
जायज और नाजायज बच्चों के बीच अंतर होना चाहिए खत्म, पिता को भी होना चाहिए देखभाल का अधिकार
लखनऊ: जायज और नाजायज बच्चों की परिभाषा को बदलने की वकालत उच्चतम न्यायालय ने की है और माताओं को अधिकार देने को है। राष्ट्रीय महिला आयोग और कानून के विशेषज्ञ ने जायज़ तथा नाज़ायज़ के बीच के अंतर को खत्म करने की वकालत की है।
लखनऊ के डा.राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विवि के दो रिसर्चर रवि गंगल और रवि शंकर ने इस पर रिसर्च करके आक्सफोर्ड विवि को रिसर्च को छापने करने पर मजबूर कर दिया।
रिसर्चर रवि शंकर ने कहा की यह नेचुरल है की मौजूदा कानून सारी जिम्मेदारियां नाजायज़ बच्चों की माताओं पर छोड़ कर, पिता को उसकी जिम्मेदारियों फ्री कर देता है। बच्चे की परवरिश पर इससे बुरा असर पड़ता है।
शोध में यह सिद्ध हुआ है कि बच्चों की देखभाल में माता- पिता दोनों ही योगदान करके उनका भविष्य और बेहतर बना सकते हैं। असल मायनों में इस रिसर्च से समानता और समावेशी विचारधारा को मदद मिलेगी। यह रिसर्च इतनी कठिन थी कि विश्व भर के विशिष्ट पारिवारिक कानून विशेषज्ञों से शोध पत्र की समीक्षा करानी पड़ी।
शोध का हिस्सा प्रोफेसर डगलस नेज़ेम तथा शिकागो-केंट स्कूल ऑफ़ लॉ की प्रोफेसर कैथरीन के विचार भी बने। दोनों शोधकर्ता यह आशा कि इस शोध से मामले को समझने तथा नाज़ायज़ बच्चों की समस्या का निराकरण करने में सरकारी तथा विधिक कार्यवाही में मदद मिले।
पिछले कई दशकों के बाद इस विषय पर इतनी बड़ी शोध प्रकाशित हुई है। आक्सफ़ोर्ड विवि प्रेस के इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ ला पालिसी एंड द फैमिली ने हिंदू कानून पर किए गए शोध को प्रकाशित किया है।
शोधार्थियों ने “ए केस फार इट्स अबैनडनमेंट”में हिंदू कानून के तहत नाज़ायज बच्चों के हक का मुद्दा उठाते हुए तर्क दिया है कि जब मूल रूप में हिंदू ला (जैसा की मनु स्मृति , याज्ञवल्क्य, विज्ञानेश्वर, वशिष्ठ, बौधायन तथा कुल्लुक भट्ट की टीकाओं से मिला ) नाज़ायज तथा ज़ायज बच्चों में कोई अंतर नहीं करता।
यह अंग्रेजी कानून लगाने के बाद अंग्रेजी हुकूमत में आया हुआ परिवर्तन स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। भारत में समलैंगिक संबंधों , लिव -इन -रिलेशनशिप , कृत्रिम प्रजनन तथा समानता के अधिकार को संवैधानिक न्यायालयों की सहायता से बढ़ावा मिला है। बिना कोई गलती होने के बावजूद नाज़ायज बच्चों की कानूनी भेदभाव एक सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं है।
डा.राम मनोहर लोहिया विधि विवि की प्रवक्ता डा.अलका सिंह ने कहा कि शोध के छापे होने पर कुलपति प्रो.एसके भटनागर सहित शिक्षकों ने रिसर्चर को बधाई दी है।
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