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बदायूं : वर्षों पुरानी परंपरा, इस बार भी लगी पत्थरमार दिवाली पर रोक

दिन में पत्थरबाजी, शाम को इलाज

दिवाली रोशनी का प्रतीक है। दिवाली पर्व में ‘ तमसो मा ज्योतिर्गमय’का संदेश छिपा है मतलब साफ है कि अंधकार से प्रकाश की ओर का सफर। कहा जाता है अंधकार को त्याग कर प्रकाश के मार्ग पर आगे बढ़ते जाना । दिवाली पर रोशनी होती है। पटाखे फोड़े जाते हैं।

भारत को विविधता वाला देश कहा जाता है इसी में उत्तर प्रदेश के जनपद बदायूं में एक परंपरा रही है पत्थर मार दिवाली की। बता दें कि 1 सप्ताह तक दिवाली कार्यक्रम चलने वाले त्यौहार में छोटी दिवाली के दिन बदायूं में पत्थर मार दिवाली का आयोजन किया जाता था लेकिन वक्त बदलने के साथ-साथ इस पर रोक लग गई। जिसके चलते इस बार जनपद बदायूं के गांव में पत्थर मार दिवाली का आयोजन नहीं हुआ है।

The strange tradition ended from this city of UP used to celebrate Diwali by pelting stones

दिन में पत्थरबाजी, शाम को इलाज

बता दें कि बदायूं के फैजगंज और बेटा गांव पत्थर मार दिवाली का आयोजन किया जाता है। आयोजन के लिए गांव के लोग खुले मैदान में जाते हैं। और खुले मैदान में एक दूसरे पर पत्थर मारकर पत्थर दिवाली मनाते हैं। इस दौरान लोगों को छोटे भी लगती हैं लेकिन किसी के मन में गिला शिकवा नहीं रहता और शाम को लोग आपस में एक साथ बैठकर दिवाली की शुभकामनाएं देते हैं गले मिलते हैं। खास बात यह है कि इसमें हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग शामिल होते हैं।

बताया जाता है कि 5 वर्ष पूर्व बिहार के तत्काल एसएसपी में हिंसा को ध्यान में रखते हुए यहां पर पत्थर मार दिवाली पर रोक लगा दी थी जिसका ग्रामीणों ने खूब विरोध किया। विरोध को देखते हुए दोनों गांवों को छावनी में तब्दील कर दिया।

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