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Health News: बच्चों के लिए लाड़-प्यार से ज्यादा जरूरी है टीकाकरण, हर मम्मी-पापा को समझनी होगी यह बात

एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज में टीकाकरण पर हुई सेमिनार, विशेषज्ञों ने भावी डॉक्टरों का गिनाए टीकाकरण के फायदे

बरेलीः सफल वैक्सीनेशन की बदौलत ही हमने दूसरे मुल्कों के मुकाबले कोविड महामारी की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया। वैक्सीन से ही संभावित जनहानि रोकी जा सकी। यह हमारे टीकाकरण और प्रतिरक्षा कार्यक्रम की बड़ी सफलता है। हालांकि महामारी के दौरान बच्चों का नियमित टीकाकरण न हो पाना हमारे लिए बड़ी चुनौती है।

इस दौरान बहुत से नवजात डिप्थीरिया, टिटनेस, पोलियो, डीपीटी, हेपेटाइटिस-बी टीकों की पहली खुराक से भी वंचित रह गए। ऐसे जीरो डोज बच्चों के टीकाकरण के प्रति तेजी से काम किया जा रहा है। यह बात खसरा, रूबेला उन्मूलन प्रोग्राम की नेशनल वेरिफिकेशन कमेटी के हेड और कोविड 19 की नेशनल टास्क फोर्स के आपरेशनल रिसर्च ग्रुप और कई अन्य कार्यक्रमों के अध्यक्ष व इंक्लेन ट्रस्ट इंटरनेशनल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रोफेसर (डा.) नरेंद्र कुमार अरोरा ने कही।

एसआरएमएस मेडिकल कालेज में कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की ओर से आज भारत में टीकाकरण और प्रतिरक्षा कार्यक्रम विषय पर गेस्ट लैक्चर और पैनल डिस्कशन हुआ। मुख्य अतिथि प्रोफेसर (डा.) नरेंद्र कुमार अरोरा इसमें शामिल हुए। उन्होंने देश में टीकाकरण और प्रतिरक्षा कार्यक्रम में भागीदार लोगों की चुनौतियां, भूमिका और उम्मीदों पर बात की। साथ ही पैनल डिस्कशन में पूछे गए सवालों के जवाब दिए। कोविड महामारी के दौरान गाइडलाइन तैयार करने वालों में से एक रहे डा.अरोरा ने बरेली से अपनी यादें साझा की।

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उन्होंने कहा कि यहां जीआईसी से इंटर करने के बाद भले ही मैं एमबीबीएस के लिए एम्स चला गया लेकिन परिवार यहीं रहा। बरेली कभी मुझसे दूर नहीं हुआ। इसी वजह से जब बरेली के लिए कुछ करने का मौका मिला तब इंक्लेन के जरिये रिसर्च के लिए यहां के आसपास के 45 गांव गोद लिए और दो वर्ष पहले एसआरएमएस मेडिकल कालेज के साथ इन गांवों के डेमोग्राफिक डेवलपमेंट के लिए काम शुरू किया है। डा. अरोरा ने कहा कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण और प्रतिरक्षा कार्यक्रम संचालित है। इसके जरिये प्रति वर्ष 2.7 करोड़ बच्चों को टीके लगाए जाते हैं।

वर्ष 1992-32 में जहां 35 फीसद बच्चों का टीकाकरण करना संभव हो पा रहा था वहीं वर्ष 2019-20 में हम 76 फीसद बच्चों तक पहुंच गए हैं। इसमें सरकार द्वारा संचालित इंद्रधनुष कार्यक्रम और लोगों की जागरूकता भी महत्वपूर्ण है। तभी देश पोलियो और टिटनेस मुक्त हो पाया है। अब हमारा लक्ष्य 90 फीसद बच्चों तक पहुंचने का है। वैक्सीनेशन की बदौलत ही कोविड महामारी से निपटना संभव हुआ। लेकिन इस दौरान नियमित टीकाकरण प्रभावित हुआ। पिछले वर्ष पूरे देश में सबसे ज्यादा 141 खसरे के केस उ.प्र. में ही सामने आए हैं। टीकाकरण प्रभावित होने से बच्चों को डिप्थीरिया, टेटनस, पोलियो, डीपीटी, हेपेटाइटिस-बी टीके की पहली खुराक भी नहीं मिल पायी।

अब उन्हें फिर से टीकाकरण के लिए जोड़ा जा रहा है। हालांकि अन्य कई वजहों से भी माता-पिता टीकाकरण पर ध्यान नहीं दे रहे। इसमें धार्मिक मान्यताएं भी प्रमुख हैं। पैनल डिस्कशन में निमोनिया, हेपेटाइटिस बी, लिवर कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, इंफ्युजला जैसी बीमारियों से बचाव लिए वयस्कों के टीकाकरण पर भी चर्चा हुई। इसमें डा.अरोरा के साथ क्रिश्चियन मेडिकल कालेज लुधियाना के वाइस प्रिंसिपल प्रोफेसर (डा.) सीजे सैमुअल, बरेली के वरिष्ठ पीडियाट्रीशियन डा.अतुल अग्रवाल, डब्ल्यूएचओ के डिवीजनल सर्विलांस आफिसर डा.अखिलेश्वर सिंह, प्रोफेसर (डा.) स्मिता गुप्ता, प्रोफेसर (डा.) मृदु सिन्हा, प्रोफेसर (डा.) सुरभि चंद्रा भी शामिल हुईं। पैनल डिस्कशन का संचालन डा. अभिनव पांडेय और कार्यक्रम का संचालन डा. सुगंधि शर्मा ने किया।

इस मौके पर मेडिकल कालेज के डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन आदित्य मूर्ति, प्रिंसिपल डा.एसबी गुप्ता, मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा.आरपी सिंह, एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) डा. महेंद्र सिंह बुटोला, कम्युनिटी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा.अमरजीत सिंह, डा.हुमा खान, विभागाध्यक्ष और विद्यार्थी मौजूद रहे।

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