
आमतौर पर सबका मानना है कि, जिस विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या ज्यादा होती वहां मुस्लिम उम्मीदवार होना चाहिए और जहां हिन्दू समुदाय की संख्या ज्यादा हो वहां हिन्दू उम्मीदवार। लेकिन सपा सुप्रीमो ने इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाया है। तभी तो सपा ने देवबंद जैसी मुस्लिम वोटर वाली सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी को जीत से सीख लेकर उन्होंने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों पर दांव खेला है।
सपा ने नहीं किया रटा हुआ प्रयोग
दरअसल इस बार के विधानसभा चुनावों में सपा ने उन सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। जहां मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। जैसे-मीरापुर, आगरा दक्षिण, बढ़ापुर, बुलंदशहर, सिकंदराबाद, चरथावल, बिजनौर, लोनी, पीलीभीत, पटियाली, बदायूं, कानपुर कैंट इन जगहों पर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भी सपा के अन्य समुदाय के प्रत्याशी मैदान में हैं।
मीरापुर में महज 193 वोटों से हारी थी सपा
बता दें कि, मीरापुर में पिछली बार सपा उम्मीदवार को महज 193 वोटों से हार मिली थी। वहां भाजपा उम्मीदवार अवतार सिंह भडाना को 69035 वोट मिले थे। और सपा के लियाकत अली को 68,842 वोट से संतोष करना पड़ा था। वहीं इस बार सपा ने नया प्रयोग करते हुए मीरापुर सीट पर गैर मुस्लिम को टिकट दिया है। वहीं बसपा की ओर से 104 सीटों में से 37 मुस्लिमों को टिकट दिया गया है। मुस्लिम प्रत्याशी उतारने में बसपा सपा-रालोद गठबंधन से आगे है। जबकि असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ने भी अब तक सर्वाधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को ही टिकट दिया है।
2017 में 180 सीटों पर थे 50 मुस्लिम उम्मीदवार
अगर बात करें 2017 के चुनावों की तो सपा ने कांग्रेस संग मिलकर शुरुआती तीन चरणों के लिए 180 सीटों में से 50 पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। हांलाकि ज्यादातर मुस्लिम प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 82 में से 62 ऐसी सीटों पर जीत हासिल किया था। जहां मुस्लिम वोटर एक तिहाई हैं। 2017 के चुनाव में मुस्लिम मतों के विभाजन के कारण मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, बरेली, बिजनौर, सरधना, खलीलाबाद, टांडा, श्रावस्ती, गैन्सारी और मुरादाबाद सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की थी।