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सालों बाद एक बार फिर बर्लिन फिल्म फेस्टिवल 2022 पहुंचेगी बॉलीवुड की यह फ़िल्म, निर्देशक भंसाली ने कही ये बात

संजय लीला भंसाली की एक सच्ची महिला गैंगस्टर ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की महाकाव्य गाथा फरवरी 2022 में बर्लिन फिल्म समारोह में जा रही है। एक मीडिया इंटरव्यू में संजय लीला भंसाली ने कहा, “देवदास के कान्स जाने के बाद से मैंने ऐसी एक्साइटमेंट महसूस नहीं की। बर्लिन फिल्म महोत्सव अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के लिए सबसे अच्छे मंचों में से एक है। हमारी फिल्म बेहद प्रतिष्ठित Berlinale Special Gala section में दिखाई जाएगी। मुझे नहीं पता कि इससे पहले कितनी भारतीय फिल्में इस सेक्शन में दिखाई जा चुकी हैं। लेकिन मुझे खुशी है कि मुख्यधारा की भारतीय फिल्म इस पॉश प्लेटफॉर्म पर अपनी जगह बनाएगी।

 

बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के आर्टटिस्टिक निदेशक कार्लो चट्रियन ने एक बयान में कहा: “हम गंगूबाई काठियावाड़ी का प्रीमियर करके खुश हैं और भारतीय फिल्मों के लिए एक विशेष स्थान के रूप में बर्लिन फिल्म महोत्सव की परंपरा को जारी रखते हैं। इस बार एक ऐसी फिल्म के साथ जो बेहतरीन कैमरा मूवमेंट और कोरियोग्राफी के साथ सामाजिक रूप से प्रासंगिक है। फिल्म में गंगूबाई की कहानी से हमें रूबरू कराया गया, एक असाधारण महिला, जिसे असाधारण परिस्थितियों में घसीटा गया। ”

 

भंसाली कहते हैं, “कार्लो चट्रियन के स्तर के सिनेप्रेमी से फिल्म की प्रशंसा आना बहुत बड़ी बात है। मुझे नहीं पता कि हमारी मुख्यधारा की फिल्में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में क्यों नहीं भेजी जाती हैं। आम तौर पर यह वे गूढ़ कलात्मक फिल्में होती हैं, जिन्हें एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव में भेजा जाता है। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ मुख्यधारा के सिनेमा की फिल्म है। यह मेरा अब तक का सबसे संयमित काम है।”

 

भंसाली के अनुसार विदेशों में भारतीय फिल्मों को इसके मेलोड्रामा की वजह से पसंद किया जाता है। पश्चिम में भी लोग अब अपने आप को और अधिक खुलकर व्यक्त करने के लिए आतुर हैं। वे भावनाओं की खुली अभिव्यक्ति से विचलित नहीं होते हैं। भारतीय फिल्मों में बहुत गर्मजोशी होती है। ऐसे समय में जब दुनिया कड़वाहट से भरी हुई है, ऐसे सिनेमा का अनुभव करना आश्वस्त करता है, जहां छोटी-छोटी भावनाएं मायने रखती हैं। साथ ही भारतीय सिनेमा में जश्न है। हर अवसर के लिए एक गीत है। पश्चिमी दर्शकों के लिए यह नया अनुभव होता है। स्टीवन स्पीलबर्ग जैसे फिल्म निर्माता अब संगीत शैली का प्रयास कर रहे हैं, जिसे हमने अनादि काल से अपनाया है। भारतीय फिल्मों की अपनी एक अलग पहचान होती है और दर्शकों को उन्हें देखने में बहुत मजा आता है। इसलिए वे हमें अच्छे-अच्छे से बॉलीवुड बुलाते हैं। आप और मैं इस शब्द से नफरत कर सकते हैं। लेकिन भारतीय सिनेमा लंबे समय तक इसी तरह जाना जाता है। जब मैंने बर्लिन में “हम दिल दे चुके सनम” दिखाई तो लोगों ने इसे ‘डांससाइकल’ कहा। वे भावनाओं के म्यूजिकल शो से रोमांचित हो गए।”

 

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