India Rise Special

क्या है पोषण अभियान ? क्या हैं इस अभियान का लक्ष्य?

भारत देश में कुपोषण का विषय पुराना नहीं है। लेकिन एक बात सच यह है कि भले ही यह विषय पुराना नहीं है लेकिन अभी भी जारी है। कुपोषण एक ऐसी बीमारी है जो कि बच्चों में पोषण की कमी की वजह से हो जाती है। कुपोषण की वजह से बच्चे और उसके परिवार पर असर नहीं पड़ता बल्कि इसी के साथ-साथ पूरे देश पर असर पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुपोषित व्यक्ति देश की उन्नति में अच्छे से योगदान नहीं दे पाता है। भारत में कुपोषण की समस्या बहुत ही गंभीर है और इसी वजह से समस्या को दूर करने के लिए हमारे यहां कई योजनाएं भी बनाई गई। दुर्भाग्यवश योजनाएं इतनी सफल नहीं हुई इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के लिए एक और नया अभियान लेकर आए थे। इस अभियान का नाम पोषण अभियान (Poshan Abhiyan) है। आज हम आपको पोषण अभियान के बारे में ही बताने जा रहे हैं जिसमें हम आपको सारी जानकारी प्रदान करेंगे।

nutrition campaign

यह भी पढ़े : यूपी आज से गांवों में चलेगा विशेष अभियान, दस लाख एंटीजेन जांच का लक्ष्य 

क्या है पोषण अभियान?

भारत में कुपोषण (Malnutrition) हमेशा से ही एक गंभीर समस्या रही है। भारतीयों में कुपोषण को दूर करने के लिए भारत सरकार द्वारा चरणबद्ध तरीके से कुपोषण अभियान चलाया जा रहा है।पोषण अभियान (Poshan Abhiyan) वर्ष 2018 में शुरू किया गया था।महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश भर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने के लिये पोषण अभियान की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ मार्च 2018 को महिला दिवस के मौके पर राजस्थान के झुंझुनू में इसकी शुरुआत की थी। देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना सरकार द्वारा शुरू किए गए पोषण अभियान का मुख्य लक्ष्य है।

भारत देश में कुपोषण की समस्या को रोक पाना एक बहुत ही महत्वकांशी कार्य है। इसी वजह से ही भारत सरकार में पोषण अभियान (Poshan Abhiyan) की शुरुआत की है जिसमें खास तौर पर 0 से 6 वर्ष के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं के ऊपर विशेष ध्यान दिया जाता है।

क्या है कुपोषण?

कुपोषण को अंग्रेजी में मालनूट्रिशन ( Malnutrition) कहते हैं। कुपोषण इंसानों में वह अवस्था है जिसमें सही पोषण ना मिलने की वजह से किसी प्रकार से मनुष्य दुर्बल हो जाता है। कुपोषण एक ऐसी अवस्था है जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन, अव्यवस्थित रूप से ग्रहण करने या फिर न ग्रहण कर पाने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है।

यह भी पढ़े : यूपी आज से गांवों में चलेगा विशेष अभियान, दस लाख एंटीजेन जांच का लक्ष्य 

भोजन के जरिए ही हर किसी को पोषक तत्व मिला करते हैं। यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिलते हैं तो व्यक्ति कुपोषित हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार नाटापन, निर्बलता और काम वज़न इसके प्रमुख लक्षण हैं। इसके प्रभाव से मानव उत्पादकता लगभग 10-15 प्रतिशत तक कम हो जाती है, जो कि अंत में देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है।

क्या हैं लक्ष्य?

