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Uttarakhand Election 2022: बदरीनाथ विधानसभा सीट से जुड़ा टूटा मिथक, जानिए क्या थी मान्यता
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का रिजल्ट सोच और समझ से परे रहा। और इस रिजल्ट ने मिथक तोड़ते हुए किसी को निराश किया तो किसी को बेहिसाब खुशी। दरअसल बदरीनाथ विधानसभा सीट से जुड़ा मिथक इस बार टूट गया। बदरीनाथ सीट का मिथक था कि, जिस पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से जीतता है। राज्य में उसकी ही सरकार बनती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। क्योंकि इस बार यहां कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। जबकि यहां बीजेपी की सरकार बनने जा रही है। यहां कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी ने जीत दर्ज की है। उन्होंने भाजपा के महेंद्र भट्ट को हराया है।
पीएम मोदी ने कहा उत्तराखंड में भाजपा ने बनाया नया इतिहास
पांच में से चार राज्यों में जीत हासिल करने के बाद पीएम मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि, उत्तराखंड में भाजपा ने नया इतिहास रचा है। पहली बार राज्य में कोई पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में आई है। एक पहाड़ी राज्य, एक समुद्र तटीय राज्य और एक मां गंगा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त राज्य और एक पूर्वोत्तर में स्थित राज्य। उन्होंने कहा कि भाजपा को चारों तरफ से आशीर्वाद मिला है।
केदारनाथ में कमल खिला
केदारनाथ विधानसभा सीट पर भाजपा की 10 साल बाद वापसी हुई है। भाजपा की शैलारानी रावत को पोस्टल बैलेट के साथ ही ईवीएम में निर्दलीय और कांग्रेस की अपेक्षा काफी ज्यादा वोट मिले हैं। मोदी मैजिक और कार्यकर्ताओं की मेहनत जीत के रूप में सामने आया। वहीं कर्णप्रयाग सीट से भाजपा प्रत्याशी अनिल नौटियाल और बद्रीनाथ विधानसभा सीट पर राजेंद्र भंडारी को भी जीत मिली है।
4 प्रत्याशियों ने लगायी जीत की हैट्रिक
उत्तराखंड के 4 प्रत्याशियों ने जीत की हैट्रिक लगाई है। जबकि तीन प्रत्याशियों ने पहली बार सियासी मैदान में कदम रखा और जीत हासिल की। लेकिन दो प्रत्याशी ऐसे भी हैं। जो जीत की हैट्रिक लगाने से चूक गए हैं। बता दें कि, हरिद्वार ग्रामीण से कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत ने हराया है।
बसपा और आम आदमी पार्टी हुई फेल
हरिद्वार ग्रामीण सीट पर 2022 में बसपा और आप असर नहीं छोड़ सकी। बसपा ने पहले सीट पर प्रत्याशी बदला और आखिरी वक्त में मतदान से पहले सपा के प्रत्याशी ने बसपा को समर्थन दे दिया। लेकिन कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम और दलित वोटरों के ध्रुवीकरण होने से बसपा को इसका कतई फायदा नहीं मिला।