पद्म भूषण से सम्मानित होंगे विक्टर बनर्जी
75 वर्ष के विक्टर बनर्जी को पद्म भूषण से सम्मानित किया जाएगा। बनर्जी ने 1977 में सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में मदर-उद-दौला, अवध के ‘प्रधानमंत्री’ के रूप में सिल्वर स्क्रीन पर धमाका किया था। उनका कहना है कि यह उनके करियर का सबसे बड़ा ब्रेक था। उन्हें डेविड लीन, जेम्स आइवरी, रोमन पोलांस्की और रोनाल्ड नेम जैसे प्रमुख निर्देशकों के साथ काम करते हुए अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली और असमिया भाषा की फिल्मों में देखा गया है। वहीं घरेलू सिनेमा में मृणाल सेन, श्याम बेनेगल और राम गोपाल वर्मा के साथ काम करते हुए देखा गया है।
एकमात्र भारतीय, जिन्होंने तीन श्रेणियों में जीता है राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार:
सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित ‘घरे बैरे’ के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाले बैनर्जी, एकमात्र भारतीय फिल्म हस्ति हैं, जिन्होंने तीन श्रेणियों में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता है – दूसरा सिनेमैटोग्राफर के रूप में, उनकी डॉक्यूमेंट्री ‘व्हेयर नो जर्नी एंड’, और तीसरा निर्देशक के रूप में उनकी डॉक्यूमेंट्री ‘द स्प्लेंडर ऑफ गढ़वाल एंड रूपकुंड’ के लिए। गौरतलब है कि ‘व्हेयर नो जर्नी एंड’ ने 27 देशों की 3,100 एंट्रीज़ के साथ प्रतियोगिता में ह्यूस्टन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्ड अवॉर्ड जीता था।
जमींदारी बंगाली हिंदू परिवार में लिया था जन्म:
बनर्जी 15 अक्टूबर 1946 को एक जमींदारी बंगाली हिंदू परिवार में पैदा हुए थे। वे चंचल के राजा बहादुर (अब पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में) और उत्तरपारा के राजा (हुगली जिले में) के वंशज हैं। उन्होंने डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज की छात्रवृत्ति को ठुकरा दिया, जिसने उन्हें एक ऑपरेटिव टेनॉर के रूप में एडमिट करने की पेशकश की थी। वहीं बाद में वे ‘द डेजर्ट सॉन्ग’ के कलकत्ता लाइट ओपेरा समूह के निर्माण में लीड टेनॉर बन गए। साथ ही बॉम्बे थिएटर के पहले म्यूज़िकल प्रोडक्शन ‘गॉडस्पेल’ में यीशु की भूमिका भी निभाई।
‘ए पैसेज टू इंडिया’ ने दिलाई पश्चिमी दर्शकों के बीच पहचान:
बैनर्जी ने शिलांग के सेंट एडमंड स्कूल से स्कूली शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और जादवपुर विश्वविद्यालय से कंपैरिटिव साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1984 में बनर्जी ने डेविड लीन की ‘ए पैसेज टू इंडिया’ में डॉ अजीज अहमद की भूमिका निभाई, जिसने उन्हें पश्चिमी दर्शकों के बीच पहचान दिलाई। उन्हें 1986 में इस भूमिका के लिए बाफ्टा पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, और उसी फिल्म के लिए इवनिंग स्टैंडर्ड ब्रिटिश फिल्म अवार्ड और एनबीआर (यूएस नेशनल बोर्ड रिव्यू) पुरस्कार भी जीता था।
अप्रैल 1985 में लुइसियाना में एक विशेष कार्यक्रम के दौरान बनर्जी को मोशन पिक्चर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका से ‘न्यू इंटरनेशनल स्टार’ के रूप में ‘Show-a-Rama Award’ मिला। यहां जॉन ट्रैवोल्टा और अमेरिकी टीवी अभिनेत्री लोरेटा स्विट को भी सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्होंने और भी कई यादगार भूमिकाएं निभाईं हैं, जैसे कि मर्चेंट-आइवरी की ‘हल्लाबालू ओवर जॉर्जी एंड बोनी पिक्चर्स’ और मृणाल सेन की ‘महापृथ्बी’ में निभाई गईं उनकी भूमिकाएं।
कई बॉलिवुड फिल्मों में भी निभाईं हैं यादगार भूमिकाएं:
बनर्जी ने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया है, खास तौर पर ‘ता रा रम पम’ (2007), ‘अपने’ (2007) और ‘सरकार राज’ (2008) में। इसके अलावा उनकी अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तुतियों में ‘प्रोतिदान’ (1983), ‘ब्यबंधन’ (1990), ‘इट वाज़ रेनिंग दैट नाइट’ (2005), ‘दिल्ली इन ए डे’ (2011), ‘देव भूमि’ (2016), ‘बिपोरजॉय’ (2017) और ‘द आंसर’ (2018) शामिल हैं।
राजनीति में भी हैं सक्रिय:
गौरतलब है कि बैनर्जी ने राजनीति में भी कदम रखा था। बनर्जी ने भाजपा के टिकट पर 1991 का लोकसभा चुनाव कलकत्ता उत्तर पश्चिम में लड़ा था। जहां वे असफल रहे थे। उन्हें 89,155 वोट मिले और वे तीसरे स्थान पर रहे थे। भाजपा के एक सक्रिय सदस्य के रूप में, वह तत्कालीन समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के इस सुझाव के आलोचक थे कि जिन कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिराने से पहले उस पर धावा बोल दिया था, उन्हें गोली मार दी जानी चाहिए थी। उन्होंने पंजाब कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान से निर्यात किए जाने वाले आतंकवाद के प्रति शांतिवादी रवैये की भी कड़ी आलोचना की है।