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कोरोना के मूल संक्रमण से कितना अलग हैं डेल्टा वेरिएंट के लक्षण?

पिछले डेढ़ साल से ज़्यादा के समय में कोविड-19 महामारी ने हमारे जीवन को हर तरह से प्रभावित किया है। इस बीमारी ने न सिर्फ हमारी जिंदगी बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर डाला है। अब, इस वायरस के नए-नए वेरिएंट के साथ हालात और बिगड़ते जा रहें हैं ।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, डेल्टा और डेल्टा प्लस जैसे नए वेरिएंट, बहुत अच्छी तरह विकसित हुए हैं इसलिए मानव जिंदगी के लिए ज्यादा जोखिम पैदा कर रहे हैं। हाल ही में की गई स्टडी से पता चलता है कि डेल्टा वेरिएंट के लक्षण मूल कोरोना वायरस से कुछ अलग भी हैं।

असली कोविड बनाम डेल्टा स्ट्रेन

सभी तरह के वायरस रूप परिर्वतन और नए स्ट्रेन बनाने के लिए प्रोग्रेम्ड होते हैं। WHO के मुताबिक, एक वायरस खुद की नकल बनाता है या अपनी प्रतियां बनाता है, जो सामान्य है।

वायरस की प्रकृति में बदलावों को ही म्यूटेशन्स कहा जाता है। एक या एक से अधिक नए उत्परिवर्तन वाले वायरस को मूल वायरस के “वेरिएंट” के रूप में पहचाना जाता है।

SARs-COV-2 वायरस की बात करें, तो यह अपनी तक कई रूप बदल चुका है। जिसमें से एक डेल्टा वायरस, जिसे वैज्ञानिक नाम B.1.617.2 है। यह अब तक का सबसे ज्यादा प्रभावशाली स्ट्रेन माना जाता है।

इंडिया के महाराष्ट्र में सबसे पहले पिछले साल अक्टूबर में कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट, पाया गया था। इसे E484Q और L452R म्यूटेशन के बीच का एक क्रॉस माना जाता है, इसी कारण इसे मूल स्ट्रेन की तुलना में ज्यादा संक्रामक है।

क्या डेल्टा वेरिएंट और मूल वायरस के लक्षणों में फर्क है?

जब बात आती है किसी खास वायरस के संकेतों और लक्षणों की, तो इसके लिए कई लोगों के डेटा को जांचना होगा। क्योंकि डेल्टा वेरिएंट मूल स्ट्रेन का ही बदला हुआ रूप है, इसलिए ऐसा कहा जा रहा है कि इसके लक्षणों में भी कुछ बदलाव आए होंगे।

बिट्रेन के डेटा से पता ज्ञात होता है कि मूल कोरोना के सबसे आम लक्षण डेल्टा वेरिएंट में कुछ बदल गए हैं। बुखार, खांसी, सिरदर्द और गले में ख़राश आम कोविड के लक्षण अब भी बने हुए हैं, जबकि नाक का बहना पहले के आंकड़ों में शायद ही देखा गया था।

इसके अलावा, गंध की भावना का नुकसान, जो मूल रूप से काफी सामान्य था, अब नौवां सबसे आम लक्षण बन गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि लक्षणों में बदलाव वैक्सीन ड्राइव का भी लक्षण हो सकता है।

कई एक्सपर्टस् का मानना है कि जैसे-जैसे अधिक वृद्ध वयस्कों को वैक्सीन लगती रहेगी, युवा आबादी अधिकांश कोरोना के मामलों में योगदान करती रहेगी और उनमें संक्रमण के हल्के लक्षण विकसित होने की संभावना ज़्यादा होती है। इसके अलावा वायरस का विकास भी लक्षणों में बदलाव के पीछे का कारण हो सकता है।

 

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