Chhattisgarh: यहां पढ़ें छत्तीसगढ़ के गंधेश्वरनाथ मंदिर का पूरा इतिहास
Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में सिरपुर स्थित भगवान भोलेनाथ की पुरातन शिवलिंग गंधेश्वरनाथ महादेव है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन की गंध निकलने की वजह से इसे गंधेश्वरनाथ महादेव नाम से भी जाना जाता है।
छत्तीसगढ़ शिवलिंग स्थापित मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। यहां की दीवारों पर स्थापित कलाकृति आस-पास से लाई गई पत्थर से निर्मित कलाकृति है।
सिरपुर ऐसे ही पुरा नगरी ख्यात है। यहां ऐतिहासिक लक्ष्मण मंदिर है। साथ ही खोदाई से निकले कई पुरा अवशेष हैं। सुरंग टीला, बौद्ध विहार, राम मंदिर आदि है, इसके साथ ही क्षेत्र में गंधेश्वरनाथ की महिमा है।
यह धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर से युक्त पर्यटन क्षेत्र के रूप में ख्यात है। सावन महीने में जलाभिषेक करने हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हालांकि कोरोना प्रभाव के चलते दो साल से कांवर यात्रा बंद है।
मंदिर का इतिहास
छठी शताब्दी में सिरपुर के वैभव के पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं। ऐसी मान्यता है कि जब सिरपुर में भूकम्प का प्रकोप आया और ऐतिहासिक नगरी इसके चपेट में आई तब मंदिर का जलहरी उत्तर की ओर से घूमकर पूर्व की ओर हो गया। यहां शिवलिंग की जलहरी उत्तर की ओर न होकर पूर्व की ओर है।
इसलिए शिवलिंग के पुरानी होने की मान्यता है। यह भी मान्यता है कि बाणासुर शिवभक्त थे और बहुत से शिवलिंग की स्थापना किये थे, तब उन्हें यह आभास हुआ कि शिवलिंग से चंदन की गंध आ रही है। तभी से शिवलिंग का नाम गंधेश्वरनाथ के नाम पर हुआ। जनश्रुति मुताबिक जलहरी के पूर्व दिशा की ओर होने को लेकर इसे तांत्रिक उपासना से भी जोड़ा जाता है।
1984 से यहां कांवर यात्रा शुरू हुई और तब से सावन के महीने में कांवरियों का जत्था उमड़ने लगा। इस मंदिर के पास महानदी है। महानदी से सहस्त्र जलधारा अभिषेक का आयोजन यहां होता रहा है, जो कोरोना की वजह से बीते वर्ष से बन्द है। पुरातन शिवलिंग का क्षरण होता देखकर आर्किलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के पुरातत्ववेता डा अरुण शर्मा ने कुछ वर्ष पहले क्षरण रोकने का उपचार किया था।