
यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में नीतीश कुमार, इस सीट से आजमा सकते है किस्मत …
उत्तर प्रदेश की फूलपुर, अंबेडकर नगर या मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ें
नीतीश के फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें
नीतीश कुमार यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं
लखनऊ: दिल्ली(delhi) की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर जाता है… ये कहावत तो सुनी ही होगी आपने। इसकी याद हम इसलिए दिला रहे हैं, क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के यूपी के प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें तेजी से लगाई जा रही हैं। हालांकि, नीतीश(nitish) का दावा है कि वो 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के लिए विपक्षी दलों को एकजुट कर रहे हैं।
असल में, सियासी गलियारे में नीतीश के फूलपुर लोकसभा सीट(phoolpur)से चुनाव लड़ने की अटकलें जनता दल यूनाइटेड (JDU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लल्लन सिंह के एक बयान से शुरू हुईं। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की मांग है कि नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश की फूलपुर, अंबेडकर नगर या मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ें। हालांकि, इस पर अभी अंतिम निर्णय होना बाकी है।
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नीतीश कुमार का प्लान?
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने संकेत दिया कि नीतीश कुमार यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ये होता है तो माना जाएगा कि नीतीश कुमार केंद्र की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से चुनाव लड़कर दिल्ली की गद्दी तक पहुंचे थे। जबकि दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि फूलपुर की यह लोकसभा सीट प्रधानमंत्री मोदी की वाराणसी सीट से सिर्फ 100 किमी की दूरी पर है। इस सीट पर ताल ठोकने के मायने सीधे पीएम मोदी को चुनौती देना भी माना जा सकता है।
फूलपुर सीट के समीकरण
नीतीश कुमार के लिए फूलपुर लोकसभा सीट कई मायनों में आसान है। इस सीट के लिए कुर्मी यानी पटेल मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इसके अलावा दलित, यादव और मुस्लिम भी किसी का गणित बनाने व बिगाड़ने की स्थिति में हैं। अनुमान के अनुसार, यहां दलितों की भागीदारी सबसे ज्यादा करीब 18.5 फीसदी है। इसके बाद पटेल और कुर्मी की आबादी 13.36 फीसदी है। 12.90 फीसदी मुस्लिम वोटर भी हैं। इनके अलावा लगभग 11.61 फीसदी ब्राह्मण भी निवास करते हैं और वैश्यों की आबादी लगभग 5.4 फीसदी है। इनके अलावा कायस्थ करीब पांच फीसदी, राजपूत 4.83 फीसदी और भूमिहार 2.32 फीसदी हैं। सवर्णों की आबादी देखी जाए तो 23 फीसदी है।
जबकि, मौर्य और अन्य जातियों को मिला दें तो ये 16 प्रतिशत के आसपास आते हैं। नीतीश कुमार अगर सवर्ण व कुर्मी-पटेल को साधते हैं और सपा का साथ हासिल करते हैं तो एक बार फिर फूलपुर का समीकरण बदल सकता है। बता दें कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर 19 लाख 75 हजार वोटर्स थे, जिनमें 10,83000 पुरुष और आठ लाख 91 हजार महिला मतदाता थीं। अनुमान है कि लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान यहां मतदाताओं की संख्या में लगभग 50 हजार की बढ़ोतरी होगी।
इसके अलावा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का साथ मिलने से नीतीश कुमार के लिए यह सीट सहज हो सकती है। क्योंकि, फूलपुर सीट पर सपा ने पांच लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की है। सन् 1996 और 1998 में यह सीट सपा नेता जंग बहादुर पटेल जीती। सन् 1999 में इससे सपा के धर्मराज पटेल को जीत हासिल हुई। वर्ष 2004 में सपा से अतीक अहम ने यह सीट कब्जाई तो वहीं, वर्ष 2009 में यह सीट बसपा के पास चली गई। इसके बाद वर्ष 2014 में आई मोदी लहर में इस सीट से भाजपा प्रत्याशी केशव प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल की। लेकिन, वर्ष 2018 के उपचुनाव में एक बार फिर समाजवादी पार्टी के नागेंद्र सिंह पटेल ने जीत हासिल कर इस सीट पर कब्जा जमाया। हालांकि, वर्ष 2019 में केसरी देवी पटेल ने फूलपुर लोकसभा सीट जीतकर फिर से भाजपा के खाते में डाल दी। बता दें कि अब तक इस सीट पर हुए 17 लोकसभा चुनाव और तीन लोकसभा उप चुनावों में छह बार कांग्रेस, पांच बार सपा, चार बार जनता दल, दो बार भाजपा, एक-एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी व बसपा उम्मीदवारों को जीत मिली है।
लल्लन सिंह का दावा- 15-20 सीटों पर सिमट जाएगी भाजपा
इसके अलावा फूलपुर, मिर्जापुर या अंबेडकरनगर से चुनाव लड़कर नीतीश कुमार पूर्वांचल के सियासी माहौल में भी हलचल मचा सकते हैं। ललन सिंह का भी कहना है कि यूपी की 80 लोकसभा सीट में से 64 पर भाजपा काबिज है। ऐसे में अगर नीतीश कुमार और अखिलेश यादव मिल जाएं तो भाजपा 15-20 सीटों पर सिमट जाएगी।
बिना UP साधे नहीं बन सकते प्रधानमंत्री!
यह बात तो नीतीश कुमार भी अच्छी तरह से जानते हैं कि सिर्फ बिहार की 40 लोकसभा सीटों के दम पर वो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सकते हैं। यही वजह है कि वो लगातार विपक्षी दलों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा सांसद देने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है और यहां से भाजपा के सामने सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी अखिलेश यादव की सपा है। शायद यही वजह है कि दिल्ली में नीतीश कुमार की मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव से मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में खबर तो ये भी है कि अखिलेश ने नीतीश को यूपी में अपनी पसंद की किसी भी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया है। साथ ही अपनी पार्टी के समर्थन का भी वादा किया है।
नीतीश-अखिलेश के साथ आने से बदलेगी यूपी की सियासत?
लोकसभा चुनाव 2024 में नीतीश कुमार और अखिलेश यादव के साथ आने का क्या मतलब है? बीजेपी को रोकने में यह कितना कारगर होगा? यह समझने के लिए हमें वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव को समझना होगा। यूपी में लोकसभा की 80 सीट हैं और बिहार में 40… यानी दोनों राज्यों को मिलाकर कुल 120 लोकसभा की सीट हैं। यूपी में बीजेपी ने 62 और सहयोगी अपना दल ने दो लोकसभा सीट जीती थीं। इस प्रकार 2019 में NDA 64 सीट जीती थीं, जबकि बिहार NDA ने 39 सीट। एनडीए को दोनों राज्यों में 120 में से 103 सीट पर जीत मिली थी। दूसरी तरफ विपक्षी सपा-बसपा-रालोद का महागठबंधन सिर्फ 15 और कांग्रेस एक सीट पर सिमट गई थी। अब बिहार में नीतीश NDA से अलग हो गए हैं और यूपी में सपा से गठबंधन की दावेदारी करीब करीब पूरी है। ऐसे में ये नीतीश बनाम मोदी का टकराव यूपी की सियासत पर असर डालता हुआ नजर आ सकता