
सेक्स वर्कर से न पूछें पहचान, दें राशन- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार को फटकार लगायी है। दरअसल सेक्स वर्करों को सूखा राशन देने के मामले में कोर्ट के आदेश के बावजूद बंगाल सरकार ने स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं की। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, मूलभूत अधिकारी सभी नागरिकों के लिए है। चाहे वो किसी भी पेशे में हों।
‘हमें आपको कितनी बार कहना होगा’
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि, कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच ये मामला सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य है, क्योंकि जीना मुश्किल हो रहा है, लेकिन राज्य सरकार इसे हल्के में ले रही है। अदालत ने बंगाल सरकार के वकील से कहा कि, ‘हमें आपको कितनी बार कहना होगा? हम सरकार के खिलाफ सख्त आदेश पारित कर देंगे। पिछली बार जारी आदेश को आपने पढ़ा है? आप एक हलफनामा दायर क्यों नहीं कर सकते? जब अन्य सारे राज्य दाखिल कर रहे हैं तो पश्चिम बंगाल ऐसा क्यों नहीं कर सकता?’
‘खाड्या साठी स्कीम’ के तहत मिल रहा राशन
बंगाल सरकार के वकील ने पीठ से कहा कि, राज्य में ‘खाड्या साठी स्कीम’ के तहत जरूरतमंदों को मुफ्त राशन दिया जाता है। जिसपर राज्य सरकार से कहा कि, दो हफ्ते में हलफनामा दायर करें और बताए कि, उसने क्या कदम उठाए हैं।
मूलभूत अधिकारों का न हो हनन
बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में साफ तौर पर कहा था कि, मूलभूत अधिकार हर नागरिक को एक गारंटी है, फिर चाहे वह किसी भी पेशे से जुड़ा हो। कोर्ट ने केंद्र सरकार, सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि वे सेक्स वर्करों को भी वोटर आईडी, आधार और राशन कार्ड जारी करें और उन्हें सूखा राशन देना जारी रखे।
न पूंछे पहचान, राशन कार्ड करें जारी
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट एक याचिका की सुनवाई कर रही है। जिसमें कोरोना महामारी के कारण सेक्स वर्करों को आ रही समस्याओं का मुद्दा उठाया गया है। बीते साल 29 सितंबर को शीर्ष कोर्ट ने केंद्र व अन्य को निर्देश दिया था कि, वह सेक्स वर्करों से बगैर पहचान के सबूत मांगे, उन्हें राशन कार्ड जारी करे।