
लड़कियों की शादी कम उम्र में हो गई।
पुरूष बीमार तो महिला पर काम का ज्यादा बोझ,
महिला बीमार तब भी घर के काम से छुट्टी नहीं
सर्वे में निकल कर आया कि घर में किसी अन्य महिला सदस्य के न होने की स्थिति में
9 फीसदी महिलाओं को बीमारी के बाद भी घर के काम से छुट्टी नहीं मिलती
उनके पास इसके लिए कोई विकल्प नही हैं।
सर्वे के मुताबिक यदि कोई पुरूष बीमार पड़ता है तो महिलाओं के
ऊपर अतिरिक्त जिम्मेदारी आ जाती है।
जिसमें 80 फीसदी बीमार के देखभाल में, 65 फीसदी घरेलू काम की, 57 फीसदी बच्चों के
देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है।
महिला के बीमार होने पर पूरूषों की जिम्मेदारी घर के कामों में 71.8, बीमार की
देखभाल में 67.6,बच्चों की देखभाल में 61.5 इजाफा हुआ है।
69 फीसदी पुरूषों और 76 फीसदी महिलाओं ने कहा कि अगर कोई बीमार नहीं भी है
तो लॉकडाउन की वजह से परिवार के सभी सदस्यों के घर पर होने से
महिलाओं पर घरेलू काम का बोझ काफी बढ़ गया है।
पुरूष के बीमार होने पर महिलाओं ने उठाई खरेलू खर्चे की भी जिम्मेदारी
यहां रोचक तथ्य यह भी निकल कर आया कि 68 फीसदी ने माना कि महिलाओं के ऊपर
घरेलू खर्चे मैनेज करने की जिम्मेदारी आ जाती है।
वहीं सिर्फ सिर्फ 2.3 फीसदी ने माना कि महिला के बीमार होने पर
पुरूषों के ऊपर घर के खर्चों को मैनेज करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी आ जाती है।
ब्रेकथ्रू के बारे में:
ब्रेकथ्रू एक स्वयंसेवी संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और
भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है।
कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागीदारी से हम लोगों को
एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके।
हम अपने मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से महिला अधिकारों से जुड़े मुद्दों को
मुख्यधारा में लाकर इसे देशभर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक भी बना रहे हैं।
इसके साथ ही हम युवाओं, सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं,
जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।
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