उत्तराखंड : वन विभाग का अहम फैसला, जंगलों में रोपे जाएंगे जल संरक्षण में सहायक पौधे
उत्तराखंड में जंगल की आग से वन संपदा को भारी नुकसान पहुंचा है, लेकिन वन विभाग ने अब इससे सबक भी लिया है। इसी क्रम में तय किया गया है कि वर्षाकालीन पौधरोपण में इस मर्तबा जंगलों में उन प्रजातियों के पौधों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो जल संरक्षण में सहायक हैं। वन क्षेत्रों में 14 हजार हेक्टेयर में करीब 1.40 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य है, जिनमें आधे चौड़ी पत्तियों वाले पौधे रोपे जाएंगे। इनमें भी बांज, बुरांस, अतीस, मोरू, खिर्सू, फलिहाट, बांस, रिंगाल पर विशेष फोकस रहेगा। ये सभी पानी सहेजने में सहायक माने जाते हैं।
प्रदेश में पिछले साल अक्टूबर से जंगलों के सुलगने का सिलसिला शुरू हुआ और अब तक आग की 2922 घटनाओं में 3967 हेक्टेयर जंगल झुलस चुका है। आग से 222 हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ प्लांटेशन तबाह हो गया तो 51224 पेड़ जल गए। जंगल की आग ने आठ व्यक्तियों की जान ली, जबकि तीन घायल हुए। आग के कारणों की पड़ताल की गई तो बात सामने आई कि बारिश न होने से जंगलों में नमी बेहद कम हो गई थी।
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हालांकि, हाल में हुई बारिश के बाद आग पर अंकुश लगा चुका है, मगर इसने यह सबक दिया कि यदि जंगलों में नमी रहती तो शायद आग इतनी न धधकती। इसे देखते हुए वन विभाग ने अब वर्षाकालीन पौधरोपण में जल संरक्षण में सहायक पौधे लगाने पर ध्यान केंद्रित करने की ठानी है।
वन मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने भी हाल में हुई विभागीय समीक्षा बैठक में जल संरक्षण में सहायक प्रजातियों के पौधों के रोपण के साथ ही सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन के लिए कदम उठाने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे। वन विभाग के मुखिया एवं प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी के मुताबिक विभागीय मंत्री के निर्देर्शों के क्रम में वर्षाकालीन पौधरोपण की कार्ययोजना तैयार कर ली गई है।
मुख्य वन संरक्षक नरेश कुमार ने बताया कि वन प्रभागों में पौधरोपण के लिए गड्ढे खुदान का कार्य कहीं पूरा हो चुका है तो कहीं पूर्ण होने को है। उन्होंने कहा कि पौधरोपण की नीति के तहत जल संरक्षण में सहायक चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों को विशेष तवज्जो दी जाएगी। विभाग के पास पर्याप्त संख्या में पौध भी उपलब्ध है।