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झारखंड में नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात खूंटी जिला को नई पहचान दे रहा फूलों का खेत

झारखंड में नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात खूंटी जिले के दर्जनों गांवों में फूलों की महक आ रही है। जिले में इस साल करीब 200 एकड़ जमीन में गेंदे के फूल और लेमन ग्रास

खूटी। झारखंड में नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात खूंटी जिले के दर्जनों गांवों में फूलों की महक आ रही है। जिले में इस साल करीब 200 एकड़ जमीन में गेंदे के फूल और लेमन ग्रास लगाए गए हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समृद्ध खेती में अधिकांश गांवों में महिला किसान सबसे आगे हैं।

हाल ही में दीवाली के दौरान रांची, खूंटी और जमशेदपुर समेत कई शहरों में इनके बगीचे के फूल बड़ी संख्या में बिके। आगे काली पूजा, सोहराई, छठ, क्रिसमस और शादी के मौसम जैसे त्योहारों की एक पूरी श्रृंखला है। ऐसे में इन किसानों को उम्मीद है कि फूल बंपर बेचकर उन्हें अच्छा पैसा मिलेगा। राज्य सरकार की एजेंसियां ​​​​किसानों को बीज और पौध उपलब्ध कराने से लेकर फूलों की खेती तक उपज के विपणन में मदद कर रही हैं। कुछ एनजीओ ने भी उन्हें ट्रेनिंग देकर मदद का हाथ बढ़ाया है।

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माडर्न तरीके से फूलों की खेती

इस वर्ष खूंटी जिले के खूंटी, मुरहू, तोरपा और अडकी समूहों में लगभग 15 लाख गेंदे के पौधे रोपे गए। झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन और एनजीओ प्रधान ने महिलाओं को फूलों की खेती के तरीकों के बारे में बताया। उन्हें पौधरोपण किया गया। महिलाओं ने जबरदस्त उत्साह दिखाया। झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की मदद से इस साल 397 महिला किसान फूलों की खेती से जुड़ीं और उनके खेतों से फूल इस दिवाली शहर के बाजार में पहुंचे। उन्होंने करीब 70 एकड़ के क्षेत्र में फूल लगाए हैं। इसी तरह, PRADAN नाम के एक NGO ने 1100 महिला किसानों को फूलों की खेती से जोड़ा है।

इतने लाख का कारोबार

एसोसिएशन का अनुमान है कि 170 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फूल लगाने से जिले में त्योहारी सीजन में करीब 50 लाख रुपये का कारोबार होगा। अगले साल फूलों की खेती करने वाले किसानों की संख्या दोगुनी होने की उम्मीद है।

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नक्सलवाद के कुख्यात खूंटी

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 30 किलोमीटर दूर खूंटी नक्सल हिंसा के लिए कुख्यात है। 2535 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला खूंटी जिला 12 सितंबर 2007 को अस्तित्व में आया। जिले के गठन के बाद से अब तक यहां नक्सली हिंसा में 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। माओवादियों के साथ-साथ पीएलएफआई नामक एक प्रतिबंधित आपराधिक गिरोह की हिंसा में हर साल दर्जनों हत्याएं होती हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिंसा प्रभावित जिले की पहचान बदलने के प्रयास जोरों पर हैं। फूलों की खेती इस परिवर्तन की एक विशेषता है।

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