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उत्तराखंड : राज्य में अंगदान करने से कतरा रहे है लोग, जानिए कारण

उत्तराखंड में अंगदान करने वालों की कम संख्या के प्रमुख कारणों में अंगदान के बारे में लोगों में उचित शिक्षा और जागरूकता की कमी के साथ-साथ जुड़े अंधविश्वास और आध्यात्मिक मान्यताएं हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, अंगदान हर साल कई लोगों की जान बचा सकता है लेकिन अंगों की मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण कई लोगों की जान चली जाती है।

कई लोग विभिन्न कारणों से अपनी मृत्यु के बाद अंगदान के लिए पंजीकरण कराने के लिए अनिच्छुक रहते हैं, लेकिन अंधविश्वास राज्य के अधिकांश संभावित अंग दाताओं को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारण है।

हरिद्वार निवासी 50 वर्षीय कस्तूरी रावत ने कहा, “मैं अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान करना चाहती हूं लेकिन मैं पुनर्जन्म में विश्वास करती  हूं और मैं अपने अगले जन्म में दान किए गए अंगों के बिना पैदा नहीं होना चाहती ।”

लोगों का एक वर्ग ऐसा भी है जो अंग दाता बनने में रुचि रखता है लेकिन उसे संदेह है कि उनके दान किए गए अंग जरूरतमंदों को उपलब्ध कराए जाएंगे या नहीं।

25 वर्षीय कानून के छात्र देवस वर्मा ने कहा  “मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मुझे अपनी स्वास्थ्य प्रणाली और अधिकारियों पर पूरा भरोसा नहीं है। क्या गारंटी है कि मेरे दान किए गए अंग किसी जरूरतमंद को उपलब्ध कराए जाएंगे और अमीर लोगों को अधिक मुनाफे पर नहीं बेचे जाएंगे? इस तरह के विचार मुझे अंग दाता के रूप में खुद को पंजीकृत करने से रोकते हैं, लेकिन मैं भविष्य में ऐसा कर सकता हूं।”

रामनगर निवासी मीना खुल्बे ने कहा, “मैं एक अंग दाता बनना चाहती हूं लेकिन मुझे पता नहीं है कि मुझे अंग दाता बनने के लिए कहां और किसके पास जाना है।”

अंगदान प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राज्य सचिव डॉ अजय खन्ना ने कहा कि अंगदान एक नेक काम है और एक व्यक्ति के दान किए गए अंगों से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। जागरूकता की कमी और कुछ सांस्कृतिक विश्वास के कारण बहुत से लोग अंग दाता बनने के लिए आगे नहीं आते हैं।

उन्होंने कहा कि राज्य की बमुश्किल एक से दो फीसदी आबादी अंग दाताओं के रूप में पंजीकृत है। खन्ना ने कहा कि अंग दाता बनने के लिए 18 वर्ष से 75 वर्ष की आयु का कोई भी वयस्क देहरादून के सरकारी दून मेडिकल कॉलेज (जीडीएमसी) अस्पताल जैसे सरकारी अस्पतालों में खुद को डोनर के रूप में पंजीकृत करा सकता है। आईएमए सचिव ने कहा, “अंग दान कई लोगों की जान बचा सकता है और लोगों को मरने के बाद दूसरों को जीवन का उपहार देने के लिए आगे आना चाहिए।”

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