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उत्तराखंड में काबू से बाहर हो रही जंगल की आग, बिगड़ा ईको सिस्टम

नैनीताल। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग काबू पाने का नाम नहीं ले रही है। लगातार बढ़ती जाती आग प्रशासन के लिए मुश्किलें बढ़ाती नजर आ रही है। पहाड़ के जंगलों में दावानल की घटनाएं बढ़ गई हैं।इससे लाखों-करोड़ों की वन संपदा को जहां नुकसन पहुंच रहा है,  वहीं वन्यजीवों के लिए भी खतरा बढ़ रहा है। जंगल में आग लगने के कारण वन्यजीव आबादी का रुख कर रहे हैं। आइए जानते है आखिर जंगलों में लगने वाली आग की वजह क्या है?

 

जंगल में आग लगने की वजह 

 

जंगल में दावानल की बड़ी वजह मानव जनित होती है। कई बार लोग जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास के ढेर में आग लगा देते हैं। जिसके चलते कई बार आग विकराल हो जाती है। वन कर्मियों की संख्या सीमित होने के कारण भी समय से आग पर काबू न हो पाने से दावानल की घटनाएं बढ़ रही हैं।

 

कई बार लोग बीड़ी, सिगरेट पीकर बिना बुझाए जमीन पर फेंक देते हैं। जिससे धूप से कड़क हुई पत्तियों में तेजी से आग पकड़ लेती है। चिंनगारी सुलगते-सुलगते विकराल रूप ले लेती है। जिससे वन संपदा को नुकसान पहुंचता है।

 

चीड़ के पत्ते भी जंगल में आग लगने का बड़ा कारण बनते हैं। चीड़ की पत्तियां जिसे पिरुल भी कहते हैं और छाल से निकलने वाला रसायन, बहुत ही ज्वलनशील होता है। जिसमें जरा सी चिंगारी लगते ही आग भड़क कर विकराल रूप ले लेती है।

 

कम बारिश होना भी जंगलों में आग लगने का एक बड़ा कारण माना जाता है। बारिश न होने या कम होने से जमीन की नमी कम होने से दावानल की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में तीखी धूप होने से जरा सी निकलने वाली चिंगारी बड़ा रूप ले लेली है।

 

जंगल के पास से गुजरने वाली बिजली लाइनों में होने वाले शॉट सर्किट के कारण भी आग की घटनाएं विकराल हो जाती हैं। फायर सीजन में जरा सी चिंगारी लाखों की वन संपदा जलाकर खाक कर देती है।

 

इतने जंगल हुए जलकर राख 

 

15 फरवरी से 31 मार्च तक वन विभाग को जंगलों की आग पर काबू पाने में दुगनी मेहनत करनी पड़ रही है। डेढ़ महीने की  अवधि का आंकलन करें तो पाएंगे 138 बार जंगलों में आग लगी। अप्रैल का महीना पहले दिन से ही वन विभाग को भारी पडऩे लगा। जिस वजह से आग का कुल आंकड़ा 401 पहुंच गया। पिछले 11 दिन में 263 बार प्रदेश के जंगल जल चुके हैं।

 

 

 

 

 

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