इस अभियान के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार हैं –

  1. 0-6 वर्ष के बच्चों में ठिगनेपन यानी की नाटेपन से बचाव । इसमें कुल 6 प्रतिशत,प्रति वर्ष 2%की दर से कमी लाना इसका लक्ष्य है।
  2. 0 से 6 वर्ष के बच्चों का अल्प पोषण से बचाव कार्य।इसमें भी कुल 6 प्रतिशत की कमी लाना।
  3. 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया के प्रसार में कुल 9 प्रतिशत ,यानी की प्रति वर्ष 3% की दर से कमी लाना।
  4. 15 से 49 वर्ष की किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री माताओं में एनीमिया के प्रसार में कमी लाना ।
  5. कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में कुल 6 प्रतिशत की कमी लाना ।

इस अभियान का लक्ष्य लगभग 9046.17 करोड़ रुपए के बजट के साथ देश भर के 10 करोड़ लोगों को लाभान्वित करना है।इस अभियान की कुल लागत का 50 प्रतिशत हिस्सा बजट के माध्यम से दिया जा रहा है।बाकी बचा हुआ 50 प्रतिशत हिस्सा विश्व बैंक तथा अन्य विकास बैंकों द्वारा दिया जा रहा है।

क्या है पोषण अभियान की आवश्यकता?

वैसे तो इस सवाल की जवाब से हर कोई अच्छे से वाकिफ होगा लेकिन आंकड़े इसकी पुष्टि और अच्छे से कर देंगे। अक्टूबर 2019 में जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर रहा था। वहीं वर्ष 2018 में देखें तो तब भारत 103वें स्थान पर था। वर्ष 2017 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 जारी की गई थी। इसमें मंत्रालय द्वारा कुपोषण की वजह से नागरिकों की उत्पादकता पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव और देश में मृत्यु दर में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया था।

यह भी पढ़े : यूपी आज से गांवों में चलेगा विशेष अभियान, दस लाख एंटीजेन जांच का लक्ष्य 

वर्ष 2017 में सबसे कम वजन वाले बच्चों की संख्या वाले देशों में भारत 10वें स्थान पर विराजमान था। इस आंकड़े को देखकर यह साफ पता चलता है कि भारत में कुपोषण की समस्या कितनी बड़ी है। यही नहीं, इसके अलावा वर्ष 2019 में ‘द लैंसेट’ नामक पत्रिका द्वारा जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि भारत में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 1.04 मिलियन मौंतों में से तकरीबन दो-तिहाई की मृत्यु कुपोषण के कारण होती हैं।
आँकड़ों के अनुसार, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में से करीब 34.7% बच्चे स्टंटिंग यानी नाटेपन अर्थात कद न बढ़ने की समस्या का सामना कर रहे हैं। इसी आयु वर्ग के 33.4% बच्चे अल्प-वज़न यानी की अंडरवेट होने की समस्या से जूझ रहे हैं।

यदि भारत देश में जल्दी ही कुपोषण की समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो वह समय दूर नहीं है जब हर इंसान से ग्रस्त हो सकता है और इसकी वजह से पूरे देश पर प्रभाव पड़ सकता है।

कितना हुआ काम?

इस अभियान को कई आशाओं के साथ शुरू किया गया था। लेकिन इस अभियान सभी की आशाओं को धूमिल करता हुआ नजर आ रहा है। पोषण अभियान (Poshan Abhiyan) के तहत अब तक जारी हुई रकम में से भारत के तमाम राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों ने महज 30 फीसदी ही खर्च किया है। सब चीजों का गुणांक करने के बाद भारत के केंद्र सरकार को इस योजना के लिए 2,849.54 करोड़ का ही खर्च आता है।
अच्छी बात ये है की इस अभियान के तहत जारी रकम को खर्च करने में मिजोरम का 65.12 फीसदी और लक्षद्वीप का 61.08 फीसदी योगदान है जिसकी वजह से वह क्रमशः पहले व दूसरे स्थान पर हैं। इससे ये साबित होता है की योजना अभी इतनी फलीभूत नहीं हो पाई है। यह आंकड़े 2019 के हैं परंतु 2020 में कोरोना वायरस की वजह से हालात खराब होने की उम्मीद है। कुपोषण की यह समस्या इतनी गंभीर है कि सिर्फ सरकार को नहीं बल्कि तमाम गैर-सरकारी संगठनों को भी साथ लेकर काम करना जरूरी है।

Follow Us
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
%d bloggers like this: