लखनऊ। चुनावी समर तेज हो गया है। चुनाव आयोग ने भी संकेत दिए हैं कि यूपी समेत अन्य पांच राज्यों के चुनाव टाले नहीं जाएंगे। यूपी में 10 जनवरी से आचार संहिता लगाए जाने की अटकलें भी शुरू हो गईं हैं।इस बीच बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को छोड़ दें तो अन्य दलों ने अभी तक अपने प्रत्याशियों का ऐलान करना शुरू नहीं किया है। सीटों के बंटवारे को लेकर सपा और भाजपा दोनों में पेंच फंसा हुआ है क्योंकि गठबंधन के तहत कई दल इनके साथ जुड़े हुए हैं। जिनसे सीटों को लेकर अभी तक बात नहीं बनी है। इसी क्रम में बुधवार को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एक बैठक बुलाई है। जिसमें सभी पदाधिकारी शामिल होंगे। सूत्रों का दावा है कि इसमें सहयोगी दलों के नेता भी शामिल हो सकते हैं। समाजवादी पार्टी के साथ प्रमुख दलों के रुप में प्रसपा, रालोद, सुभासपा, महान दल, जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), अपना दल (कमेरावादी) हैं। इन दलों ने अखिलेश के साथ गठबंधन और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान तो कर दिया है लेकिन सीटों का पेंच अभी भी फंसा हुआ है। सूत्रों का दावा है कि सीटों के फॉर्मूले पर अपने पदाधिकारियों के साथ अखिलेश बैठक करने के बाद सहयोगी दलों से भी बात करेंगे।
2017 कांग्रेस को अकेले 100 सीटें दी थीं, इस बार सबको 60-70 सीटों पर समझाने की जुगत
अखिलेश यादव ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। जिसमें कांग्रेस को 100 सीटें दी गईं थीं। परिणाम अनुरुप नहीं आए थे। इस बार अखिलेश यादव अपने करीब आधा दर्जन से ज्यादा दलों को 60-70 सीटें देने का मन बनाए हुए हैं। जिसमें सबसे ज्यादा रालोद को करीब 35 सीटें दी जा सकतीं हैं। क्योंकि, पश्चिमी यूपी में रालोद का जनाधार काफी बढ़ा है। इसके अलावा चाचा शिवपाल भी अब साथ आ गए हैं। सूत्रों का कहना है कि उनको पांच सीटें दी जा सकतीं हैं और बाकी साथियों को सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ाया जा सकता है। वहीं ओमप्रकाश राजभर, डॉ. संजय सिंह चौहान, केशव देव मौर्य, कृष्णा पटेल को उनके प्रभाव वाली सीटों पर लड़ाया जा सकता है।
कितना पड़ सकता है असर?
अखिलेश के सहयोगी दलों में प्रसपा यानी शिवपाल यादव और रालोद के जयंत चौधरी की सियासी ताकत किसी से छिपी नहीं है। इटावा, मैनपुरी, एटा, फर्रुखाबाद, बदायूं आदि ऐसे जिले हैं जहां पर शिवपाल यादव की प्रभाव है। इसके अलावा पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर, डॉ. संजय चौहान, कृष्णा पटेल की भी अपनी-अपनी जातियों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसमें से राजभर और चौहान तो बीजेपी के भी साथ रहे हैं। हालांकि ओपी राजभर, संजय चौहान, कृष्णा पटेल और केशव देव मौर्य यह दावा करते रहे हैं कि उनको सीटों से मतलब नहीं है बल्कि बीजेपी को हराना है, इसलिए अखिलेश के साथ आए हैं। इन लोगों का पूर्वांचल में अच्छा खासा प्रभाव है तो वहीं केशव देव मौर्य की भी पश्चिमी यूपी में पकड़ है। ऐसे में इन सभी दलों पर नजर डालें तो ये सभी मिलकर करीब डेढ़ सौ सीटों पर प्रभावी हो सकते हैं।
दावेदार परेशान, समयाभाव की चिंता में डूबे
समाजवादी पार्टी मुख्यालय पर दावेदारों का रेला लगा हुआ है। टिकट फाइनल होने की आस में वे पदाधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। बुधवार को पार्टी मुख्यालय पहुंचे दावेदारों ने चिंता जताते हुए कहा कि अभी तक टिकट को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सबको आश्वासन दिए जा रहे हैं। जबकि चुनाव में अब समय भी नहीं बचा है। दावेदारों की चिंता यह है कि कब टिकट फाइनल होगा और वो कब क्षेत्र में प्रचार प्रसार करेंगे।
दूसरे दलों की आमद से बढ़ी बेचैनी
सपा में दूसरे दलों की आमद से भी कैडर में बेचैनी बढ़ी हुई है। कैडर की चिंता यह है कि दूसरे दलों से आए बड़े चेहरों को अगर टिकट मिलता है तो उनकी सालों की मेहनत का क्या होगा?