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उत्तराखंड: करो या मरो के अंदाज में मंजिल तय करेगी कांग्रेस

उत्तराखंड में सत्ता वापसी की चाह कहिए या सियासी जमीन पाने को करो या मरो की हालत, कांग्रेस पूरी ताकत से आगे का रास्ता तय करने जा रही है। रोचक बात ये है कि सतह पर अंतर्कलह के पूरे नाटकीय तत्व मौजूद हैं और इनके अलग-अलग अंदाज आगे दिखने तय हैं। बावजूद इसके मिशन 2022 को लेकर दिग्गज नेताओं के बीच अंदरखाने सुलह, समझ और समाधान की अंतर्धारा ने अपना काम शुरू कर दिया है। आने वाले दिनों में सूबे की सियासत में बड़े उलटफेर के इरादे से रणनीति को अंजाम देने की तैयारी है। 

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पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजय और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार ने प्रदेश में कांग्रेस को पस्तहाल किया है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी पिछले इतिहास को दोहराने के पक्ष में नहीं है। पार्टी रणनीतिकारों की चिंता ये है कि अगले चुनाव में सत्ता में वापसी नहीं होने की सूरत में मुश्किल हालात को संभालना मुमकिन नहीं होगा। केंद्रीय नेतृत्व भी इन परिस्थितियों पर नजदीकी निगाह रख रहा है।

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सबसे पहले चरण में तैयारी प्रदेश में क्षत्रपों को साधने की है। ऐसे में पार्टी में सतह पर भले ही गुटीय खींचतान का पूरा दृश्य खासोआम के लिए बदस्तूर जारी रहे, लेकिन अंदरखाने दिग्गजों में एकजुट होकर चुनावी जंग में कूदने को लेकर सहमति बनना शुरू हो गई है। प्रदेश की कुल 70 विधानसभा सीटों में से तकरीबन दो दर्जन सीटों पर अपनी स्थिति को अपेक्षाकृत कमजोर आंक रही पार्टी चुनाव आने तक एक ठोस रणनीति के साथ सामने आने की तैयारी में है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने सल्ट उपचुनाव में कई दिनों तक खुद चुनाव प्रचार में उतरकर इसके संकेत दे दिए हैं। 

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